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24.8.08

खेलों का आयोजन या ताकत का प्रदर्शन?

बीजिंग ओलम्पिक का आज समापन उसी भव्यता से हुआ जिस तरह से उसका आगाज़ हुआ था. चीन ने अपने आयोजन से सारे विश्व के सामने अपनी हनक को स्पष्ट कर दिया है. चीन अपनी नीतियों, अपने कार्यों के लिए हमेशा विवादों के, संदेह के घेरे में बना रहता था. इस आयोजन के पहले भी कई सारे देश इस ताक में थे कि कैसे भी कुछ कमी इस आयोजन में दिखे और वे चीन को नीचा दिखाने में कोई कसर बाक़ी न रखें. चीन ने अपने उदघाटन समारोह में जिस तरह से अपनी तकनीक, अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया वो वाकई कमाल का था तथा हैरत में डालने वाला था.
देखा जाए तो चीन ने हमेशा बंद अर्थव्यवस्था (Closed Economy) को अपने देश में बनाये रखा है और बिना महाशक्तियों के सहारे उन्नति की. जब उसने अपने बाज़ार को खोला तो फ़िर समूचे विश्व के बाज़ारों को अपने सामान से भर दिया. बहरहाल बात करें ओलम्पिक की तो लग रहा था कि चीन सफलता की कहानी लिख नहीं पायेगा. उदघाटन में एक बारगी तो विश्वास ही नहीं हुआ कि ये चीन की ताकत है. एक एक कार्यक्रम लोगों के भ्रम को तोड़ रहा था. तमाम महाशक्तियों के महानायक स्टेडियम में बैठे-बैठे सिर्फ़ तमाशा देख कर अपनी ताकत का अनुमान लगा रहे थे.
चीन की ताकत से कोई देश घबराए या नहीं, कोई संभले या नहीं पर हमारे देश को कुछ सीखने, कुछ संभलने की जरूरत है। जिस तरह चीन का अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप हमारी सीमाओं में होता रहता है वो अब नजरंदाज करने वाला नहीं है. हमने कितने भी परमाणु बना लिए हों, कितने भी हथियार जमा कर लिए हों पर जिस तरह से चीन ने अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है वो दिखाता है कि चीन की तकनीक कितनी उन्नत है. चीन ने ने खेलोंके माध्यम से समूचे विश्व को एक संकेत दिया है जिससे भारत को सतर्क रहने की जरूरत है.
इसे केवल खेल न समझा जाए एक प्रकार की कूटनीति ही मन जाए. इसे केवल भ्रम न समझा जाए, कुछ वास्तविकता भी इसमें देखी-समझी जाए.

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