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6.6.08

जनप्रिय बागी

अपनी तमाम ऊंचनीच के बावजूद इस दौर के बागी जनप्रिय थे। अंग्रेजी कुशासन कुशासन और अव्यवस्था के खिलाफ लक्ष्यहीन और बहुत हद तक निजी ही सही उनकी बगावत बहुसंख्यक उत्पीड़ित जनता की प्रतिध्वनि ही थी। बागी मानसिंह के समाकालीन मुरैना जिले की पोरसा तहसील के गांव नगला के लाखनसिंह की लोकप्रियता तो इतनी अधिक फैल गई थी कि लोगों ने उन पर लंगुरिया (लोकगीत) तक बना लिए थे। जैसे-
नगरा के लाखनसिंह लगुंरिया।
तखत हिलाए दओ दिल्ली को।
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1 comment:

Anonymous said...

भैये,

बागी जो होते हैं वो जनप्रिय ही होते हैं मगर ससुरे सरकार ओर व्यवस्था नामक तंत्र को नही सुहाते कयोंकि उनकी सारी पोल-पट्टी जनता के आगे खोल के रख देतें हैं। सो एक मन से मान कर चलो कि जो जो बागी हुआ वो भारत का सच्चा देश भक्त था, फ़्री टिकट वाले स्वतनत्रता सेनानी कि तरह नही।

जै जै भडास।