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14.6.08

और ये रहीं अपनी प्यारी-सी मनीषा दीदी

कल आप लोगों को डा. रूपेश का चेहरा दिखाया। आज मनीषा दीदी के साथ हाजिर हूं। इंडिया न्यूज मैग्जीन के 14 से 20 जून वाले साप्ताहिक अंक में जो कवर स्टोरी द थर्ड सेक्स नाम से प्रकाशित हुई है, उसमें मनीषा दीदी की तस्वीर तो है ही, उनके ब्लाग के बारे में एक अलग स्टोरी है, उनके खुद के बारे में एक अलग स्टोरी है और उनके जीवन अनुभवों के बारे में एक अलग स्टोरी है। मैं इनमें से कुछ आप तक पहुंचाना चाह रहा हूं....

यशवंत
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सपने जर्मिनेट होने लगे हैं



मैं समझ नहीं पा रही हूं कि मेरे दिल-दिमाग में जो तेज विचारों की आंधी चल रही है, उसे शब्दों में कैसे मैं लिखूं। मैं कल तक अपने आपको अपने अधूरेपन के लिए कोसती थी कि कब मौत आयेगी और इस नामुराद शरीर से फरी हो सकूंगी। लेकिन मुझे जब से किसी ने भाई बनकर सहारा दिया, मेरी दुनिया बदल गई। अब हिजड़ा होने का लेबल उतर रहा है। इस बात का एहसास हो रहा है कि हम तो बस एक प्रकार की विकलांगता के शिकार हैं जो किसी भी तरह से कोई कमी नहीं है। तीन दिन पहले जब रूपेश भाई ने मुझसे कहा कि कोई पत्रकार मुझसे मिलना चाहती हैं तो मैने साफ मना कर दिया था। मैं किसी पत्रकार से बात नहीं करना चाहती थी क्योंकि इससे पहले पत्रकारों के साथ मेरा अनुभव बहुत कड़वा रहा है लेकिन रूपेश भाई ने कहा- आप सबको एक जैसा न समझें।
वन्दना बहन के दो सवाल सुनकर मैं बहुत इमोशनल हो गई और फिर आंसू रुके ही नहीं। उन्होंने मेरी बीती जिंदगी के बारे में पूछा और ब्लागिंग में मेरे काम को बहुत सराहा। सच कहूं तो पहली बात है कि मैं अपना अतीत भूलना चाहती हूं। और दूसरी बात, जब भी कोई मुझसे यह कहता है कि ब्लागिंग करके मैंने कोई बड़ा काम कर दिया है तो ऐसा लगता है जैसे वो मुझे इस बात का एहसास करा रहा है कि मैं इस लायक नहीं हूं। शायद तभी वो ऐसा कहते हैं, वरना क्यों कहते। क्या कंप्यूटर सीखना, ब्लागिंग करना ऐसे काम हैं जिसे केवल मर्द और औरत ही कर सकते हैं। और मैंने कर दिया तो चमत्कार हो गया?
अब मेरे भीतर एक अजीब सी बात आ रही है, जिससे मुझे अड़चन भी पैदा हो रही है और खुशी भी। पहले मैं बड़े मजे से लोगों के सामने हाथ फैलाकर पैसा मांगा करती थी, लेकिन अब लगता है कि कुछ गलत हो रहा है। मैं केवल इस काम के लिए नहीं हूं। आजकल ताली बजाते बजाते मैं खुली आंखों से एक सपना देखा करती हूं कि....

........मुझे एक बड़े से मंच पर मालाएं पहनाकर सम्मानित किया जा रहा
है।

.......मैंने एक ऐसा स्कूल खोला है जहां मेरे जैसे लैंगिक विकलांग पढ़ने आ रहे
हैं। वे भीख नहीं मांग रहे।

........हम लोगों को पुलिस भी नहीं सता रही है।

...........मैं आफिस में बैठकर रूपेश भाई के साथ प्लान कर रही हूं कि आगे क्या
और किस तरह करना है।

