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31.7.08

नफरत की आग......

6 comments:

Unknown said...

प्रेम करो सबसे, नफरत न करो किसी से. अगर कुछ करना चाहते हो तो भूखे पेट को रोटी दो, नंगे शरीर को कपड़े दो, जिनके सर पर छत नहीं है उन्हें रहने को घर दो. ऐसा करोगे तो तुम्हारा खुदा, तुम्हारा भगवान तुम्हें प्यार देगा.

Anonymous said...

बहुत बदिया भाई,
सच कहें तो ये है हमारे देश कि तस्वीर, सब कुछ को धत्ता बता कर देश कि सभ्यता ओए संस्कृति कि बात करने वाले कुंठित आतंकी,
भड़ास और भडासी इस कि नींदा करें या ना करें मैं तो करता हूँ और जब तब दो चार गालियों का भी भड़ास निकाल लेता हूँ.
जय जय भड़ास

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

धर्म के संबंध में बस इतना ही कि भूखे का धर्म भोजन और भरे पेट का धर्म ये सब नाटक जिसकी आड़ में राजनीति के पराठे सेंके जाते हैं...

हिन्दी के लिक्खाड़ said...

परहित सरिस धर्म नहीं भाई
परपीड़ा सम नही अधमाई
तुलसीदास जी की इन पंक्तियों में धर्म का सार छिपा हुआ है। आखिर यह हमारी समझ में क्यों नहीं आता है।
डॉ. भानु प्रताप सिंह, आगरा

TERAI TARANG said...

bahut zabardast..... aapne 3 minute mein jo baat kah di hai, woh shayad 3 ghante ki film bhi nahi kah paati.

iram fatima. said...

aakhir ham kab tak dharm ke naam par ladhte rahenge.....?