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11.7.08

खोलकर अपनी जो दिखायेंगे.

ग़ज़ल
पिछला इतिहास जो भुलायेंगे
खोलकर अपनी जो दिखायेंगे.

देशवासी अगर रहे सोते,
अब की अमरीकी मार जायेंगे.

बेचकर देश को ये रखवाले,
बारी-बारी से मुस्करायेंगे.

चूतिये देखना अब संसद में,
हल्ला गुल्ला ये सब मचायेंगे.

अपने दुश्मन की देखना लोगो,
गांड में ऐसा हल चलायेंगे.

ब्लॉग पे जितने भी ये लुच्चे हैं,
साले हगने को तरस जायेंगे.

गर भड़ासी न होंगे दुनियाँ में,
हम ये ग़ज़लें किसे सुनायेंगे.

डॉ.सुभाष भदौरिया,अहमदाबाद.ता.11-07-08 समय-10.35























5 comments:

bngiri said...

bahut khub bhai subhas . sabko pata hai ki desh aaj netaon ki vajah se bhand me ja raha hai.lekin desh ke log har tarah se andhe ho gaye hai .aise me akla ke andho se kisi tarah ki samjhadari ki ummid karana bemani hai.

Anonymous said...

डॉ.सुभाष भदौरिया जी,


भाई मजा आ गया, कसम से इतनी भडासी गजल तो आज तक नहीं सुनी ा
भई कोई किताब विताब नहीं निकाल रहे हो क्‍याा

subhash Bhadauria said...

गिरीजी एवं पुनीतजी आपकी हौसला अफ़जाई के लिए शुक्रिया.मेरी ग़ज़लें और व्यंग्य लेख इस पते पर देख सकते है.
http://subhashbhadauria.blogspot.com/
ये तो यशवंतजी और रूपेशजी का ही जिगरा है जो हम गरीबो पर महरबां होकर कोने में ही सही बिठा तो लेते हैं.
पाखंडी तो दूर से ही भाग भाग चिल्लाते हैं और लौंडियों को आ जा मेरी गोदी मे बैठ जा की पुकार लगाते है.

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

डा.भदौरिया,आपने क्या अपने आपको भड़ास के वेबपेज में या हमारे दिल में खुद को कोने में पाया है?यदि आप ऐसा महसूस कर रहे हैं तो बताएं कि ऐसा क्या सुअरपन हम लोगों हो गया जो कि पूरी दिल की दुनिया पर काबिज है वो खुद को एक कोने में महसूस कर रहा है...
बता ही दीजिये.... हिचकिचाइयेगा मत,प्रमादवश भूलें हो ही जाती हैं आपको दुःख हुआ इसका प्रायश्चित कैसे करा जाए?

subhash Bhadauria said...

आदरणीय रुपेशजी एवं यशवंतजी आप लोगों को संघर्ष करते मैने ब्लॉग की दुनिया में भी देखा है और ज़िंन्दगी में भी आप लड़ाके होंगे. अपने लिए नहीं औरों के लिए.
मैं सिर्फ़ आप से ही नहीं भड़ास से जुड़े तमाम लोगों से अपनी मुहब्बत का इज़हार करता हूँ जिसके वे हक़दार हैं.
ये दौर पाखंडियों और दोगलों का है. इस दौर में आप अपनी कबीराना अलख जगाये हुए हैं.
एक बात और जुगनुओं की चमक से बेहतर कुत्तों के भौकने में ज़िन्दगी के निशान मिलते हैं.
हम सब परमात्मा के कुत्ते हैं यार आम लोगों के वास्ते अपना गला फाड़ रहे हैं और नासमझ लोगो के पत्थरों से लहूलुहान हैं.
जिनको तलवे चाटने मैं परमानंद की प्राप्ति होती है वे
इस शिद्दत को क्या समझें.
आप लोगों की कोई ख़ता नहीं अपने मुकद्दर से डर लगता है.
जग ने छीना मुझसे,
मुझे जो भी लगा प्यारा.
हमारी ग़ज़लों में कड़वाहट ही नहीं दिल की मिठास का इल्म शीघ्र ही भड़ासियों को होगा.
बस थोड़ी फिकर इस बात की रहती है कि मुझमें तलखियाँ बहुत ज्यादा हैं आप लोगो की मेरी वजह से कहीं परेशानी न हो.और कोई बात नहीं है जी आप दिल पे न लें.