Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

9.5.08

खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के

हंसते अनुप्रास मिले सांसों के वृंदावन में
खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के
शोक दामन में क्वांरी संध्या के
खिलखिलाते ही रहे बंद तेरी बातों के
रूप की धूप खिली देह के विंध्याचल में
गुनगुने जिस्म हुए गंधभरी पांखों के
मुक्तक-सा झरता निमिष-निमिष प्यार तेरा
छंद हुए और मुखर बातूनी रातों के
गुनगुनाती है हवा श्लोक तेरे गातों के
खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के
मेंहदी रचे पृष्ठों पर सोनाली हाथों के
हंसते हैं हस्ताक्षर प्यारभरी सांसों के
खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के।
खालीपन सन्नाटा संस्मरण प्यासों के
दहका गये चिंगारी जंगल में बांसों के
जैसे चंदन है जिये दंश लिए सांपों के
खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के।

पं. सुरेश नीरव
मों. ९८१०२४३९६६

(डॉ. रूपेशजी आयुर्वेद में तो वैद्य को कविराज कहा ही जाता है इसलिए कवि तो क्या नैसर्गिकरूप से ही आप कविराज हैं,हां जनाब अबरार अहमद जरूर एक मुकम्मिल शायर की शौहरत हासिल करने की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं और रजनीश के.झा तथा वरुण राय भी जल्दी-से-जल्दी कविया जाएं, मेरी यही है दुआएं..।)

4 comments:

यशवंत सिंह yashwant singh said...

नीरव भाई, जय हो.....बढ़िया है सर
जल्द ही भड़ास पर बाईं ओर आपके छंदों का पूरा कलेक्शन देखने को मिलेगा ताकि नए पाठकों को आपके अब तक के सभी छंद एक ही जगह एक ही क्लिक पर मिल जाएं। ये मैं कई दिनों से सोच रहा हूं पर व्यस्तता की वजह से कर नहीं पा रहा हूं। आप किसी दिन फोन करके मुझे हड़का दें तो अगले दिन हो जाएगा, ऐसा मुझे लगता है।

वृंदावन और विंध्याचल के साथ जो ये शब्दों की शानदार तुकबंदी है, वो बेमिसाल है। लगता है, जैसे ब्रह्मा ने आपको बनाते वक्त सबसे ज्यादा मेहनत आपकी दिमाग रचना में की है, सारे शब्दकोष डाल दिए और फिर इमोशन भी और फिर बिंब भी और फिर भेज दिया जमीं पर......

खालीपन सन्नाटा संस्मरण प्यासों के
दहका गये चिंगारी जंगल में बांसों के
जैसे चंदन है जिये दंश लिए सांपों के
खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के।

जीते रहें, लिखते रहें, और हम लोग पढ़ते गुनते रहें....
यशवंत

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

जैसे चंदन है जिये दंश लिए सांपों के
खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के।
दुनिया उलट ही गयी भेजा फिरने से
लटकने लगे शकरकंद साले शाखों पे । ।

अब तो पंडित जी ने भी कह दिया कि कविराज हैं तो जब तक ससुर हम राजकवि न मान लिये जाएं हम भी ऐसे ही तुकबंदियां पेले रहेंगे और कहते चलेंगे कि "पेल रहा हूं कविता जबरन प्रियवर तुम्हें पढ़ाने को.......

Anonymous said...

पंडित जी,
सादर नमन,
ये भी बेहतरीन रहा और यशवंत दादा का विचार तो सर्वोत्तम है की पंडित जी को एक कोने में डाल दो ;-) पड़े रहेंगे और छोरते रहेंगे कवियाते रहेंगे. गोलियते रहेंगे..

पंडित जी माफ़ करियेगा जरा ठिठोली का दिल करने लगा है ;-)
आदेश पालित होगा. वैसी आपके नए नए मधुरवानी से ताजगी आ जाती है.

दहका गये चिंगारी जंगल में बांसों के
भाई भडासी जो ठहरे
जंगल से बांस गायब हो गए
अरे वो तो गायब होंगे ही
भडासी जो उसे ले आये
चुतियों हो जाओ तैयार
भडासी के पास है बांसों का भण्डार

जय जय भड़ास

VARUN ROY said...

ये लो, गुरुदेव को पता ही नहीं कि चेला पहले से कवियाने की कोशिश कर रहा है.
तुम सूर्य हो गुरुवर
मैं दीये की बाती भर
निर्झर सी बहती तेरी कविता
मैं लिखता हूँ पर कुहर कुहर
लिख पाऊँ कुछ तेरे जैसा
कोशिश में हूँ हर शामो-सहर .
वरुण राय .