Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

6.6.08

मध्यप्रदेश की माया

अहम ब्रह्म अम्बेडकर, मध्यप्रदेश के ब्राह्मणों मैं इन दिनों अजीब अकुलाहट है। ख़ुद को सबसे बड़ा अम्बेडकरवादी साबित करने की होड़। अकेला ब्रह्मण ही क्यों पूरा सवर्ण वर्ग ही इस दौड़ मैं शामिल है, ब्राह्मण कुछ ज्यादा। उप्र में जब से मायावती का सोशल फार्मूला हिट हुआ है,तमाम प्रदेशों का भाईचारा राजनीतिक अप्रत्याशिता के इस अवसर को लपक लेने की फिराक में है। मप्र इससे अछुता नहीं है। मप्र के कस्बों की दीवारें इन दिनों माया और उनके भाईचारा गान में रंगी हुई हैं ।मायावती को सामाजिक सद्भाव का देवदूत बताते यह संदेश सवर्ण वर्ग को सत्ता के गलियारे तक पहुँचने के लिए सुनहरे रस्ते की तरह नजर आ रहा है। जातिवादी सम्मेलन में भीड़ का उन्माद तो देखते ही बनता है । पंडितों के बीच रातों रात नए नेता प्रगट हो गए । यह वो लोग हैं जो कभी अपने कसबे और शहर में गली की राजनीति किया करते हैं । इनके पास पैसे की ताकत है और मायावती उन्हें एक अवसर दिखाई दे रही हैं । इन लोगों के बीच आज एक बात नारे की तरह प्रचलित हो रही है । अहम् ब्रह्म अम्बेडकर । सबसे बडा अम्बेडकरवादी होने का दिखावा । सबसे बडा दलित होने की खाव्हिश । इनमें से बहुत कम को ही अम्बेडकर और उनके सिद्धांतों से कोई लेना देना हो। बहुतेरे तो इस सबसे वास्ता ही नही रखते। उनके लिए अम्बेडकर होने का मतलब है दलितों के साथ उठाना बैठना और उनके हितैषी होने का ढोंग करना। उनके लिए दलित एक वोट बैंक है जो जातीयता के इस उन्मादी युग में उनकी जात के सत्ता तक पहुँचने की उनकी क्वाहिश को पूरा कर सकता है। मध्यप्रदेश के जातिगत आंकडो की बात करें तो यहाँ ब्राह्मण की सिथति यूपी से अलग है। प्रदेश की ३०० से अधिक विधानसभा में ३० फीसदी भी ऐसी नही हैं जहाँ ब्रह्मण अकेले अपने दम पर कोई सीट जिता सके। प्रदेश के उत्तर-पछिम इलाके मैं अनुसूचित और पिछड़ा वर्ग की संख्या अधिक है । बसपा इस इलाके में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती आ रही है। उसकी असली पहचान तो जनजातीय क्षेत्र में होनी है । यहाँ अभी तक जनजातीय वर्ग का कांग्रेस से मोह नहीं टूटा है । इस इलाके मैं ब्राह्मण इस हालत में नही है कि वह माया के वोट बैंक से मिलकर उसे सत्ता तक पहुँचा सके । ऐसे में मध्यप्रदेश में माया अकेले ब्राह्मणों के बूते नहीं रह सकती हैं । सम्भव है की वह अपना प्रतिनिधि इलाके के बहुसंख्यक वर्ग से ही चुने । यह ब्राह्मण,ठाकुर,बनिया या फिर कोई भी हो सकता है । यूपी में उन्होने इस फार्मूले को अपनाने का मन तभी बना लिया था जब भाजपा ने दूसरी बार उनकी सरकार गिराई थी । माया और उनके साथियों ने तभी सीधे जनता के बीच जाकर गठबंधन करने की बात कही थी। इस अवसर को वहां ब्राह्मणों ने पहले पकड़ा । यूपी के ब्राह्मणों के मध्य प्रदेश में संबंध हैं । रोटी बेटी के सम्बन्ध। सत्ता के इस खेल में इन संबंधों के जरिये भी अवसर लपकने की कवायद चल रही है। इस मामले में मध्यप्रदेश के सामाजिक कार्यकर्त्ता और राजनीति में दखल रखने वाले मेरे एक मित्र की टिप्पणी मायने रखती है। जब इस से मायावती के इस जादू के बारे में पूछा तो उसका कहना था कि प्रदेश में इन दिनों सभी पंडितों में ख़ुद को सबसे बड़ा दलित साबित करने की होड़ लगी हुई है । जबकि मेरे मित्र का कहना था की मायाबती की पार्टी को मप मैं यूपी सी सफलता नही मिलने वाली है । वह इसके कारण भी गिनाता है। पहला तो यह की यूपी का ब्रह्मण ख़ुद को ठगा महसूस कर रहा था । उसे न तो बीजेपी में जमीन दिख रही थी और न ही यादवों के बीच सम्मान । उन्हें ये सम्मान दलितों में दिखाई दिया । मप के ब्राह्मणों के सामने इस तरह के हालत नहीं हैं । यहाँ जातीय उन्माद की हालत भी वैसी नहीं है। तीसरे प्रदेश का वोटर अभी दो पार्टियों से इतर विकल्प की तलाश मैं नहीं है ।
मायावती के सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला भले ही उन्हें मप की सत्ता न दिला पाए लेकिन इतना तय है की उसने इस प्रदेश की उच्च जाती के मूंछ और पूंछ के बल खोल दिए हैं । जातिवाद के उन्मादी अब बेशर्म तरीके से ही ख़ुद को बडा कह सकते हैं । माया के जातिवादी राजनेतिक घोल ने वो कर दिखाया है जो कभी अम्बेडकर और बुद्ध नहीं कर सके । सत्ता की सस्ती डगर पर चलने को आतुर सवर्ण जाति के दिग्गजों के बीच आज ख़ुद को सबसे बड़ा अम्बेडकरवादी साबित करने की होड़ लगी हुई है । यह सामाजिक बदलाव है । कल तक जिसे अछूत माना आज उसकी बराबरी करने की आतुरता। यह सत्ता का जादू हो सकता है लेकिन इस जादू ने जातीय दर्प की सच्चाई की पोल तो खोल ही दी है।
अधिक के लिए क्लिक करें-http://khurrat.blogspot.com

3 comments:

समयचक्र said...

apke vicharo se sahamat hun . dhanyawaad

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

योगेश भाई,अब तो हर बात इंजीनियरिंग से तय करी जाएगी कि कितने धक्कों से दीवार गिरेगी....

Anonymous said...

भाई योगेश,
ये एक शुरुआत है, और रही गिरने गिराने की बात तो लोग अपने फायदे के लिए गिरने को भी तैयार हैं, और गिराने को भी वैसी आपके विचार से सहमत होना तय है.

जय जय भडास