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1.6.08

पत्रकारिता में काला धन कमाने की प्रवृत्ति कैसे रोकेंगे?

Hi yashwant ji,
nice to see u r blog. plz abuseing language se bache.




i am realy big fan of u r blog bhadas. hindi karna mushkil hain phir bhi koshish kar raha hoon. ummid hain mere eas sawal ko aap apne blog me jarur jagah denge.



mera parichay aap media guru se hi karwaye. i am also a teacher..



sir ji mera sawal hain ki kya imandari se jina journalism me koi gunah hain? ummid hain aap se jawab bhi milega.... to sawal hain ... journalism me dhire dhire jo kala dhan (black money) kamane ki prvatti (nature) bad rahi hain usko kya roka jaa sakta hain? ho sake to blog me jagah de..


aur eak jaankari aap ke blog ke liye plz mera name hide rakhe ....( ये जानकारी हटा दी गई है )


.. dhanywad

Media Guru




(भाई मीडिया गुरु, आपकी तारीफ के लिए धन्यवाद। गालियां हम नहीं देना चाहते पर शहर के कुछ चिल्लर टाइप हिप्पोक्रेट लोग उंगली करते हैं तो गरियाना पड़ता है, आगे से ध्यान रखा जाएगा। आपने जो सवाल किए हैं वो काफी बड़े सवाल हैं और इसका जवाब तुरत फुरत नहीं दिया जा सकता। वैसे, इस सवाल का ठीक ठीक जवाब अपने फायरब्रांड नेता डा. रूपेश दे सकते हैं। आप चिंता न करें, आप का असली नाम कभी नहीं खोला जाएगा, ये मेरा वादा है।.....यशवंत)

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

आत्मन मीडिया गुरुदेव जी,पहली बात कि हम लोग गालियां देने के आदी नहीं हैं ये हमारी सहजता का परिणाम है कि यदि किसी के सताने पर हमें विरोध करना है तो हम कुढ़ते रहने की बजाय गाली दे कर क्रोध की प्रतिक्रिया को समाप्त कर लेना उचित मानते हैं न कि भीतर ही भीतर मरे जा रहे हैं और शराफ़त ओढ़े कुछ बोल नहीं पा रहे हैं, अगर कुत्ता भौंक रहा है तो या आप उसे डांट दीजिये या एक पत्थर उठा कर धमका दीजिये ;क्या आपको हमारा व्यवहार इससे अधिक कठोर प्रतीत हुआ?हम कुत्तों को पीट कर टांग तोड़ने की पशु-क्रूरता में यकीन नहीं रखते। दूसरी बात कि आपका कहना है कि क्या पत्रकारिता ईमानदारी से नहीं करी जा सकती या ब्लैकमनी वगैरह का सवाल तो मान्यवर JOURNLISM और NEWS-BUSSINESS में अंतर है पत्रकारिता पवित्र थी, है और सदा रहेगी बस धंधेबाज लोगों ने उसकी आड़ में समाचार जैसे पवित्र घटक को बाजारू बना दिया है; काले धन से जुड़े सवाल का एकमात्र उत्तर है जनचेतना। लोग सजग होंगे ईमानदार बन सकेंगे तब ही संभव है अन्यथा दूसरों से ईमानदारी की उम्मीद करना और खुद चोरी की बिजली जलाना...... ऐसी तो अपेक्षाएं रहती हैं लोगों की। अपने स्तर से लड़ाई शुरू करिये आप गुरू हैं तो दायित्त्व के निर्वाह में प्राण लगा दीजिये भड़ास आपके साथ है..... हिन्दी लिखना आसान है थोड़ा सा जोर लगाइये बस आ जाएगा आजकल तो ट्रांसलिटरेटर मौजूद हैं...
जय जय भड़ास

Anonymous said...

मिडिया गुरु,
आपको प्रणाम।
आपका सवाल ऐसा है कि लगता है जैसे आप भी हमारे इन कुलिण पत्रकारों के पिडित रहे हैं। आपके अनुभव ऐसे हैं कि आप आरोप लगाने के लायक हो जाते हैं। मित्र बदलते जमाने के साथ पत्रकार ओर पत्रकारिता भी बदली है मगर प्रभुतव का क्या करें जो इन्ही कुलिणों की है। नये पत्रकारों से आप बदलाव की आशा रखें। ऐसै भी भ्रष्ट पत्रकारों का दौर अब लदने वाला है। शेष हमरे रुपेश भाई ने कह ही दिया हमारे शब्दों के बारे में।

जय जय भडास