Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

24.7.08

मेरी कलम से

आस्तीनों में साँप पलने लगे है
कपडों की तरह लोग ख़ुद को बदलने लगे है
ज़रा ! संभलकर चलना दोस्त, चेहरे
बदल-बदल कर लोग घर से निकलने लगे है

1 comment:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

भाई,आपकी बात में अपनी तुकबंदी पेल रहा हूं...
गरमी बहुत है... लाइट नहीं है...
लोग हाथ से पंखा झलने लगे हैं :)