लेकिन अगले ही पल लोकल ट्रेन में चढ़ने वाली भीड़ का धक्का मेरा सपना तोड़ देता है, और मैं फिर से लोकल ट्रेन में भीख मांगने लगती हूं। मुझे यकीन है कि हर रोज जो सपना मैं खुली आंखों से देखती हूं वह एक दिन जरूर पूरा होगा। मैं और रुपेश भाई सबको पढ़ना सिखाएंगे। भाई बीमार लोगों को दवा दे रहे होंगे और मैं नर्स बनकर उनकी सहायता करूंगी। न जाने ऐसे कितने ही सपने आंखों में जरमिनेट हो रहे हैं। न जाने कब फल लगेंगे इन झाड़ों में। जब मेरे सपनों में फल लगेंगे तब मेरे मम्मी पापा मुझे टीवी में देखकर मुझ पर गर्व कर सकेंगे, शरमाएंगे नहीं।
एक लंबा समय हम अधूरेपन में काट चुके हैं। और सच मानिए यह अधूरापन शरीर का अधूरापन नहीं था। यह अधूरापन प्रेम का अधूरापन था। अपनेपन का अधूरापन था। कभी किसी ने अपनाया नहीं था। गले से नहीं लगाया था। कुछ कर दिखाने का हौसला नहीं बढ़ाया था। आज एक डाक्टर ने जब समाज की परवाह छोड़कर बहन बनाया, गले से लगाया, तो हौंसला बढ़ गया। लगता है आज हम भी कोई बड़ा काम कर दिखाने की कूव्वत रखते हैं। बस ये प्यार और हौंसला मिलता रहे। सारी कड़वाहट धीरे धीरे खत्म हो रही है। पहले मैं हिंदी का इस्तेमाल लोकल ट्रेनों में भीख मांगने और गंदी गंदी गालियां देने में किया करती थी, लेकिन अब मैं हिंदी का प्रयोग अपनी हर बात लोगों से बांटने के लिए करती हूं। गाली देने की आदत भी धीरे धीरे छूट रही है, क्योंकि हिजड़ा होने का लेबल धीरे धीरे उतर रहा है। हमें किसी दया या सहानुभूति की जरूरत नहीं है। हम प्रेम और अपनेपन के भूखे हैं। क्या आप खुले दिल से अपने समाज में कभी हमारा स्वागत करेंगे? मैं बेसब्री से उस दिन का इंतजार कर रही हूं।
आपकी
मनीषा
(लैंगिक विकलांग)
मनीषा दीदी के बारे में कुछ तथ्य
-28 वर्षीय लैंगिक विकलांग मनीषा आंध्र प्रदेश के राजमंडरी से हैं।
-मनीषा पांच फुट छह इंच लंबी, बेहद आकर्षक गठीले बदन वाली हैं।
- मनीषा दीदी ग्रेजुएट हैं।
-मनीषा के पिता मध्यवर्गीय किसान हैं और मनीषा के दो बहनों की शादी हो चुकी है।
-मनीषा दसवीं कक्षा की अपनी एक प्यारी सी तस्वीर को अब तक सहेजकर रखी हैं।
-लैंगिक विकलांग समाज में अपना मूल नाम और परिचय बताना पाप माना जाता है इसलिए इस क्षेत्र में कदम रखने के बाद उन्होंने पढ़ाई के अपने सभी प्रमाणपत्र नष्ट कर दिए।
-किन्नर समाज में शीला अम्मा मनीषा की गुरू हैं और मनीषा पूनावाला कुल की हैं।
-मनीषा एशिया की पहली किन्नर ब्लागर बन चुकी हैं।
-मनीषा तेलगू, हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, मराठी और गुजराती भाषाओं की जानकार हैं।
-मनीषा के ब्लाग का नाम है अर्द्धसत्य (http://adhasach.blogspot.com)
कवर स्टोरी द थर्ड सेक्स से साभार
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-वंदना भदौरिया, संवाददाता (इंडिया न्यूज, साप्ताहिक मैग्जीन)

5 comments:

subhash Bhadauria said...

आदरणीय मनीषाजी,
हमारा प्रणाम स्वीकार करें.जिस दिन ब्लॉग की दुनियाँ में आप आयी थी मैंने भड़ास को मुबारकबाद दिया था.
मेरे मन में आपके अस्तित्व को लेकर कभी संदेह नहीं रहा.
नारीबिचारी के नाम पर हाय हाय करनेवालों की कमी नहीं हैं उनकी दृष्टि आप जैसे उपेक्षितजनों की तरफ कैसे जायेगी.
नारी के आँसू पोछने के बहाने उसके मुलायम गालों का स्पर्ष से आनंद लेने वाले,अपने कंधों का सहारा देकर हम बिस्तर होने वाले शरीफ़ बदमाशों का लुच्चपना मुझ से छिपा नहीं है.
मैं तहेदिल से ब्लॉग की दुनियां में आपका इस्तकबाल करता हूँ.
आपको एवं आप जैसे तमाम लोगों को समाज मे स्वीकृति मिले,हक मिलें,इस दुआ के साथ.आमीन.

aditya said...

Manishaji ke bare me padkar bahut achcha laga. bhadas aise logo ko bhi manch de raha hai,yah welcome karne layak hai. Main ek baat kahna chahunga ki Manisha ke alava kisi anay Manishaje ko bhi is kadar banaya jaye ki unhen logo se bhokh mangne ki jaroorat na ho. Is mamle me Roopesh bhai ki tatparta ka main kayal hoon. Roopesh bhai aap aise logon ke liye dil se kary karte rahen.

aditya jha

aditya said...

Manishaji ke bare me padkar bahut achcha laga. bhadas aise logo ko bhi manch de raha hai,yah welcome karne layak hai. Main ek baat kahna chahunga ki Manisha ke alava kisi anay Manishaje ko bhi is kadar banaya jaye ki unhen logo se bhokh mangne ki jaroorat na ho. Is mamle me Roopesh bhai ki tatparta ka main kayal hoon. Roopesh bhai aap aise logon ke liye dil se kary karte rahen.

aditya jha

Anonymous said...

दद्दा,

अब समय आ गया है जब हमारा भडास एक विकलांग जो कि समाज के लिये अछुत है को उसका हक, मान, मरयादा दिलाने में आगे आये ओर समाज की रचनातमकता को लेकर चले ना की लोगों के छोटे सोच का परिचायक मात्र बन कर रहे।

जय जय भडास

KAMLABHANDARI said...

manisha didi aapko bahut-bahut badhaai .sachmuch aapko dekhkar bahut accha laga.isi tarha date rahiye ,aage badhte rahiye kyunki ye ish desh ki khubi ya kami kuch bhi kah leejiye ki inhe unhi logo ka astitva dikhaai deta hai jo bheed me sabse aage rahte hai .