Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

8.7.08

संघर्ष .......

पिछले कुछ माह से पहले एक प्रशिक्षु के तौर पर ( Intern ) के तौर पर और फिर संघर्ष प्रक्रिया की पूर्ति के लिए नॉएडा - गाजिआबाद - दिल्ली में हूँ ...... हालांकि अब संघर्ष पूर्णता की ओर है पर इस प्रक्रिया में जो कुछ अनुभव किया ......... वो शब्दों में कहना कठिन अवश्य है पर एक प्रयास किया है ! आशा है की वे सारे अग्रज जो इस दौर से गुज़र चुके हैं या वे साथी जो इस से गुज़र रहे हैं ...... इसे महसूस करेंगे ! अनुजो के लिए ये हमारा अनुभव है जो आगे काम आएगा क्यूंकि संघर्ष सफलता के लिए नही बल्कि उसे बनाये कैसे रखना है इसके सबक के लिए होता है !

संघर्ष

आजकल
आज और कल
सुनते ही समय कटता है
दिशान्तरों में
चलते फिरते
आते जाते
युगान्तरों सा दिन निपटता हैं

सुबह घर से रोज़
हर रोज़
निकल कर
लम्बी दूरियां
पैदल चल कर
सूरज की तेज़ किरणों से
चुंधियाती आंखों को मलता
कोने से एक आंसू
टप से निकलता

तेज़ गर्मी में
शरीर की भाप का पसीना
थक कर
हांफता सीना
सिकुडी हुई जेबों में
पर्स की लाश
और
उस लाश के अंगो में
जीवन की तलाश
ख़ुद को हौसला देने को
बड़े लोगों की बड़ी बातें
पर
सोने की कोशिश में
छोटी पड़ती रातें

वो कहते हैं
हौसला रखो बांधो हिम्मत
तुम होनहार हो
संवरेगी किस्मत
ये संघर्ष
फल लाएगा
तू मुस्कुराएगा
बस
थोड़ा समय लेता है
अन्तर्यामी
सबको यथायोग्य देता है

मैं चल रहा हूँ
न तो
उनके प्रेरणा वाक्य
मुझे संबल देते हैं
न ही उनके ताने अवसाद
उनके आशीर्वादों से मैं
प्रफ्फुलित नहीं
न ही
उनकी झिड़की हैं याद

मैं चल रहा हूँ
क्यूंकि
मुझे चलना है
ये चाह नहीं
उत्साह नहीं
शायद यह नियति है
की
मुझे अभी चलना है

सुना है कि
पैरों के छालों के पानी से
जूते के तले के फटने से
जब पैर के तलों का
धरातल से मेल होता है
तब कहीं जा कर
संघर्ष का यज्ञ पूर्ण होता है
वही होती है
संघर्ष के वाक्य की इति
प्रतीक्षा में हूँ
कब होती है
संघर्ष की परिणिती

मयंक सक्सेना

1 comment:

Anonymous said...

mayank bhai,

bahot badhiya, chaliye ab aapke ujwal bhavishya ke liye aapko best of luck. waisai sangharsh ke in dinon ko or jyada kar ke likhen to maja aa jaaye.

jay jay bhadas.