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15.5.08

मिले कुछ वक्त बे वक्त जिन्दगी

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

एक दिन इसी तरह से अगर लिखते रहे तो इस एक लाइन की लम्बाई जरूर बढ़ जाएगी बस लगे रहिये...

Anonymous said...

मिले कुछ वक्त बे वक्त जिन्दगी
तो लिखा डालो भडास पे बन्दगी

दोस्त आगे तो बढो