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15.9.08

उठो जवान

पुकारता तुम्हे वतन बाँध शीश से कफ़न
उठो जवान देश के उठो गुमान देश के
खीच लो क्रपांड सुप्त म्यान में है जो पड़ी
आज आ गई है तेरे इम्तेहान कि घडी
उठो प्रयलय कि आग बन आंधियो का राग बन
झनझना उठे जो आज वीरता की हर लड़ी
उठो श्रमिक ,उठो पथिक ,उठो जवान देश के
आसमान देश के उठो गुमान देश के
(यह वीर रस की कविता बचपन में याद की थी । और आज भी प्रासनगिक )

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