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22.8.08

चंदे का ब्यौरा नहीं दे रहे 900 राजनीतिक दल


पाणिनी आनंद बीबीसी संवाददाता, दिल्ली


भले ही भारत के प्रधानमंत्री और यूपीए सरकार सूचना का अधिकार क़ानून को अपनी उपलब्धियों की सूची में प्रमुखता से शामिल कर रहे हों पर यूपीए के ही कई प्रमुख घटक दल अपनी पारदर्शिता और जवाबदेही तय कराने के नियमों की अनदेखी कर रहे हैं। चाहे वो रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव का राष्ट्रीय जनता दल हो, रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी हो, करुणानिधि के नेतृत्ववाली डीएमके हो, शिबू सोरेन का झारखंड मुक्ति मोर्चा हो या अन्य प्रमुख राजनीतिक दल हों, इन दलों ने चुनाव आयोग को अपने दानदाताओं के बारे में दिया जाने वाला ब्यौरा उपलब्ध नहीं कराया है।

और तो और, उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल, आरएसपी, तृणमूल कांग्रेस, पीडीपी, नेशनल कांफ़्रेंस और फ़ॉरवर्ड ब्लॉक की ओर से भी आयोग को जानकारी देने के नियम की लगातार अनदेखी की गई है. दान या चंदे के रूप में पार्टियों को मिलने वाले पैसे के मामले में पारदर्शिता से पीछे हटनेवाले दलों की तादाद इतनी भर नहीं है. जानकारी के मुताबिक भारत के चुनाव आयोग के पास पंजीकृत 920 राजनीतिक दलों में से केवल 21 पार्टियाँ ही ऐसी हैं जो अपने चंदे और आमदनी से संबंधित विवरण आयोग को सौंप रहे हैं।


सूचना का अधिकार क़ानून के तहत चुनाव आयोग से यह जानकारी मांगी दिल्ली के एक युवा कार्यकर्ता अफ़रोज़ आलम साहिल ने जिससे पता चला कि पार्टियाँ पारदर्शिता सुनिश्चित करानेवाले इस प्रभावी नियम की किस तरह अनदेखी कर रही हैं।


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वर्ष 2003 में एक संशोधन के तहत यह नियम बनाया गया था कि सभी राजनीतिक दलों को फ़ार्म 24(ए) के माध्यम से चुनाव आयोग को यह जानकारी देनी होगी कि उन्हें हर वित्तीय वर्ष के दौरान किन-किन व्यक्तियों और संस्थानों से कुल कितना चंदा मिला. हालांकि राजनीतिक दलों को इस नियम के तहत 20 हज़ार से ऊपर के चंदों की ही जानकारी देनी होती है. पर चुनाव आयोग से मिली जानकारी के मुताबिक वर्ष 2004 से 2007 के दौरान तीन वित्तीय वर्षों में केवल 21 राजनीतिक दल ही यह ब्यौरा आयोग को देते रहे हैं. वैसे प्रति वर्ष के आधार पर देखें तो केवल 16 पार्टियाँ ही एक वित्तीय वर्ष में चुनाव आयोग का यह ब्यौरा सौंप रही हैं।


'असहाय' आयोग

इस बारे में जब बीबीसी ने भारत के चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि नियम के मुताबिक आयोग के पास पंजीकृत सभी दलों को चंदे से संबंधित जानकारी उपलब्ध करानी चाहिए पर ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत राजनीतिक दल यह जानकारी देने के लिए बाध्य हों. उन्होंने कहा, "राजनीतिक दल यह जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं हैं. कुछ दल आयोग को यह ब्यौरा सौंप देते हैं. हमारे पास इनका मूल्यांकन करने या जाँचने के अधिकार नहीं हैं. हम उन्हें केवल एक प्रमाण पत्र जारी कर देते हैं कि इस दल ने यह जानकारी आयोग को दी है. इसका लाभ उन्हें आयकर राहत के रूप में मिलता है." यानी नियम तो यह कहता है कि राजनीतिक दलों को चंदे का ब्यौरा आयोग में जमा करना है पर ऐसा प्रावधान नहीं बनाया गया जिसके तहत आयोग इस जानकारी का जमा किया जाना सुनिश्चित कर सके. चुनाव आयुक्त बताते हैं कि राजनीतिक दलों को जो लोग चंदा देते हैं या जो पार्टियां चंदा लेती हैं, उनका इस बात पर तो ध्यान रहता ही है कि इसके बदले उन्हें आयकर में राहत मिले. ऐसे में चंदे के बारे में जानकारी आयोग को देना उनके अपने हित की बात है. साथ ही चुनाव आयुक्त यह भी स्वीकारते हैं कि आयकर में राहत के लिए ही इस नियम को नहीं देखना चाहिए बल्कि राजनीतिक दलों को अपनी पारदर्शिता तय करने के लिए यह जानकारी आयोग को देनी चाहिए और इस बारे में बना यह नियम राजनीतिक दलों के लिए अनिवार्य होना चाहिए. उन्होंने बताया कि कुछ दलों की जाँच के दौरान यह भी पाया गया कि कुछ राजनीतिक दल चंदे तो ले रहे हैं पर इसका उपयोग राजनीतिक कार्यों के बजाय शेयर या जेवरात जैसी निजी चीज़ें ख़रीदने में कर रहे हैं. ऐसे में इस बात की जाँच भी ज़रूरी हो जाती है कि राजनीतिक दल किस तरह से चंदे का इस्तेमाल कर रहे हैं. सवाल और भी हैं. मसलन, राजनीतिक दल अपनी ऑडिट निजी स्तर पर करवाकर आयकर विभाग या आयोग को जानकारी दे देते हैं. इस बारे में आयोग ने केंद्र सरकार से सिफ़ारिश की थी कि ऑडिट के लिए एक संयुक्त जाँचदल बनाया जाए जो राजनीतिक दलों के पैसे की ऑडिट करे. अगर ऐसा होता तो राजनीतिक दलों के खर्च पर नज़र रख पाना और उसकी जाँच कर पाना संभव हो पाता. इससे पार्टियों की पारदर्शिता तो तय होती ही, साथ ही राजनीतिक दलों के खर्च और उसके तरीके पर भी नियंत्रण क़ायम होता. पर केंद्र सरकार ने इस सिफारिश को फिलहाल ठंडे बस्ते में ही रखा है। '

