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4.6.08

दिहाड़ी तीन रूपये......महीने के ९०।

गुरगांव का सिविल हस्पताल के मुर्दा घर का कर्मचारी मामा राज. काम ऐसा की सुन के ही दिल दहल जाए दाम ऐसा की सुन के शर्म आ जाए मगर शर्म किसे आए जो दिहाड़ी दे रहा है..... उसे तो बिल्कुल नही, ये है हमारे बुलंद भारत की तस्वीर। कहने को कागज़ के पन्ने पर हम आसमान से ऊपर जा रहे हैं, बहस करो तो सरकार के साथ मीडिया भी राग अलापती है...... हाँ हाँ हम विकास पर विकास कर रहे हैं । पेश है एक तस्वीर हमारे विकसित भारत की.......



ये कहानी है मामा राज की जो गुरगांव के सिविल हस्पताल के मुर्दाघर में मुर्दों को सिलता है। विरासत में मिले इस काम को वो सालों से करता आ रहा है मगर दिहाड़ी अभी भी विरासत वाली ही यानि की ५० पैसे एक मुर्दा के सिलने के बाद और दिन में अगर मामा राज ने ६ मुर्दे सिले तो दिहाड़ी तीन रूपये। मामा राज को इस से कोई शिकायत भी नही है मगर वो चाहता है की अगर एक मुर्दा का उसे ५ रूपये मिले तो उसका दाल रोटी चल जाए क्यूंकि ९० रूपये महीने के मिले तो कोई कैसे दो वक्त की रोटी जुटा सकता है।

मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी की माने तो उन्होंने मंत्रालय को लिख रखा है और जवाब की प्रतीक्षा में हैं। जब तक मंत्रालय का जवाब ना आ जाए तब तक मामा राज ५० पैसे लेते रहो। और मंत्रालय ...... एक मामा राज के लिए जवाब देने का समय कहाँ है मंत्री महोदय को कौन देखता सुनता है गरीबों की, वैसे पदाधिकारी ये भी मानते हैं की अगर मामा राज काम से इनकार कर दे तो इस काम के लिए कोई भी तैयार ना हो फ़िर भी दिहाड़ी में मन मर्जी देने वाले की।



कोई बताये ९० रूपये महीना में मामा राज कैसी अपनी जिन्दगी चलाये।



साभार :- The Telegraph.

2 comments:

KAMLABHANDARI said...

10 rupe maheena bade aascharya aur sharm ki baat hai ki jahaa ek or humare desh me hajar -karor rupyo ki baat ho rahi hai wahi dushri aur ek aadmi ko mahine ke 10 rupe ?

rajnish ji hume mama raj aur unhi jaise aur logo ki kahani ko sabhi ke saamne baar-baar laana hoga tabhi shyad kisi ke kaano me ju renge.

शशिश्रीकान्‍त अवस्‍थी said...

मामा राज जानता है कि उसके ऊपर (निर्णय लेने के लियें) देखने वालो की अक्ल भी मुर्दा हो गयी ऐसे में उनको सिर्फ धनपशु ही दिखाई देते है मामाराज येसे के बारे सोचना भी शायद उनके लिये गुनाह है तभी तो आज भी वह मात्र 50 पैसे प्रति मुर्दा में मिलने वाली राशि से जिन्‍दगी गुजार रहा है । यह समाज का यैसा व्‍यक्ति है जिसके लियें शायद ही किसी ने कभी कुछ सोचा हों । रजनीश भाई आज आपने उसकी पीडा यहा उजागर करके कम से कम उसके ज़ख्‍मों मे कुछ मरहम तो लगा ही दिया थोडा ही सही ।