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2.9.08

पहचान कौन?

दोस्तों, बुरा न मानो यह पहेलियां हैं।...और यह जरूरी नहीं कि इनमें निंदा रस ही निचोड़ा गया हो। मकसद अच्छे लोगों की तारीफ करना, उनकी हौसला अफजाई करना है और उनके जुनून में 'वीर रस' का योगदान करना है। पहेलियों के लिए हमें सुझाव दें।
अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'
1
मोटा चश्मा नाक पर, सिर पर बचे न बाल।
षड्यंत्रों में जीरो फिर भी चलते टेड़ी चाल।।
अच्छा-खासा व्यक्तित्व है, पर बोली लगती ठस।
बॉस की नस-नस में ठकुराइस, यही हिंट हैं बस।।
रिश्तों में मधुरता लाइए, मिश्री खाइए।
2
तीन देवियों की है यह ऐसी अजब कहानी।
संग खाती थी, संग पीती थीं एक घाट का पानी।।
लगी नजर न जाने किसकी, टूटी रिश्तों की डोर।
बना हुआ है रहस्य कि, किसके दिल में था चोर।।
बीती ताहि बिसार दो, मन से मैल निकाल दो।
3
बक-बक करना फितरत जिनकी, मुंह पर नहीं लगाम।
उल्टा बास-बरेली समझो, फिर भी बेहतर है काम।।
ह्रदय से देशज हैं, लेकिन दिखते हैं अंग्रेज।
आपरेटरों में हैं, जिनका अच्छा-खास क्रेज।।
नौकरी चाहिए, फोन लगाइए।

1 comment:

Anonymous said...

हलो अमिताभ सर मैं आपकी यह पहेलियां कई दिनों से पढ़ रहा हूं बहुत अच्छी लग रही हैं। कृपया कर आप इसी प्रकार लिखते रहें।