Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

18.6.08

ये कहाँ आ गए हम.

आज कल एक बात बार-बार देखने में आ रही है जब कोई नया-नया पत्रकार अच्छा काम करने लगता है तो पहले मैदान में मौजूद लोगो का पेट दुखने लगता है, फिर जैसे-तैसे उसकी कब्र खोदने का षडयंत्र शुरू हो जाता है, उसे बाहर के भ्रष्टाचारियों से इतना khatra नही रहता जितना की अन्दर के लोगों से , यह बड़ा ही bhayanak khel शुरू हो चुका है, जो पता नही हमे कहा ले jakar chhodega, लेकिन अपने bandhuon को ये chetana behad jaruri है की हम visfot की or ja रहे हैं, और जब हमारी नींद khulegi tab तक शायद बहुत देर हो चुकी होगी, मैंने ऐसे कई udaharan देखें हैं जब bajay अच्छा कम करने वालों की mehnat न करके , उसकी रह में adange atkaye jate हैं, हमारे कुछ पत्रकार bandhu अपनी rekha badane के बदले dusron की rekha mitane में लगे rahaten हैं, कुछ लोगों को शायद मेरी कोई बात buri लग sakati है, लेकिन इस बात को gambhirta से sochana होगा की mehnati और imandaar लोगों की राह में katain कब तक boye jayege, जरुरत इस बात की है की हम अपनी rekha को लम्बी करें न की dusron की rekhaon को mitayen,
ये ना bhulen की जिसके पास dum हैं वो यही कहता है की
aandhiyan हमको darati हैं dara लेने दो, हम ना chhodengen chaman khaak में मिल jane तक।'
priyanka kaushal

No comments: