Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

11.6.08

डाक साहब, लीजिए फिर आई आपकी नीलोफर- फड़फड़ाती, गरियाती हुई

अपने डाक्टर साहब, रूपेश श्रीवास्तव जी, सर्वे भवंति सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः वाले आदमी। जड़, चेतन, जगत, अदृश्य, नश्वर, अनश्वर सबकी फिक्र करने वाले, बस अपनी छोड़ के। अपनी क्या, जी ही लेंगे। बाल बढ़ गए, लाओ घर में रखी कैंची से ही काट लें। क्या होगा, किसी साइड का छोटा, किसी साइड का बड़ा हो जाएगा। इससे क्या होगा। लोग बुरा मानेंगे। मानने दो। लोगों के बुरा मानने से क्या होता है, कुछ नहीं होता, सिर्फ लोगों का टाइम खराब होता है, अपना तो कुछ नहीं बिगड़ता, बल्कि और मस्त रहते हैं।

जूता फट गया। लाओ खुद सी लें। जब मोची भइया सी सकते हैं सुई धागा से तो हम काहे नाहीं। घर में रखा सूजा और धागा मिलाकर बैठ गए सिलने। रात में जब फोन करो, सो गए क्या डा. साहब? तुरंत खनकती आवाज आती है, नहीं मैं सोता कहां हूं, कई बार जगते हुए दिखे लोग सोते रहते हैं और कई बार सोए लोग जगे रहते हैं। ये तो देखने वाले की दृष्टि है।

जहां जो दिखा मुसीबत में उसी के संग हो लिए, उसी के लिए लड़ने लगे। दुखियों, पीड़ितों, परेशाहालों की जैसी मदद संभव हुई की। नकली शराब विक्रेताओं से निपटने के लिए उनकी शराब खरीदकर बहानी शुरू कर दी। जब शराब माफियाओं को पता चला तो हमला बोल दिया इन पर। धूल झाड़ पोंछकर फिर उठ खड़े हुए। चल पड़े।

बिल्डर के बनाए फ्लैट में दरारें आ गईं और पार्किंग की जगह न होने पर सवाल उठाया तो बिल्डर ने शिवसेना वालों को आगे कर धमकाना शुरू कर दिया। डाक्टर साहब ठहरे पगले, उन्होंने कहा कि आ जाओ बेटा, यहीं हूं। बिल्डर ने पूरी बिल्डिंग की पानी रोक दी और कहा कि डाक्टर को भगाओ तो पानी सप्लाई करेंगे। डाक्टर साहब बन गए हनुमान और बिल्डिंग के दर्जनों घरों में बड़ी बड़ी बाल्टी (बल्कि बाल्टों) से ले जाकर पानी भर दिया और आश्वस्त किया कि बिल्डर केवल दरार डालना चाह रहा है हम लोगों की एकता में ताकि उसकी बनाई बिल्डिंग की दरार किसी को नजर न आ सके और उस पर कोई सवाल न उठा सके। आखिरकार मोहल्ले के लोग डाक्टर साहब से दूर न हुए, बिल्डर को भीगी बिल्ली बनकर आना पड़ा।

ये सब बातें इसलिए नहीं लिख रहा हूं क्योंकि मुझे तेल लगाने का शौक है। इसलिए लिख रहा हूं कि ये जो अनाम नागिन नीलोफर है ना, जो अपनी पहचान छिपाकर इतनी रीयलिस्टिक बातें बोल रही है जैसे वो तस्लीमा के ठीक बाद उनका उत्तराधिकार लेने वाली हो। नीलोफर लिखती है...दुनिया के इस छोर से वहां तक बरास्ते समुद्र गए अजगर इंटरनेट केबिल के किसी एक तार के किसी हिस्से में मेरे या आपके ई-पते या पासवडॆ का अस्ित्तव एक बिंदु, एक स्फुरण से ज्यादा कुछ नहीं होगा। वहां हमारा सूक्ष्म है स्थूल नहीं। । सही लिखा, लेकिन उसे नहीं पता कि सूक्ष्म और अति सूक्ष्म के रिवर्स स्थूल और महा स्थूल और मानव और महा मानव भी होता है और ये दोनों एक ही परिघटनाएं हैं। सूक्ष्म या घटिया ही स्थूल या महान हो जाता है और महान या स्थूल ही घटिया या सूक्ष्म हो जाता है। दोनों में कोई दिक्कत नहीं है।

