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13.6.08

डा. रूपेश के चेहरे से घूंघट उठा रहा हूं


आप लोगों ने डा. रूपेश जो को खूब पढ़ा, खुब सुना पर उन्हें आज तक देखा न होगा। मैंने भी न देखा था पर जब मुंबई गया था तो उनसे मिला तभी देख सका। आवाज ऐसी की जैसे बूढ़े बाबा लगते हों, लिखते ऐसे हैं जैसे दादा जी हों पर शक्ल ऐसी है जैसे बेटू जी हों।
आज इंडिया न्यूज मैग्जीन में डाक्टर साहब की तस्वीर देखी। इस मैग्जीन में मनीषा दीदी की भी तस्वीर है। इस मैग्जीन ने अबके अंक (20 जून 2008 ) में द थर्ड सेक्स नाम से कवर स्टोरी करी है। इसमें हिजड़ा समाज की दिक्कतों, उनकी परेशानियों, उनकी भावनाओं, उनके सुखों, उनके सपनों को संजोया गया है। जब मैं मैग्जीन पढ़ रहा था तो डाक्टर साहब की फोटो देखकर तुरंत फोन किया और कहा कि भइये, अब फोटो भेज दो मेरे पास ताकि मैं आपकी शक्ल अपने भड़ासी भाइयों को भी दिखा सकूं।
उनसे अनुरोध करता हूं कि वो मनीषा दीदी, जो हिंदी की दुनिया की पहली लैंगिक विकलांग ब्लागर हैं, की भी तस्वीर भेज दें ताकि उन्हें हम ससम्मान भड़ास पर प्रकाशित कर सकें।
इंडिया न्यूज मैग्जीन में वंदना भदौरिया ने जो कवर स्टोरी की है उसमें डाक्टर रूपेश की एक कविता है और उनकी फोटो के साथ उनके बारे में लिखा गया है। उनके बारे में जो लिखा गया है उसे मैं हू ब हू यहां पेश कर रहा हूं.....
यशवंत
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क्योंकि मैं हिजड़ा हूं
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ए अम्मा, ओ बापू, दीदी और भैया
आपका ही मुन्ना या बबली था
पशु नहीं जन्मा था समाज में
आपके ही दिल का चुभता सा टुकड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
कोख की धरती पर आपने ही रोपा था
शुक्र और रज से उपजे इस बिरवे ने
नौ माह जीवन सत्व चूसा तुमसे माई
फलता भी पर कटी गर्भनाल,
जड़ से उखड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
लज्जा का विषय क्यों हूं अम्मा मेरी?
अंधा,बहरा या मनोरोगी तो नहीं था मैं
सारे स्वीकार हैं परिवार समाज में सहज
मैं ही बस ममतामय गोद से बिछुड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
सबके लिए मानव अधिकार हैं दुनिया में
जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र के पंख लिए आप
उड़ते हैं सब कानून के आसमान पर
फिर मैं ही क्यों पंखहीन
बेड़ी में जकड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
प्यार है दुलार है सुखी सब संसार है
चाचा, मामा, मौसा जैसे ढेरों रिश्ते हैं
ममता, स्नेह, अनुराग और आसक्ति पर
मैं जैसे एक थोपा हुआ झगड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
दूध से नहाए सब उजले चरित्रवान
साफ स्वच्छ, निर्लिप्त हर कलंक से
हर सांस पाप कर कर भी सुधरे हैं
ठुकराया दुरदुराया बस मैं ही बिगड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
स्टीफ़न हाकिंग पर गर्व है सबको
चल बोल नहीं सकता, साइंटिस्ट है
और मैं?
सभ्य समाज के राजसी वस्त्रों पर
इन्साननुमा दिखने वाला एक चिथड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
लोग मिले समाज बना पीढियां बढ़ चलीं
मैं घाट का पत्थर ठहरा प्रवाहहीन पददलित
बस्तियां बस गईं जनसंख्या विस्फोट हुआ
आप सब आबाद हैं बस मैं ही एक उजड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
अर्धनारीश्वर भी भगवान का रूप मान्य है
हाथी बंदर बैल सब देवतुल्य पूज्य हैं
पेड़ पौधे पत्थर नदी नाले कीड़े तक भी;
मैं तो मानव होकर भी सबसे पिछड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........

