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8.7.08

कविता का उत्सव बन गया एक आयोजन



आज की इस भागदौड़भरी जिंदगी में कुछ लम्हें कविता के जी लेना अपने आप में स्थित होना है। अपने से हौलो-हौले बतियाना है। राजधानी के काव्यरसिकों को कविता के कुछ ऐसे ही क्षण उपलब्ध कराए पं. रामप्रसाद बिस्मिल फाउंडेशन ने, महात्मा गांधी शांति प्रतिष्ठान में। रविवार का अवकाशभरा दिन। मानो श्रोताओं का मन ही रविवार हो रहा था। रिमझिम फुहारों से जहां वातावरण कवितामय हो रहा था वहीं सभागार में कविता की रसभावन फुहारों से कविता स्वयं कविता से बतिया रही थी। कविता की हर अच्छी पंक्ति पर जीवंत श्रोताओं की मिल रही दाद से कवियों का उत्साह बढ़ रहा था, वहीं धीरे-धीरे कवि सम्मेलन का आयोजन किवता-दर-किवता अपनी ऊंचाइयों को छूता जा रहा था। भगवान सिंह हंस ने जब पंक्षी उड़ता जाता है,गीत सुनाकर वातावरण को एक गीतात्मक प्रारंभ दिया तो वहीं दूसरी ओर अरविंद चतुर्वेदी ने दुमदार दोहे पढ़कर वातावरण को खुशनुमा बनाया। डा. मधु चतुर्वेदी ने गजलें सुनाकर एक अदभुत समां बांध दिया तो वहीं भड़ास शिरोमणि यशवंत ने जागो..रे जागो..गीत सुनाकर समारोह में एक नई जान फूंक दी। संचालन कर रहे पुरुषोत्तम.एन.सिंह ने सूरत तेरी रेशम-रेशम गीत सुनाकर जहां रेशमी संवेदवाओं से माहौल को लवरेज कर दिया तो वहीं कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सुप्रसिद्ध कवि पं. सुरेश नीरव ने ग्लोबलवार्मिंग और अणुधर्मी आतंक के विरुद्ध अपने गीत सुनाकर कविता के इस अप्रतिम अनुष्ठन को अभिव्यक्ति का एक सुखद उत्सव बना दिया- टूटती ओजोन पर्तें रोज़ आसमानों में,आतिशों की बारिस है प्यास के तराने हैं डूबते जहाजों पर तैरते खजाने हैं और फिर आध्यात्मिक प्रतीकों के गीत श्लोक अधर मंत्र-सी आंखें,देवालय-सा तन, रामायण-सा रूप तुम्हारा सांसें वृंदावन सुनाकर पूरी महफिल को एक मुकद्दस पाकीजगी से भर दिया। अरविंद पथिक ने भी इस बार वीर रस की कविताएं न पढ़कर गीत सुनाए। अन्य कवियों में रजनी कांत राजू, रमाकांत पूनम और यशवर्धन ने भी कविताएं पढ़ीं। इस अवसर पर भोपाल से आए वीरेद्र सिंह ने हवा मान जाएगी ओर शहीदो के लिए कविताएं पढ़कर जहां वातावरण को फिर एक नया रंग दिया तो भोपाल के ही सतीश चतुर्वेदी ने सत्यं-शिवं-सुंदरं कविता पढ़करआयोजन को एक नया तेवर दे दिया। अंत में जयपुर से आये युवा गीतकार शिव दर्शन ने वंदे मातरम रचना का गायन कर शब्द के इस सात्विक अनुष्ठान को सार्थक पूर्णविराम दिया। इस अवसर पर भड़सी बंधुओं की उपस्थितिने कार्यक्रम की सार्थकता को और बढ़ाया।
प्रस्तुतिः मृगेन्द्र मकबूल

3 comments:

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

क़ार्यकृम की सम्पूर्ण रपट सब तक पहुंचाने के लिये धन्यवाद.
अब जब आपने मेरे दुमदार दोहों का ज़िक्र कर ही दिया है तो मैं शीघ्र ही उन्हे अपने ब्लोग भारतीयम पर पोस्ट कर दूंगा ताकि सभी उनका आनन्द ले सकें.
भाई यश्वंत के जोशीले गीतों ने ( देशभक्ति की रचनाओं की पूरी कॉक्टेल) मज़ा ही नहीं दिलाया, जोश भी भर दिया. पंडित सुरेश नीरव का तो कहना ही क्या ? गाते गाते खुद तो झूमते ही हैं ,सभी श्रोताओं को भी बहा कर अपने रस में डुबो दिया. भाई अर्विन्द पथिक भी मौसम के अनुरूप पूरे रोमांटिक रंग में सराबोर थे और गीत गाकर रंग जमा गये.

धन्यवाद.
http://bhaarateeyam.blogspot.com

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

साधु-साधु-साधु......

Anonymous said...

मकबूल साब,
धन्यवाद आपका इस पुरे कार्यक्रम को सविस्तार बताने के लिया. सच में बेहतरीन रहा, पंडीत जी को पहली बार सुनने का मौका, हंस जी का सम्मान और यशवंत जी का जोशीला जागो जागो.
आनादित हूँ और गर्वित भी.
जय जय भड़ास