ये सूक्ष्म सा रिश्ता ही आज डा. रूपेश और मेरे जैसे भड़ासियों के लिए एक महान रिश्ता बन गया है। इसकी शुरुवात सिर्फ पासवर्ड, इंटरनेट, ई-पते से ही हुई थी। लेकिन जब हम एक दूसरे से मिले तो लगा, अरे, ये तो अपना सुधरा हुआ रूप है, दूसरे ने कहा, अरे ये तो अपना बिगड़ा हुआ रूप है। और हम मिलकर पूर्ण हो गए। जितना जाने, कम ही जाने, जितना जान लिया, बहुत जान लिया।

दिक्कत दृष्ठि, सोच, आत्मा और ऊंचाई का है। कितना विशाल हृदय व मस्तिष्क है आपका। तो नीलोफर, ये सब आप न समझ सकेंगी क्योंकि आपका एप्रोच सैडिस्ट है। क्योंकि आपकी जिंदगी दूसरों की जिंदगी के निगेशन में है। आप अपने जैसा ढूंढ कर बताइए।

दिक्कत है नीलोफर को। डाक साहब से है। हरे भाई से है। हमसे है। तुमसे है। सबसे है।

और ये दिक्कतें तभी भड़ास के रूप में नीलोफर नाम से बाहर निकलती हैं जब नीलोफर के पूर्व का व्यक्तित्व व नाम विलीन हो जाया करता है, जो कि असली नाम व व्यक्तित्व है, पर उस व्यक्तित्व की जाने क्या मजबूरियां हैं जो उसे खुद के अस्तित्व के साथ इन दिक्कतों को प्रकट करने से रोकती है।

नीलोफर को दिक्कत है। वो इसलिए है कि उसे भड़ासियों ने इंटरटेन करना शुरू कर दिया।

किसी को लगा कि अरे देखो, कितनी बड़ी भड़ासिन आई है ये, ये तो रियल भड़ासी है:) कुछ लोग लगे स्वागत करने, आहा...लड़की है, साफ बोलती है, बढ़िया लगती है, लाओ शामिल कर लो अपनी मंडली में:}

और ये सब पहली बार नहीं हुआ है।

शुरू से होता आया है भड़ास के साथ।

जहां कोई अनाम या नामधारी स्त्री, लड़की, महिला आई नहीं कि हम भाई बंधु लगते हैं बल्ले बल्ले करने और उसे तरह तरह से रिझाने, समझाने, पुचकारने। और मैं भी ये करता हूं, मतलब ये फटकार मुझे खुद को भी है :)

........अरे यार, आई है तो आने दो। उसका मन किया कमेंट करने का, करके जाने दो। काहें उसे भाव देते हो। एक तो अनाम, दूसरे न शक्ल-सूरत। मतलब, पूर्ण अदृश्य। और बातें हो रही हैं ब्रह्मांड, योनि, परमाणु बम, बहन, केबिल....जाने क्या क्या। सामने आओ तो बात बने। तो बात करें।

इन अनामों से तो हमेशा से मुझे चिढ़ रही है। ये अनाम लोग बिना नाम के तो इतनी बड़ी बड़ी बातें करेंगे कि लगेगा कि दर्शन उनके हर रोएं रोएं से बरस रहा है। या फिर अनाम नाम से दूसरे किसी नामधारी रूपधारी को लगेंगे गरियाने, दे तेरी की, मांकी, आंखकी, कानकी.....। लेकिन जब नाम के साथ सामने आएंगे तो लगेंगे हिनहिनाने...ये नहीं, वो नहीं, अभी नहीं, तब नहीं, आपका, उनका, जी हां, हां जी, यस सर, नो सर, बिलकुल सर, उचित है, अनुचित है, धैर्य है, अधैर्य है, ये है, वो है, क्रांति है, महिला है, भ्रांति है, शांति है, अराजक है, सर्जक है, चिंतक है, गधा है, उल्लू है, लड़वा है, लहसुन है, चूतिया है, चील है, कौव्वा है, लोकतंत्र है, रेशनल हैं, लाजिकल हैं.....टाइप की बात करने।