(लैंगिक विकलांग मनीषा दीदी के लिए ये पंक्तियां डा. रूपेश श्रीवास्तव ने
पिरोई हैं)

कविता में बयां दर्द
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मुंबई के रूपेश श्रीवास्तव पेशे से चिकित्सक हैं। वे किसी एनजीओ से नहीं जुड़े हैं। भारत में किन्नरों के लिए गंभीरता और संजीदगी से काम करने वाले वह ऐसे शख्स हैं जो इस बात के लिए कतई राजी नहीं थे कि हम उनकी तारीफ में कुछ भी लिखें। लेकिन हमारा और आपका उनके बारे में जानना बहुत जरूरी है ताकि उनके कार्यों से सबक ले कर मुंबई की अंधेरी गलियों में बेसहारा और बेबस लैंगिक विकलांगों की मदद के लिए कुछ और हाथ आगे बढ़ें। किन्नर, हिजड़ा या सही मायनों में कहें तो लैंगिक विकलांग के दर्द, छटपटाहट, अधूरेपन को न केवल रूपेश श्रीवास्तव ने शिद्दत से महसूस किया है बल्कि उस दर्द और छटपटाहट को सहलाया भी। उनके अधूरेपन को भरने के लिए रूपेश के प्रयास बहुत कारगर साबित हुए हैं। मुंबई में कई लैंगिक विकलांग को पढ़ा लिखाकर वे उन्हें समाज का हिस्सा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अपनी इस कोशिश में रूपेश समाज और सरकार के व्यवहार से बहुत आहत हैं। उनका मानना है कि लैंगिक विकलांगों के लिए मीडिया का व्यवहार भी सौतेला ही रहा है। कभी किसी ने उनके हक की बात उठाने की कोशिश भी नहीं की। कभी उनके जीवन को खंगालने का प्रयास भी नहीं किया। लैंगिक विकलांगों के लिए काम करते हुए रूपेश ने उनके भीतर की खूबसूरती को काफी करीब से देखा है। उनकी योग्यता को समझा और सराहा है। उसे तराशने की कोशिश की है। रूपेश की उपरोक्त कविता लैंगिक विकलांगों के दर्द की नंगी तस्वीर है।
(कवर स्टोरी द थर्ड सेक्स का पार्ट)

-वंदना भदौरिया (संवाददाता, इंडिया न्यूज, साप्ताहिक पत्रिका)

6 comments:

Unknown said...

kya bat hai dr. sab aap to ekdam babuaa jaise lgte hain...

शशिश्रीकान्‍त अवस्‍थी said...

बहुत दिन से दीदार करना चाहते थे लेकिन आज एक अर्सा बाद डा.साहब के चेहरे से पर्दा उठा । यशवंत भाई मुंह दिखाई की पार्टी तो होनी ही चाहियें ।

शशिकान्‍त अवस्‍थी
कानपुर ।

आलोक सिंह रघुंवंशी said...

पढ़ा तो बहुत खूब, आज देख भी लिया। यशवंत जी ने डा. साब का जो चेहरा दिखाया था, काफी कुछ मिलता-जुलता है।

Anonymous said...

waah waah,

tabhi kahoon ki nolofar kyoun bahan kahne par tunak gayeen thee. bahiye esi foto soto lagaouge to koi bhi bahan naa banayegee ;-).

waisai is shandaar lekhni ke liye doctor saab ko naman or ek awahan bhadas se ki manisha oe manisha jaise ke liye ek swar men aage aayen.

jai jai bhadas

subhash Bhadauria said...

यशवंतजी डॉ.रुपेशजी ब्लॉग की दुनियाँ की बड़ी शख्शियत है वे योग पुरष हैं,उनके आर्युवेद पर तमाम लेख पढ़े हैं चिकित्सक के साथ साथ वे उच्चकोटि के मनुष्य है तभी मनीषादीदी जैसी विकलांग उपेक्षितजन के लिये वे संघर्षरत हैं.
अहमकों को ये बातें समझ में नहीं आयेंगी.हाँ उन्हें छेड़ देने पर वे फकक्ड़ी साधुओं की भाषा और मिज़ाज़ का परिचय देते हैं आपने उनके दीदार कराके
तमन्ना पूरी करदी.मैने आप से चंद क्षणों की मुलाकात में ही अहमदाबाद में कहा था कि मैं उनसे बहुत मुतासिर हूँ.और रही आपकी बात सो इस शेर में समझ लीजिये-
पतझड़ में कहेंगे ये बहारों में कहेंगे.
दरिया के मचलते हुए धारों मे कहेंगे.
ये प्यार नहीं ज़ुर्म जिसे दोस्त छिपायें,
हमने तुम्हें चाहा है हजारों में कहेंगे.
सभी भड़ासी दोस्तों को बहुत ही प्यार और खुलूस के साथ.डॉ.सुभाष भदौरिया,अहमदाबाद.

KAMLABHANDARI said...

rupeshji aap kaabile taarif to hamesha se hai hi par sachmuch aaj aapke baare me jaankar aur jo kaam aap kar rahe hai wah jaankar dil aapko haath jodne ko kar raha hai .haath jodkar pranaam swikaar keejiye.