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17.6.08

निगाहों को बड़ा दिलकश नजारा मिल गया होता

हास्य-गजल
किसी अंधे को लाठी का सहारा मिल गया होता
अगर उस दिन तेरा छत से इशारा मिल गया होता
न लेकर बैंड तुम आते न बजता मेरी शादी में
न कश्ती डूबती मेरी किनारा मिल गया होता
न भरते कान डैडी के तुम्हारे घर छुपे दुश्मन
जन्मपत्री में दोंनों का सितारा मिल गया होता
जुटाकर ईंट रोड़ों को बना लेते नया कुनबा
अगर भानुमती का पिटारा मिल गया होता
बगल में महिला कॉलेज के जो अपना घर बना होता
निगाहों को बड़ा दिलकश नजारा मिल गया होता
सहर होते ही मंदिर में जो जाती तू भजन करने
तेरे भजनों के सुर -में- सुर हमारा मिल गया होता
छुड़ाकर पिंड कविता से बड़ा अच्छा किया नीरव
नहीं तो मंच पर नीरव दुबारा मिल गया होता।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६



2 comments:

यशवंत सिंह yashwant singh said...

वाह वाह

अच्छा हुआ वो साहिबान वक्त से सुधर गया वरना
एक दिन मेरा तमाचा मुंह पर उसके पड़ गया होता

लगी दी जोर चोटी से लेकर एंड़ी तक की साहिब
काश, दो चार बाल अभी तक उखाड़ लिया होता

:)

कैसा रहा सर...
वाकई, नीरव जी की रचनाओं को पढ़ने के बाद खुद लिखने का मन करने लगता है और यह बड़ी बात है। मतलब, नीरव जी कवियों की फैक्ट्री हैं। जुग जुग जियें.....

Anonymous said...

पन्डित जी प्रणम,

आपका हास्य करखाना बस दिन दुनी रात चौगुनी बढता रहे ओर भडासी लोट-पोट होते रहें।

आपको साधुवाद