पर हम भड़ासी ऐसे नहीं है। एक तो हम जो हैं साफ साफ हैं, नाम से हैं, शक्ल सूरत से हैं, सबके सामने हैं, बुरे हैं तो सामने हैं, अच्छे तो खैर कभी रहे ही नहीं.....गुन तो न था कोई भी, अवगुन मेरे भुला देना टाइप के।

तो ये जो नीलोफर हैं, तस्लीमा की कथित उत्तराधिकारी, उन्हें तभी तस्लीमा का असली उत्तराधिकारी माना जाएगा जब वो अपने असली नाम, पहचान, गांव, घर के साथ हाजिर होंगी। क्योंकि तस्लीमा को यही सब कहने का इस मर्दवादी दुनिया ने कितना बड़ा दंड दिया और अब भी दे रही है। लेकिन वो तस्लीमा रीयल की हीरो है अपन लोगों की जो किसी सत्ता, शासन, मर्द, वर्द की परवाह नहीं करती। चाहों लाठी मारी, चाहे भगाओ, चाहे कुर्सी तोड़ो, चाहे वेश्या कहो, चाहे अधर्मी करार दो...वो जीवट की महिला अपनी बात पर कायम रहेगी, मुश्किलें झेलती रहेगी।

इस औरत को दिल से चाहता हूं मैं। उसे चूमता हूं मैं। उसे प्यार करता हूं मैं। उसे मैं असली भड़ासी मानता हूं।

वो मर्दों की इस दुनिया में असली औरत है। बाकी में से कुछ तो अपनी योनियों और अपनी छातियों का खुलकर इस्तेमाल करतीं हैं, अलग अलग हालात व हालत के चलते और कुछ इन्हें बचाती छिपाती लिए फिरतीं स्त्रियां हैं। और कुछ इन दोनों के बीच में है, जहां जैसा मौका देखा, वैसा और ये श्रेणी कथित बौद्धिक महिलाओं के लिए ज्यादा फिट होती है।

मतलब, इन तीनों ही कैटगरी में महिलाओं के लिए मुख्य उनकी योनि और उनकी छाती आदि ही हैं। वे चाहें जितनी बौद्धिक बातें करें।

लेकिन तस्लीमा, किरण बेदी जैसी हजारों हजार महिलाएं अपने नाम और काम के जरिए यह साबित करती हैं कि कोई लड़की तभी तक लड़की मानी जाती है जब तक कि वो अपनी लड़कीपने को जीती है। आप ऐसा क्यों जाहिर करती हैं कि आप लड़की हैं। आपकी बातें, नखरे, अंदाज....सब इस तरह गढ़े गए हैं कि लगता है कि देखो लड़की है। पर अब लड़कियों की जो एक नई ब्रीड आई है वो इन सबसे परे है। उन्हें जैसे एहसास ही नहीं है कि वो लड़की हैं। ये सही शरुआत है। खुद के होने से उबरना ही एक नए होने की शुरुआत होती है।