कठोर क़दम उठाएं'

वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण राजनीतिक दलों के जानकारी न देने के क़दम को ग़ैर-ज़िम्मेदाराना बताते हुए कहते हैं कि इससे स्पष्ट हो गया है कि अपनी ख़ुद की पारदर्शिता और जवाबदेही के प्रति ये दल कितने गंभीर है. ऐसे दलों के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून के तहत कार्यवाही की जानी चाहिए. प्रशांत भूषण कहते हैं कि ऐसे दलों के ख़िलाफ़ आयोग को न्यायालय में जाना चाहिए और इनकी मान्यता रद्द कर देनी चाहिए. यदि ऐसा आयोग के दायरे में न हो तो न्यायालय के दखल से ऐसा कराना चाहिए. पर चुनाव आयुक्त बताते हैं कि राजनीतिक दलों के ख़िलाफ़ इस मामले में कोई कार्यवाही करने का अधिकार चुनाव आयोग के पास है ही नहीं. उन्होंने बताया कि आयोग राजनीतिक दलों के कामकाज, खर्च और पारदर्शिता तय करने के लिए प्रभावी अधिकार दिए जाने की मांग सरकार के सामने रखता रहा है पर कुछ कारणों से यह टाला जाता रहा है. जानकार मानते हैं कि राजनीतिक दलों की जवाबदेही तय करने के लिए जिस तरह के नियमों और अधिकारों की ज़रूरत है, वे संबंधित विभागों को मिले ही नहीं हैं. विडंबना यह है कि देश के वर्तमान राजनीतिक चरित्र में इसकी गुंजाइश भी कम नज़र आती है. बहरहाल, व्यवस्था की पारदर्शिता और जवाबदेही तय करने की ज़रूरत पर सैद्धांतिक रूप से सिर हिलाने वाले राजनीतिक दलों को यह सिद्धांत पहले ख़ुद व्यवहार में उतारना होगा। कुछ ने पहल ही है पर अभी कितनों का यह समझना, अपनाना बाक़ी है।


वर्तमान लोकसभा में पहुँचनेवाले उन दलों की सूची जिन्होंने अभी तक चुनाव आयोग को अपने चंदों का ब्यौरा नहीं सौंपा है- राष्ट्रीय जनता दल, बहुजन समाज पार्टी, बीजू जनता दल, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी, शिरोमणि अकाली दल, पक्कलि मक्कल काटची, झारखंड मुक्ति मोर्चा, डीएमके, लोक जनशक्ति पार्टी, ऑल इंडिया फ़ॉरवर्ड ब्लॉक, जनता दल (सेक्यूलर), राष्ट्रीय लोकदल, आरएसपी, तेलंगाना राष्ट्र समिति, जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ़्रेंस, केरल कांग्रेस, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन, तृणमूल कांग्रेस, भारतीय नवशक्ति पार्टी, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, मिज़ो नेशनल फ़्रंट, मुस्लिम लीग केरल स्टेट कमेटी, नगालैंड पीपुल्स फ़्रंट, नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया, सिक्किम डेमोक्रेटिक पार्टी

अबतक ब्यौरा सौंपने वाले दल
भारतीय जनता पार्टी
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी
इंडियन नेशनल कांग्रेस
एडीएमके
समाजवादी पार्टी
जनता दल (युनाइटेड)
तेलगू देशम
एमडीएमके
शिवसेना
असम युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ़्रंट
मातृभक्त पार्टी
राष्ट्रीय विकास पार्टी
भारतीय विकास पार्टी
मानव जागृति मंच
भारतीय महाशक्ति मोर्चा
समाजवादी युवा दल
सत्य विजय पार्टी
थर्ड व्यु पार्टी
जनमंगल पक्ष
लोकसत्ता पार्टी

2 comments:

Unknown said...

ऐसे दलों की मान्यता खत्म कर देने के सिवा और कोई चारा नहीं है। इन्हें तो मौका भी नहीं देना चाहिए।

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

मुकुंद भाई,मान्यता देने वाले भी यही हैं तो क्या कुत्ते ने काटा है जो अपने ही भाई बंधुओं की मान्यता समाप्त करेंगे। चोर-चोर मौसेरे भाई... ये रिश्ता बस राजनैतिक दल ही निभाते हैं बाकि ने तो सगे भाईयों को भी रिश्ते में दूर कर दिया है आजकल.....