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6.6.08

सच को आत्मसात करने से मराठियों का इनकार.......



उपद्रव, हिंसा, तोड़फोड़, गैर भारतीय का पर्याय बना महाराष्ट्र।


लोकसत्ता के सम्पादक कुमार केतकर एक बार फ़िर गवाह बने मराठी हिंसक प्रवृति के। केतकर का कुसूर सिर्फ़ इतना था की उन्होंने महाराष्ट्र विधान सभा द्वारा पारित शिवाजी के पुतले सम्बन्धी विषय पर सरकार की खिंचाई कर दी। एक निर्भीक इमानदार पत्रकार ने सच कहा और असभ्यता का पर्याय बना महाराष्ट्र इसे आत्मसात नही कर सका। ये कहानी बार बार दुहराई जा रही है मगर राजनीति पर परवान चढा यह प्रदेश राज्य से लेकर केन्द्र तक सिर्फ़ मुंह ताकने का सिला बन कर रह गया है.

जिस प्रान्त के अर्थव्यवस्था से लेकर जीवनधारा तक पर गैर मराठियों का अधिपत्य है, और नाकाबिलियत ऐसी की स्थापत्य समाज में योगदान शुन्य, विचारधारा का मोहताज ऐसा की सिर्फ़ और सिर्फ़ शिवाजी की दुहाई। मगर शिवा जी का एक ढर्रा अभी भी बरकरार....... हिंसक, और उपद्रव का आलम यानी की महाराष्ट्र।

चाहे गैर मराठी विरोध हो, या अपने अस्तित्व की लड़ाई, या फ़िर शिवाजी...... सभी में होड़। मगर ये होड़ किसका ??? मराठी लोगों के लिए .........महाराष्ट्र के लिए.......विकाश के लिए.......या फ़िर अपने स्वार्थ के लिए। आश्चर्य की थैले के सभी एक जैसे ही चट्टे बट्टे। तो फ़िर प्रश्न की क्या मराठी मानुष इन से अनजान हैं... या फ़िर वह इस स्पर्धा वाले दौर में नाकाबिल कि स्पर्धा के बजाये उपद्रव इन्हें सबसे आसान तरीका लगता है। उत्तर जो भी हो मगर हिन्दुस्तान की इस सरजमीं पर महाराष्ट्र निसंदेह पहले मराठी का ही है फ़िर बाहरियों का, मगर प्रतियोगिता में अपनी उपयोगिता साबित करना इनके लिए चुनौती।

फ़ोटो :-
1) लोकसत्ता के सम्पादक कुमार केतकर
2) केतकर के आवास के बाहर

फ़ोटो साभार:- The Hindu, Josh18.com

1 comment:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

भाई,जो विरोध का जंगलीपन कर रहे हैं इस तरह वे भी मराठी और जिसका विरोध कर रहे हैं वह भी मराठी है, सत्यतः बात मराठीपन की है ही नहीं बात को हरामीपन की है जो राजनीति से पैदा होता है फिर मुद्दा तो किसी भी बात को बनाया जा सकता है शिवाजी महाराज हों या छ्ठपूजा....