तो नीलोफर, अगर आप ये बातें अपनी पहचान के साथ कहतीं, तो यकीन मानिए, आप हिंदी ब्लागिंग की ही नहीं, इस देश की इस वक्त की सर्वाधिक तेवरदार महिला नेता होतीं और मीडिया आपके आगे पीछे भागती, लड़कियां आपको रोल माडल मानतीं। लेकिन जाने क्या बंधन है कि इतना अच्छा दिमाग रखते हुए भी आपको छिप के ये सब बातें कहनी पड़ रही हैं। जरूर आप किसी पार्टी के अनुशासन से बंधी है, वो पार्टी राइटिस्ट तो होगी नहीं, लेफ्टिस्ट ही होगी। और ये अनुशासन आप भंग करती हैं लेकिन अनाम नाम से करती हैं। इस प्रकार आपके व्यक्तित्व के द्वंद्व से आपको थोड़े समय के लिए मुक्ति मिल जाती है क्योंकि आपकी भड़ास निकल चुकी होती है और आप हलका महसूस कर रही होती हैं। पर यकीन मानिए, जिस अनुशासन ने आपको अपनी बात कहने के लिए मुखौटा पहनने पर मजबूर किया है, वो अनुशासन आपको जीवन के आखिर में कठमुल्ला बना देगा और आप किसी चौराहे पर खड़ी होकर हर आने जाने वाले को गालियां देंगी क्योंकि चीजें कभी आपके हिसाब से चली ही नहीं। खैर, ये आपका मामला है। हर आदमी को अपने तरीके से जीने का अधिकार है, यह अधिकार सुरक्षित है सभी के लिए। आपने जो छुप छुप के भड़ास निकालने वाली जिंदगी चुनी है, वो आपको मुबारक। पर ये मंच आप जैसे छुपे रुस्तमों के लिए नहीं है। हम आपसे थोड़े उन्नत लोग हैं क्योंकि हम खुलकर भड़ास निकालते हैं। ऐसा कर पाने में आपको और आपकी स्त्री जाति को अभी एकाध सदी तो लग ही जाएंगे क्योंकि हमारा हिंदी समाज बड़ा ही कमीना और काइयां है। लाख खुलेपन और आजादी की बातें करे, साला असल में लगता है शुद्धता और गुणवत्ता मापने। कुछ उसी तरह जैसे सैफ को करीना का गाउन पहनना पसंद नहीं, सैफ का करीना का खुले घूमना पसंद नहीं, ये न करो, वो न करो.....। वैसे साले बातें करेंगे ऐसी कि जैसे इनसे बड़ा विचारक और आजादी समर्थक कोई नहीं है। यही हम हिंदी वालों की हिप्पोक्रेसी है जिसके खिलाफ भड़ास लगातार मुहिम चलाता रहता है बल्कि कहिए कि भड़ास इसी हिप्पोक्रेसी के रिएक्शन में जन्मा और बढ़ा है।

तो भाई, हम भड़ासियों, नीलोफर जी ने तीन चार कमेंट क्या कर दिए, आप लोगों ने इन्हें सिर माथे पर चढ़ा लिया और वो लगातार सिर चढ़कर मूत रही हैं क्योंकि उन्हें भी मजा आने लगा है। आप तो अपने पूरे नाम व पहचान के साथ यहां हैं और वो एक नकली फर्जी नाम से लिख रही हैं। तो उन्हें तो बड़ा मजा आ रहा है कि डाक्टर रूपेश, जो बहन बोल दिए तो उन्हें डांटकर कह दिया कि, हे डाक्टर सुनो, कोई बहन वहन नहीं। जब डाक्टर साहब ने थोड़ा और दुलराया तो नीलोफर ने दांत और जीभ से चिढ़ाते हुए डाक्टर साहब से कहा नितंब- तंब, तंब, तननन अनंब, अनंब। स्तन- तुम तनतनननना। जांघे-एघें गें-घें (यकीं न हो तो नीचे वाला कमेंट पढ़ लें) और ये सब डाक्टर साहब को झेलना होगा क्योंकि डाक्टर साहब ने एक अनाम को इतना मान दिया पर उस अनाम के पास खोने के लिए कुछ नहीं है क्योंकि जो दृश्यमान नहीं है उसके सामने तो खुला आकाश है। जितना चाहें बकचोदी करो, आपकी पहचान जानने वाला कोई नहीं और अगला जिसके लिए बकचोदी की जा रही है बेचारा सोचेगा कि कहां फंस गए।

पर नीलोफर जी जान लीजिए, डा. सुभाष भदौरिया के शब्दों में, विष कन्याओं के वश में भाई भड़ासी आ जाते हैं पर ये भड़ासी भी पहुंचे हुए संत हैं, समय से सीख लेकर इन विष कन्याओं से छुटकारा पा ही लेते हैं।

आप अपनी जांघों, नितंबों, योनियों आदि को लेकर अचार डालिए और अपने पास रखिए। हम रुखे सूखे अकेले ही सही।

