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6.6.08

बागी से आगे

बागियों की नैतिकता
1920-1950, यह वह दौर था जब बीहड़ शरणागत के लिए तीन लोगों को छेड़ना वर्जित माना जाता था। ब्राह्रण, बच्चा और औरत। इस दौर में मानसिंह, लाखन सिंह, डोंगर बटूरी की धाक थी। नैतिकता का यह पैमाना आगे चलकर गिरा। बीहड़गत कारणों के स्तर पर इसमें गिरावट आई। अब बीहड़ में बागी की जगह डकैत थे।
डकैत 1960-70- इन दौर में मोहर सिंह, माधौ सिंह, रूप सिंह, रूपा, माखन-छिद्दा और मलखान सिंह की गोलियों से बीहड़ गूंज रहा था। अब अव्यवस्था के खिलाफ लड़ाई की जगह व्यक्तिगत कारणों ने ले ली। बावजूद इसके डाकूगीरी ने अभी व्यवसाय का रुप नहीं लिया जैसा की बाद में 80 के दशक के बाद हुआ। बीहड़ में इस अवधि में कोई भी ऐसा नहीं था जो पकड़ से पैसा बनाने के लिए बीहड़ में कूदा हो

80 के दशक के बाद-
इस दशक और उसके बाद चंबल में जाने का कारण गरीबी उत्पी़ड़न या व्यक्तिगत आन की लड़ाई नहीं रही। अब तक अपराध को व्यवसाय बनाने वाली कुबुद्धि का चंबल में प्रवेश हो गया था। बेरोजगारी और पिछड़ापन जो इस क्षेत्र का एक बड़ा दंश है, के कारण इस क्षेत्र में ऐसे नौजवानों की कमी नहीं है जो अपनी दिन भर की आवारगी से तंग आकर रात को छूरा तमंचा लेकर रास्ते पर उतर आते हैं। उनके काम में रुकावट का अर्थ है खूनखराबा। इन लूटेरों की न तो कोई नैतिकता है और न पहचान। आज चंबल घाटी इन्हीं लूटेरों से आक्रांत है। हालांकि पुलिस प्रशासन अब पहले से अधिक मुस्तैद है। यही कारण है कि अब किसी भी अपराधी के चंबल में कूदे साल भी नहीं गुजरता कि पुलिस के हाथों मार गिराया जाता है। इसका एक बड़ा कारण बीहड़ के इलाके में इनकी हरकतें हैं जो अपना पराया, सही-गलत की समझ ही नहीं रखता। उनके लिए बीहड़ का मतलब है अपरहण और फिरौती।
कारण और भी हैं-
यह तो एक पक्ष है जो बीहड़ की कहानी कहता है। चंबल और यमुना के बीहड़ में इन दिनों अपराध की नई प्रवृत्ति भी पैदा हो रही है। अध्ययन कर्ताओं में अभी तक चंबल में अपराध के पीछे गरीबी, बेरोजगारी और बीहड़ की स्थिति को ही मुख्य कारण माना था। वर्तमान में चंबल संभाग जिस प्रकार की अपराधिक राह अख्तियार कर रहा है उसके पीछे इनमें से कोई कारण नहीं है। फिर क्या है जानने लिए हमसे जुड़े रहिए.....

4 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

योगेश,दस्यु समस्या या आतंकवाद का एक दुखद पक्ष हम से क्यों हमसे छूट जाता है जो इनके उपजने के लिये जिम्मेदार है..... राजनैतिक हरामजद्दई पैदा करती है डाकू और बेकारी-बेरोजगारी... काम पूरा हो जाने पर अपने ही मोहरे पिटवा कर वाहवाही लूटती है और पीछे से नए मोहरे उगा रही होती है......
इन सबके पीछे है जनसामान्य की उदासीन सोच जो गुल मुहम्मद हैं सब के सब....
जमीं जुम्मद न जुम्मद गुल मुहम्मद....

cartoonist ABHISHEK said...

dear yoges
YAAD
ummeed hai
tum beehad ke saath
poora nyaay karoge.

बीहड़ said...

abhishek bhai aap kha hain bhaskar ke baad pta hi nhi hai aap ka. mera mob no. 094756073566

Anonymous said...

भाई,
डॉक्टर साब ने सत्य कहा है, इन की पैदाइश के लिए हम ही जिम्मेदार हैं.