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3.5.08

न्यूज चैनलों पर भारी पड़ता चौबीस घंटा

न्यूज चैनलों में जब चौबीस घंटे न्यूज दिखाने की होड़ शुरू हुई थी तो बड़ा शोर शराबा हुआ था । पल-पल की ख़बर! हर पल की ख़बर ! पर समय बीतने के साथ ये चौबीस घंटे इनपर अब भारी पड़ने लगे हैं। कहाँ से लायें इतनी ख़बर । फ़िर शुरू हुआ ख़बरों को बार-बार, लगातार दिखाने का दौड़ । पर इससे जो नया है वही न्यूज है वाला फंदा ही बदल गया। सुबह से शाम तक एक ही न्यूज जब तक कि कुछ नया हाथ न लग जाए । इसके बाद न्यूज को खींचने का दौड़ शुरू हुआ। समाचार की दुनिया में जिसे फॉलोअप कहा जाता है। जैसे सुनीता विलियम्स ने अन्तरिक्ष में जा कर न्यूज बनने लायक काम किया(मैं सुनीता की उपलब्धि को कम नहीं कर रहा हूँ) तो उनकी सारी पसंद नापसंद भी न्यूज बन गया । खाने में क्या पसंद है, नहीं है आदि-आदि। इनके सारे संबंधियों को पकड़ कर न्यूज बनाया जाने लगा। अभी एक मई को महाबली खली की घर वापसी पर जी न्यूज ने तकरीबन एक घंटे का कार्यक्रम दिखाया गया । उनके पैट्रिक गाँव में उनका मकान बन रहा है। अब खली न्यूज हैं तो उनका बनता हा माकन भी न्यूज हैऔर उसमें काम करने वाले मिस्त्री भी न्यूज है। खली के दोस्त भी न्यूज हैं और बचपन में खली लोटा लेकर कहाँ फारिग होने जाते थे शायद ये भी न्यूज है। पता नहीं इसे क्यूं छोड़ दिया उनलोगों ने। अभी एकाध सप्ताह पहले आजतक तो हाथ धोकर खली के पीछे पड़ गया था । उनकी हार की ख़बर भी उसी शान और जज्बे के साथ दिखायी जा रही थी जिस तरह क्रिकेट में भारत की जीत को दिखाया जाता है। इधर खुछ दिनों से टाईम पास करने के लिए आई पी एल नाम का झुनझुना हाथ लग गया है। वो भी अधनंगी लड़कियों के लटकों-झटकों वाला बिकाऊ झुनझुना । जब जी में आया बैठ गए झुनझुना लेकर । टाईम काटने के लिए ये चीजें भी जब नाकाफी रहीं तो मनोरंजन चैनलों की चीजें उठाकर पडोसने लगे । कभी धारावाहिकों की कहानी तो कभी लाफ्टर शोज के फुटेज । धारावाहिकों से डर कर यदि आपने न्यूज चैनल ऑन किया है तो यहाँ भी आपकी खैर नहीं है। सास बहू और साजिश को वहां नहीं झेला है तो यहाँ झेलिये । बच कर कहाँ जायेंगे। दाऊद के पीछे पड़े तो उसे इतनी बार दिखाया कि अँधा भी दाऊद को पहचान ले। कभी कभी तो ये न्यूज चैनल वाले ऐसा खौफ पैदा कर देते है कि पूछिए मत। प्रलय होने वाला है। सृष्टि ख़त्म होने वाली है। अरे भाई, सृष्टि जब ख़त्म होगी तब होगी , अभी से लोगों को क्यों हलकान कर रहे हो । भूत प्रेतों वाली चीजें तो अब न्यूज चैनलों का अहम् हिस्सा बन गयी हैं । और प्रस्तुतकर्ता भी पता नहीं कहाँ से ढूंढ कर लाते हैं। कहानी से पहले इन्हें देख कर ही डर लगता है। चैन से सोना है तो जाग जाओ । अरे भइया , जब जग ही गए तो सोयेंगे भूत या कत्ल देख कर? बलात्कार की खबर इतने उत्साह से दिखाते हैं कि क्या कहें। और हाँ, सबसे अद्भुत तो इनका ब्रेकिंग न्यूज होता है. ब्रेकिंग न्यूज- सोनिया गाँधी की नींद खुल गयी. ब्रेकिंग न्यूज- फलाने टीम की मीटिंग ख़त्म हुई. ब्रेकिंग न्यूज- राहुल गाँधी आज टहलने निकले . किसी दिन आप देखेंगे - बकरी ने बच्चा दिया - ब्रेकिंग न्यूज . ब्रेकिंग न्यूज की एक और खासियत है- यह कई चैनलों पर एक साथ दिखाया जाता है. एक और बड़ी मजेदार चीज होती है इन न्यूज चैनलों में. किसी मुद्दे पर बहस के लिए अतिथि बुलाये जाते हैं. अपेक्षा ये रहती है कि अतिथि बोलेंगे और प्रस्तुतकर्ता समन्वय का काम करेंगे परन्तु अतिथि बोलने के लिए मुंह खोलते ही हैं कि प्रस्तुतकर्ता बोल पड़ते हैं अतिथि को बीच में ही चुप करा दिया जाता है. और संयोग से बहस किसी नतीजे पर पहुँचता प्रतीत होता है तो इनका टाईम ही ख़त्म हो जाता है और अधिकांश बहस बिना किसी तीजे पर पहुंचे ही ख़त्म हो जाती है. आशा ये की जाती थी कि न्यूज चैनलों की बढती तादाद से पैदा हुई स्पर्धा से इनमें गुणात्मक सुधार होगा, कुछ अच्छी चीजें देखने सुनने को मिलेंगी पर हुआ इसका उल्टा . न्यूज चैनलों का स्तर दिन-बी-दिन गिरता ही चला गया . ईश्वर इन्हें सुधार की प्रेरणा दे.
वरुण राय