मुझे पता है कि इस पोस्ट के बाद तुम्हारी गरजती गरियाती हुई पोस्ट आएगी लेकिन अफसोस, उसे छापने के लिए तुम्हें कोई फर्जी ब्लाग बनाना होगा, कठपिंगल की भांति और उस पर ढेर सारा मसाला लेपन करके सनसनीखेज तरीके से प्रस्तुत करना होगा.......जैसे...यशवंत ने किया अपनी मां से बलात्कार, यशवंत ने की अपनी बेटी से छेड़छाड़....यशवंत फिर गया जेल, कोर्ट से जमानत नहीं मिली....टाइप की हेडिंग लगाकर। क्योंकि तुम लोग जनता को मूर्ख समझते हो, उसे मीडिया की भांति हाइप क्रिएट करके बरगलाना चाहते पर भाई, ये पब्लिक है, सब जानती है।

नीलोफर का आज से कोई कमेंट इस ब्लाग पर नहीं आएगा क्योंकि एक तो हम अनाम लोगों से वैसे ही चिढ़ते हैं, दूसरे किसी अनाम के लफ्फाजी भरे कमेंटों को दो चार बार से ज्यादा इंटरटेन करना पूर्ण चूतियापा है।

उम्मीद है, भड़ास संचालक मंडल मुझे माफ करेगा, तल्ख और खरी खरी बात कहने पर। पर क्या करूं, कई दिन से देख रहा तमाशा, आज भड़ास के रूप में बाहर निकल आया।

नीलोफर, तुमसे माफी नहीं मांगूंगा क्योंकि तुम्हारा कोई वजूद ही नहीं, तुम मर्द हो, स्त्री हो, हिजड़ा हो, जानवर हो, पौधे हो.....क्या हो, हमें नहीं पता। इसलिए इस हवा हवाई इंटरनेटीय दुनिया में अनाम चीजों को कूड़ेदान में डाल दिया जाता है क्योंकि इस तरह की अनाम चीजें अरबों खरबों की संख्या में यहां वहां बिखरी पड़ी हैं औ उन्हें कोई घास नहीं डालता। यही अनामों व उनके द्वारा लिखे गए का हश्र होता है। ये तो हम लोगों का, डा. रूपेश का, हरे भाई का, रजनीश के झा का बड़प्पन था कि उन्होंने आपको अनाम होते हुए भी इतना इंटरटेन किया और आपके कमेंटों को ससम्मान बड़ी बड़ी हेडिंग के साथ पेश किया।

यशवंत सिंह

------------------------------------


(नीलोफर की मूल टिप्पणी)

[भड़ास] New comment on नीलोफ़र की एक और खनखनाती हुई टिप्पणी सादर कर रहा हू....

nilofar has left a new comment on your post "नीलोफ़र की एक और खनखनाती हुई टिप्पणी सादर कर रहा हू...":

प्रिय डाक्टर,

नितंब- तंब, तंब, तननन अनंब, अनंब।
स्तन- तुम तनतनननना।
जांघे-एघें गें-घें

इन शब्दों का उच्चारण अजब, सेसुअस, फोनेटिक सांगितिक विस्तार में लिपटी प्रतिक्रियाएं जगाता है न। जिन्हें मुझे कहना होगा ताकि आप जान-सुन सकें। जानिए। हिंदी फिल्मों में ज्यादतर आइटम गानों में, आइटम बाला ही अपने अंग-उपांगों का ब्यौरा क्यों देती है ? ( कजरारे-२ मेरे कारे कारे, मेरा लंहगा बड़ा है मंहगा, मैं आई हूं यूपी बिहार लूटने वगैरा) शायद इसलिए कि जब औरत अपने अंगों का ब्यौरा दे तो लगता है कि अपनी दूकान के आइटमों का विग्यापन कर रही है। इस तकनीक का इस्तेमाल पुरूष में फतांसी जगा पाने के लिए अनिवार्य उपलब्धता-बोध इंजेक्ट करने के लिए किया जाता है। खैर किसी को भी उसके लैंगिक पहचानों से अलग कर के देखना असंभव है।

