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5.5.08

महानगरों में पत्रकारिता का सच... (अक्षत सक्सेना की भड़ास)

भड़ास ज्वाइन करने के लिए रोजाना छह से दस मेल मेरे पास आती हैं। इनमें से एक मेल अक्षत सक्सेना की भी है। उन्हें मैंने भड़ास ज्वाइन करने के लिए इनवीटेशन तो भेज दिया है पर उन्होंने अपनी भड़ास निकालने के लिए मेंबर बनने के बाद लिखने की जहमत उठाने के बजाय, लिखकर मुझे डायरेक्ट मेल कर दिया। उनकी भावना का कद्र करते हुए उनकी भड़ास को हू ब हू प्रकाशित कर रहा हूं। उम्मीद है, आगे से अक्षत जी भड़ास का सदस्य बनकर खुद ही अपनी बात यहां सीधे सीधे लिख सकेंगे क्योंकि भड़ास की खासियत यही है कि यहां जितने भी भड़ासी सदस्य हैं (290) वो खुद ही संपादक हैं। उनके लिखे को कोई संपादित नहीं करता। वे लिखते हैं और तुरंत पोस्ट कर देते हैं और फिर सारी दुनिया पढ़ती है।

क्योंकि हम यह मानते हैं कि इस देश का हर पढ़ा लिखा पत्रकार और हर पत्रकार संपादक होने की हैसियत रखता है। हमें अपने साथियों के विवेक पर भरोसा है।

आप सभी साथी अक्षत जी के लिखे को पढ़ें और इस पोस्ट को उनकी पहली पोस्ट मानकर उनका गर्मजोशी से स्वागत करें।


जय भड़ास
यशवंत

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महानगरों में पत्रकारिता का सच

आज के इस बदलते युग में हर इंसान अपनी पहचान बनाने में लगा हुआ है फिर इसके लिए उसे कुछ भी कर गुजरना पड़े और इसके लिए सबसे बढिया रास्ता है की आप पत्रकार बन जाओ।

जी हां, आपको पढ़ कर हसी आ रही होगी पर अब ये हकीक़त है।

अगर हम महानगरों की बात करे तो यह पर आपको बहुत से ऐसे लोग मिल जायेंगे जो अपने आप को किसी भी प्रठिस्तित अख़बार या न्यूज़ चैनल का रिपोर्टर बताएँगे हालाकि उनका सीधे तौर पर उस संस्थान से कोई सम्बन्ध न हो पर आख़िर किसी न किसी ने उनको ये दर्जा दिया है जिसका वो फायदा उठा रहे है। शर्म आनी चाहिए ऐसे लोगो को जो उन लोगो के हाथो में ऐसी बागडोर को दिए हुए है जिनका पत्रकारिता जगत से कोई सम्बन्ध नही है। आज हर पत्रकार टि आर पी के चक्कर में अपनी नैतिक जिम्मेदारी भूल चुका है। मैं स्पेसिल्ली इलेक्ट्रोनिक मीडिया के पत्रकारों के बारे में कह रहा हू। चूँकि मै प्रिंट मीडिया से उतना मुताखिब नही हू इस वजह से उस पर कोई भी टिप्परी करना अनुचित होगा। लेकिन कही न कही खोट उसमे भी होगी।

आज महानगरों की तो ये स्थिती हो चुकी है की हर दूसरा व्यक्ति आपको एक ही न्यूज़ चैनल का रिपोर्टर मिल जाएगा। हर व्यक्ति की गाड़ी में आपको बड़े बड़े अक्षरों में प्रेस लिखा मिल जाएगा।

लीजिये साहब हो गए पत्रकार।
अब इनका कोई कुछ नही बिगाड़ सकता है।
अब ये बेरोक रोक टोक कही पर भी आ जा सकते है।
कुछ भी कर सकते है।
किसी से भी लड़ सकते है।
उसे मार सकते है या उसके खिलाफ थाने में झूटी रिपोर्ट लिखा सकते है।

जी हा, ये सब कुछ कर सकते है और आख़िर करे भी क्यों न। आख़िर उन सबके पीछे हाथ भी तो इनके बिग बॉस का है। मतलब असली रिपोर्टर का भाई। सीधा हिसाब है। अब चैनल को चाहिए ख़बर ओर ख़बर के लिए रिपोर्टर को तो पूरे सहर में दौड़ना पड़ेगा न। अब इतने बड़े महानगरों में कोई अकेला रिपोर्टर कैसे काम करे। तो चलिए संस्थान नही तो क्या हुआ हम ही रिपोर्टर नियुक्त करे देते है। बस आपके पास एक अदद कैमरा और मोटर साइकिल होनी चाहिए। आप भले ही आठवी पास हो इस से कोई फर्क नही पड़ता है। यहाँ आपकी एडुकेशन के बारे में कोई भी कुछ नही पूछेगा। बस आप को जल्द से जल्द ख़बर ख़बर ले के आनी है। आपकी नौकरी पक्की। अब बात पेमेंट की तो साहब कुछ दे देते है वरना कुछ ने तो कह रखा है जैसे कही वसूल कर सको कर लेना यार कोई कुछ कहे तो हमे बता देना हम संभाल लेंगे। लीजिये साहब, बची कुची कसर भी अब पुरी हो गई। अब हर वो दूसरा व्यक्ति जो टेंपो स्टैंड पर काम करता था या जो सब्जी का ठेला लगता था या वो जो पहले अपराधी थे पुलिस से बचने के लिए पत्रकार हो गए। अब ऐसे ही लोग महानगरों की पत्रकारिता कर रहे है।

अब आप ख़ुद अंदाजा लगा सकते है की इस टि वी पत्रकारिता ने वास्तव में खबरों का स्वरूप बदल कर रख दिया है। अब खबर होती नही है, खबर करवाई जाती है ताकि जो असली पत्रकार है उनकी नौकरी बची रहे और जो पत्रकारिता का चोला पहन कर घूम रहे है उनका धंधा भी चलता रहे। अब ये हकीक़त लोगो को समझ में आ रही है और अब आम जन मानस अब इस चीज़ को पहचान चुका है। अब समय आ गया है की हर पत्रकार अपनी जिम्मेदारी को ख़ुद संभाले और इन व्यक्तियों को कम से कम पत्रकारिता जगत से तो हटा दे ताकि सच्ची पत्रकारिता जिंदा रहे !

--अक्षत सक्सेना (AKSHAT SAXENA)
akshatindia53@gmail.com

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

अब देखना है कि अगली किसकी बजाते हैं या बस पत्रकारों की ही सार्वजनिक हो चली है कि जो आया बजा कर चल दिया.....

Anonymous said...

भाई,
कड़वा सच है सो लोगों को लगेगी. बजाते रहो वैसे रुपेश भाई पत्रकारों की बारी शायद इस लिए कभी ख़तम ना होने वाली है क्यूंकि इस मूक वघिर समाज के आवाज हैं ये और अगर आवाज ही बहूत से रोगों से ग्रसित हो जाए तो हमारे डाग्दर बाबु को इलाज तो करना ही पड़ेगा ना, ई ससुर को थोड़े ना पता होता है की उसकी खांसी बहूत लोगों को हैजा फैला रही है .
जय जय भडास