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11.7.08

Geet

हरी भरी सी क्यारियों में बहता ठंडा पानी
ओढ़ चुनरिया धानी नाचे ऋतुओं की महारानी
हरे-भरे पर्वत नदियों से करते छेड़खानी
हरे-भरे मौसम में तू भी बरखा बनके आ
खुशबू के लफ्जों में नगमे तू सावन के गा।

Maqbool

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