यहां अमेरिका में भी हिलेरी िक्लंटन जो प्रेशिडेंसियल रेस में पिछड़ती लग रही है को कार्टूनों में योनि में ही परमाणु बम छिपाया दिखाया जा रहा है, और कोई जगह माकूल नहीं मिली। नारीवाद के मदीना अमेरिका में हिलेरी जैसी ताकतवर औरत का चित्रण भी वैसा ही किया जा रहा है जैसा हमारे यहां थोड़ी फूहड़ किंतु बेहद लोक प्रिय लोक कथाओं में भेड़ों, सूयॆ, चंद्रमा, आदमी वगैरा को अपने गुप्त कोटरों में छिपा लेने वाली चरवाहिनों या पराकामुक िस्त्रयों का किया जाता रहा है तो फिर क्या कहा जाए।

खैर मेरा मतलब सिफॆ अपनी अस्िमता और वैचारिक पहचान से है। हम नेट के आभासी अंतरिक्ष में सिफॆ विचार ही तो हैं। कहां के भाई और कहां की बहन। दुनिया के इस छोर से वहां तक बरास्ते समुद्र गए अजगर इंटरनेट केबिल के किसी एक तार के किसी हिस्से में मेरे या आपके ई-पते या पासवडॆ का अस्ित्तव एक बिंदु, एक स्फुरण से ज्यादा कुछ नहीं होगा। वहां हमारा सूक्ष्म है स्थूल नहीं।

फिर भी पता नहीं क्यों तुम्हें कर्मवती की चुटिया में बंधा हुमांयू छाप सेकुलर लाल रिबन कहने का मन हो रहा है। आशा है बुरा नहीं मानोगे। मान भी जाओ तो क्या...........।

Posted by nilofar to भड़ास at 11/6/08 3:37 PM


नीलोफर विवाद से जुड़ी पिछली पोस्टें पढ़ने के लिए क्लिक करें...

एक और खनखनाती टिप्पणी

और

बड़ी प्यारी सी मजेदार...

5 comments:

KAMLABHANDARI said...

yashwantji is post par aapko ek baat jarur kahna chahungi ki agar galti ek naari ne ki to uski sajaa saari naari jaati ko kyu ? kya fark rah gaya bhadasiyo me aur dushro me. hum bhi to gehu ke saath -saath ghun peesh rahe hai bilkul auro ke jaise .

KAMLABHANDARI said...

hum bhadasi hai eet ka jawab patthar se dena jaante hai .par ye bhi jarur dekhna hoga ki kahi ye patthar bekasuro ko to chot nahi pahuncha raha hai.

Anonymous said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

Dada,

nilofar naagin hon yaa kenchua..... sukashm ho yaa vishaal...... sach kahna or kahne ki bahaduri rakhan or woh bhi ek bhadaasi ki tarah joo seena taan ke kisi ke seene par chadhne ki himat or kuwat rakhta hai ke liye jigar chahiye. waisai bhi anaam gumnaam or benaam logon ke saath masti karne kaa sauk to hame bhi hai.

jay jay yashvant
jay jay bhadaas

हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा said...

कमला बहन को क्यों ऐसा लग रहा है कि यशवंत दादा ने सब स्त्रियों को कुछ बुरा बोला है क्या कमला जी बिना पोस्ट को पढ़े या समझे ही कमेंट कर रही हैं? एक बात दावे के साथ कहना है कि नीलोफ़र नामधारी स्त्री नहीं है,ये भड़ास से कूद कर डा.रूपेश के मेडिकल एडवायजरी ब्लाग पर पहुंच गई है और चैट बाक्स में दादा को कोस रही है कि हम दोनो के प्यार में यशवंत क्यों आ रहा है, इस बेवकूफ़ को ये नहीं पता कि मेरा भाई डा.रूपेश साक्षात भगवान भोलेनाथ है और ऐसी न जाने कितनी नागिनें उसके चारों ओर लिपटी रहती है, जो योनि(मेरी भाषा में नीलोफ़र जी इसे चूत कहते हैं)में हाथ घुसा-घुसा कर सिस्ट,फायब्रायड और कैंसर आदि का परीक्षण कर रहा हो उसे तुम कौन सा नारी वाला पुर्जा दिखा कर रिझाओगी थोड़ा विचार कर लो........