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10.7.08

मार रही है महंगाई!

ओफ्फ दोस्तों, गर्मी तो चली गई लेकिन हमारा भारत फिर भी तप रहा है। खासकर आम आदमी का घर, जिसके घर के चूल्हे में से इतनी तेज लपटें निकल रही हैं कि उसका जीना मुहाल हो रहा है। मैं भारत की केन्द्र सरकार, इसके प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, और इसके वित्तमंत्री पी. चिदंबरम का शुक्रगुजार हूँ, जिन्होंने हमें इतनी तपन महसूस करवाई और इसलिए भी वे रिकार्ड पर रिकार्ड बनाए जा रहे हैं और हम बेचारे लोग मुंह ऊँचा किए उन्हें निहारे जा रहे हैं..........लेकिन याद रहे, ये हालात ताली बजाने वाले कतई नहीं हैं.....हां, इनसे आंसू जरूर निकल सकते हैं।
तो मुख्य बात मप्र के उज्जैन में हुई, बात संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी की आमसभा से शुरू करूँगा, जहाँ भाषण देते समय उन्होंने यह आरोप लगाया कि महंगाई केन्द्र सरकार की वजह से नहीं बल्कि राज्य सरकार की नीतियों की वजह से बढ़ी है।........................धन्य हैं ये सोनियाजी, इनके इस वकतत्व से यह तो साफ हो गया कि ये राजनेता अभी तक जनता को मूर्ख ही समझते हैं। इन्हीं सोनिया के एक पुराने पिट्ठू और मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने प्याज के महंगे होने को भाजपा की केन्द्र सरकार की करतूत बताकर यहाँ का विधानसभा चुनाव जीत लिया था और इस प्रदेश की जनता की पाँच सालों तक जमकर ऐसी की तैसी की थी। अब सोनिया हमें बता रही हैं कि बेचारगी में रहने वाली प्रदेश सरकार हमारा शोषण कर रही है और धोतीछाप वित्तमंत्री (जिनका पहनावा भले ही देशी हो लेकिन दिमाग से वो पूरे विदेशी ही हैं) चिदंबरम पाक-साफ हैं जबकि मेरे पास कुछ ऐसे आंकड़े हैं जो यह बताते हैं कि भारत में ४०० प्रकार के कर (टैक्स) हैं जो यहाँ का बेचारा आम आदमी चुकाता रहता है। इतने विविध प्रकार के कर तो पूरे संसार में कहीं नहीं हैं। यह कर मुख्य रूप से दो प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में लगे। एक नरसिंह राव और दूसरे मनमोहन सिंह के। दोनों में ही मनमोहन सिंह कॉमन हैं क्योंकि वो राव सरकार में वित्तमंत्री थी। तो साहब, चिदंबरम सरदारजी की ही पसंद हैं और खुद तो धोती पहन रहे हैं जबकि आम आदमी की धोती उतारे दे रहे हैं।
तो दोस्तों, एक बात यह भी कि भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की चौथी नंबर की बड़ी अर्थव्यवस्था है। जीडीपी के मामले में यह दुनिया का १२ वें नंबर का देश है। लेकिन -पर कैपिटा इनकम- यानी प्रति व्यक्ति आय के मामले में यह विश्व का १३३ वें नंबर का देश है। मतलब दुनिया में कुल २१९ देश हैं उनमें से यह हालत है इसकी। तो चिदंबरम अपने मुखिया मनमोहन के साथ मिलकर भारत को दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बनाने पर तुले हुए हैं लेकिन भइया जब घरों में रोटी ही नहीं बचेगी तो क्या करोगे महाशक्ति बनकर। दूसरा आप लोग महंगाई बढ़ने के प्रतिशत का जो हो-हल्ला आजकल सुन रहे हैं उसमें भी सच्चाई नहीं है। मतलब पिछले सप्ताह अखबारों की जो लीड थी कि महंगाई ११.६३ फीसदी बढ़ गई है और उसने पिछले १३ साल का रिकार्ड ध्वस्त कर दिया है। तो यह पद्धति भी समझिए। ठीक पेट्रोल की तरह है जो २१ की मूल कीमत का है और बिक ५५ रुपए में रहा है।
तो महंगाई बढ़ने का जो प्रतिशत भारत में मापा जाता है वह होलसेल रेट का होता है। यानी कीमतें ११ फीसदी तो होल-सेलर को महंगी पड़ेंगी, हम आम उपभोक्ता को तो यह ३०-४० फीसदी तक महंगी पड़ेंगी। यह पद्धति भारत में ही अपनाई जाती है, योरप में होल-सेल की बजाए रिटेल रेट (जिनपर हम आम उपभोक्ता निर्भर करते हैं) के आधार पर ही महंगाई मापी जाती है। भारत में ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इतनी महंगाई बता दी जाए तो यहाँ हाहाकार मच जाए, जबकि होल-सेल वाली बात आम आदमी को समझ ही नहीं आएगी और वो चुप बैठा रहेगा। यानी यहाँ भी राजनेता हमें हमेशा की तरह मूर्ख बनाते हैं (राजनेता दोबारा इसलिए कहा क्योंकि महंगाई कितनी बढ़ी इसकी जानकारी भी हमें केन्द्रीय वित्त मंत्रालय का सांख्यिकी विभाग ही देता है)।
आप छोटे में समझें कि अगर किसी व्यक्ति का वेतन १०,००० रुपए है और वह अपने घर की गुजर-बसर इतने में कर लेता था तो पिछले २ साल में जितनी महंगाई बढ़ी है उस हिसाब से अब उसे अपने उसी प्रकार के रहन-सहन को मैंटेन करने में १४,००० रुपयों की जरूरत पड़ेगी। तो दोस्तों महंगाई तो ४० फीसदी बढ़ गई और क्या आप या हममें में से किसी दोस्त का वेतन ४० फीसदी बढ़ा क्या??.....तो इसका मतलब आप-हम लोग जीवन में आगे बढ़ने के बजाए पीछे जा रहे हैं और अपने पुराने रहन-सहन को मैंटेन करने के लिए ही संघर्ष कर रहे हैं।
मैंने बीबीसी पर एक खबर पढ़ी थी कि आम आदमी के भोजन की थाली भी २० प्रतिशत महंगी हो गई है। मैं वो घिसा-घिसाया डॉयलॉग तो नहीं मारूँगा कि संप्रग सरकार को उखाड़ फैंकों, क्योंकि अगर भाजपा भी सरकार में आएगी तो उन्हीं नीतियों पर चलेगी जिनपर वर्तमान सरकार चल रही है, क्योंकि हमारा देश अब अमेरिका और वर्ल्ड बैंक की गिरफ्त में है, उसे उन्हीं की बातें माननी पड़ेंगी भले ही वो चाहे या ना चाहे। तो दोस्तों हमारे पास मताधिकार की शक्ति तो है ही साथ ही कई लोकतंत्रिक तरीके भी हैं जिनसे हम सरदारजी और उनके वित्तमंत्री को समझा सकते हैं कि हमें ऐसे इकोनॉमिक रिजोल्यूशन्स नहीं चाहिए जो हमारे घर के चूल्हे को ही बुझा दें, हमारे बच्चों को अच्छे स्कूलों से महरूम कर दें और हमें अपने लिए एक अदद मकान तक नहीं बनाने दें.......। आप समझ रहे हैं ना......??
आपका ही सचिन......।

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