4 comments:

भागीरथ said...

वरूण जी
आपकी बात तो शत प्रतिशत सच है कि टीवी चैनलों में जो परोसा जा रहा है वह अपनी हदें पार कर रहा है। टीआरपी की अंधी होड चैनलों के इस पतन के लिए जिम्‍मेदार हैं। तब तक टीआरपी का यह खेल खत्‍म नहीं होता तक इनके स्‍तर में सुधार होने की संभावना नहीं है। चैनलों से समाचार गायब हैं और क्रिकेट,क्राइम,सेलिब्रिटी और सिनेमा की छाया हुआ है। इसके पीछे पूरा दोष टीवी चैनलों को देना भी ठीक नहीं होगा क्‍योंकि भी पैसा कमाने के लिए काम कर रहे हैं। वास्‍तव में दोष तो हमारे देश के दर्शक वर्ग का है जो इसी तरह के प्रोग्राम पसंद करता है।

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

भाईसाहब अभी तो गनीमत है वरना आगे अगर कंपटिशन बढ़ गया तो ये लोग बताने लगेंगे कि फलां नेता या अभिनेता ने क्या-क्या खाया कितना खाया और हगा कितना और मूता कितना यानि इनपुट और आउटपुट का पूरा हिसाब.......

अबरार अहमद said...

सही है। रूपेश भाई की बात से भी मैं सहमत हूं। कंपटीशन बढा तो सच मानिए चैनल वाले सडक पर उतर जाएंगे। मैं तो यही सोच रहा हूं अगर हंसी के नए भांड अगर एक दिन गायब हो गए या लोग इनसे उब गए तो न्यूज चैनल वालों का क्या होगा।

Anonymous said...

वरुण भाई,
लगता है आपने और इनलोगों ने भी दद्दा वाली पोस्ट नहीं देखी. अरे फिर से देख लो. बहुत हुआ चुतिये चैनल वालों तुम्हारी दुकानदारी अब बंद होने के कगार पर है क्यूंकि तुम्हारा दर्शक अब कम हो रहा है.वैसे भी अब भडास का जमाना आ गया है सो चेतो चैनल वालों क्यूंकि अब टी आर पी भी तुम्हारे पक्ष मैं नहीं जाता दिख रहा है, चेतो नहीं तो लाला जी न्यूज़ चैनल को छोर कर ब्लोग चलाना शुरु कर देंगे.
खी....... खी.......खी.....

जय जय यशवंत
जय जय भडास.