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6.6.08

पत्नी प्रताडित पति महासंघ

जैसे ही मैंने पत्नी प्रताड़ित पतियों का
अखिल भारतीय महासंघ बनाया
देश के कोने कोने से
सदस्यता की खातिर
भुक्तभोगियों का आवेदनपत्र आया ।

वे सदस्यता अनुरोध से ज्यादा
पति प्रताड़ना के पर्चे थे
प्रताड़ना की किस्मों के
उसमें तरह तरह के चर्चे थे ।

अब लीजिये इन साहिबान की
एक शहर के पुलिस कप्तान की
लिखते हैं मेरे डंडे के सामने
ये सारा शहर थर्राता है
अपुन अपने शहर का
सबसे बड़ा गुंडा माना जाता है ।

घर घुसते ही मुझे
मेरी नानी याद आती है
बीबी का रौद्र रुप देखकर
मेरी रूह तक काँप जाती है ।

कोशिश करता हूँ जब कभी
पुलिसिया रौब झाड़ने की
देती है धमकी वो मुझे
बेलन से मारने की ।

और अगर कोशिश पर अपनी
मैं अड़ा रहता हूँ
बीबी का बेलन खा कर
बिस्तरे पर पड़ा रहता हूँ ।

दूसरे साहिबान लिखते हैं
सरकारी स्कूल का शिक्षक हूँ
वर्षों से वेतन का प्रतीक्षक हूँ
यदा कदा जब कभी स्कूल जाता हूँ
बच्चों पर जोर आजमाता हूँ।

उठाता बिठाता हूँ कान पकड़वाता हूँ
अक्सर मैं उन्हें मुर्गा बनाता हूँ
घर पर मेरी प्राणप्रिये
मुझ पर ही जोर आजमाती है
उठाती बिठाती है कान पकड़वाती है
जब जी में आता है मुर्गा बनाती है ।

बात यहीं तक रहती तो गनीमत समझता
इसे भी मैं खुदा का ही नेमत समझता
परन्तु हर सुबह कार्यक्रम दुहराया जाता है
मुर्गा बना कर बाकायदा कुकरूकूँ बुलवाया जाता है ।

अब सुनिए न्याय के इस मठाधीश की
देश के एक होनहार न्यायधीश की
लिखते हैं लोगों को कटघरे में खड़ा करता हूँ
घर में खुद को ही कटघरे में खड़ा पाता हूँ
हर बात पर बीबी ही फैसला सुनाती है
मैं बिचारा अपील भी नहीं कर पाता हूँ ।

क्या करूं साहब जान पर बन आयी है
कातिल ही मुहासिब है कातिल ही सिपाही है
शारीरिक नहीं मानसिक प्रताड़ना का शिकार हूँ
इसलिए आपके संघ की सदस्यता का तलबगार हूँ ।

हैरत में हूँ देखकर खतों के इस अम्बार को
हंस कर जो टाल देते थे
पहले बीबी की मार को
संघे शक्ति कलियुगे का
होने लगा है भरोसा उन्हें
बीबी ने किसकिस बात पर नहीं
अबतक है कोसा उन्हें ।

तैयार हैं बीबी के विरुद्ध
होने को गोलबंद वो
मकसद में कामयाबी की
कोशिश करेंगे हरचंद वो
मैं भी हो रह था कुप्पा
करतब पर अपने फूलकर
बीबी ने जो अबतक दिए थे
उन सारे दर्दों को भूलकर ।

तभी कानों में मेरे कोई
बिजली सी कड़की
खडी थी सामने लाजो मेरी
आग सी भड़की-भड़की
न संघ न शक्ति बस
याद रहा कलियुग ही कलियुग
बीबी से पिटने का यारों
इक्कीसवीं सदी का ये युग ।

पत्नी प्रताड़ित सभी पतियों से
करता हूँ क्षमा की विनती
मेरी भी होती है भाई
प्रताड़ित प्राणियों में ही गिनती ।

कर सका न मैं अपना भला
आपका भला क्या कर पाउँगा
बीबी के खिलाफ गया अगर मैं
तो असमय शहीद हो जाऊँगा ।
वरुण राय

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

वरूण भाई,घर में घुसने नहीं दिया जाएगा ध्यान रखना... अगर ज्यादा कविता-सविता में इस विषय को लिखा.... :)

Anonymous said...

वरुण भाई,
शहीद तो मुझे भी नही होना है सो आपके समुदाय में शामिल होने का पिरोगराम कैन्सल ;-)