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4.9.08

पहचान कौन?

1
कूच किया दिल्ली से, फिर भी बने रहे स्टार।
भारत भर में जमा रखे हैं, सूचना तंत्र के तार।।
अभी-अभी भोपाल में आए, ऊंचा जिनका नाम।
अच्छे-खासे दास हो गए देखके जिनका काम।।
लिखने में उस्ताद, मोहल्लाभर में धाक॥

2
माथे चढ़ा न पद का मद, न बदला रंग-रूप।
मुट्ठी में दुनिया लेकिन, वैसा ही रहा स्वरूप।।
रचने को इतिहास चले वो, फिर से नई तैयारी है।
भोपाल को दी आवाज नई, अब इंदौर की बारी है।।
बनी रहे ये शान, जीत लो जहान॥

3
टाटा ने टाटा किया, छोड़ दिया सिंगूर।
लटखकिया लटक गई, खट्टे रहे अंगूर।।
जीत गए कृषक यह बाजी, मानी सबने हार।
लाचार हुई नारी के आगे, बंगाली सरकार।।
वीरांगना-सी शैली, खूब निकाले रैली।।

4
दुनिया वाले मानें लोहा, किया भाई ने मुंह काला।
खूब नचाया अंग्रेजों को, पर पप्पू कान्ट डांस साला।।
किंग खान जब बोले चक दे, जमीं पे लाए ये तारे।
अर्धनारीश्वर बनकर भैया, दिखा रहे अब रंग न्यारे।।
आसमान में उड़ते हैं, टाटा-टाटा करते हैं॥

अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'


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