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20.9.08

काँग्रेसी दादाओं से घिर रहीं ममता



प्रकाश चण्डालिया
पश्चिम बंगाल में वाम विरोधी सियासत के केंद्र में कभी काँग्रेस रहा करती थी, लेकिन आज वह हाशिए पर है और ममता बनर्जी केंद्र में। अब उसे बंगाल की जनता केसाथ की गयी दोगली राजनीति की कीमतें चुकाँनी पड़ रही हैं। बंगाल में वामपंथियों से लोहा लेने केलिए काँग्रेस के पास जो ताकत थी, उसका सही इस्तेमाल किया गया होता, तो काँग्रेस अपने दुर्दिनों से बच सकती थी।
किसी जमाने में पश्चिम बंगाल काँग्रेस कमिटी में औना-पौना स्थान हासिल करने केलिए काँर्यकर्ता और छुटभैय्ये नेता कतार लगाया करते थे। आज काँ आलम यह है कि जिन लोगों को प्रदेश काँग्रेस अध्यक्ष उर्फ केंद्रीय मंत्री उर्फ सोनिया गांधी के चहेते प्रियरंजन दासमुंशी ने प्रदेश कमिटी में स्थान दिया, एक-एक कर वे खुद अपना दायित्व छोड़ रहे हैं या फिर इस बात को अच्छी तरह समझ रहे हैं कि दासमुंशी ने उन्हें अपनी टीम में इसलिए शामिल किया कि वे भागकर ममता के खेमे में न चले जाएं। शुरुआत सोमेन मित्र से होती है। सोमेन मित्र की प्रदेश संगठन पर गजब की पकड़ रही है, लेकिन दासमुंशी की चाल केचलते वे हाल केवर्षों में कोपभवन में बैठे रहने को मजबूर हुए। नतीजा? उन्होंने दासमुंशी केप्रदेश अध्यक्ष बनने केबाद पार्टी छोड़कर प्रगतिशील इन्दिरा काँग्रेस के नाम से नया संगठन खड़ा कर लिया। हालांकि काँग्रेसी मिजाज वाले मानते हैं कि सोमेन मित्र ने ममता बनर्जी से अपने राजनैतिक भविष्य काँ सौदा करने की गरज से नया संगठन बनाया है, लेकिन भीतरी महकमों की खबर रखने वाले संकेत दे रहे हैं कि सोमेन केदल में कुछ ही दिनों में और कई विधायक आने वाले हैं। इनमें अव्वल सुदीप बनर्जी काँ नाम लिया जा रहा है। यही नहीं, काँफी संख्या में हरेक जिले से काँग्रेसी काँर्यकर्ता डूबती नैय्या छोड़कर सोमेन काँ दामन थामने जा रहे हैं। सुदीप बनर्जी विधानसभा की औद्योगिक कमिटी केचेयरमैन हैं। इस नाते हाल ही में राजभवन में उन्होंने सिंगुर मसले पर ममता के सुर में सुर मिलाकर अपने नरम रुख काँ संकेत भी दिया था।
काँग्रेस से बगावत करने वाले दूसरे चतुर सुजान हैं सुब्रत मुखर्जी। ममता बनर्जी की खार काँ शिकार होने पर कुछ वर्षों पहले उन्होंने तृणमूल काँग्रेस छोड़ दी थी, लेकिन पिछले दिनों सिंगुर में ममता केसाथ खड़े होकर उन्होंने काँग्रेस के प्रति अपनी नफरत काँ बीज बो दिया था। दासमुंशी ने हाल ही में उन्हें प्रदेश काँग्रेस काँ कार्यकारी अध्यक्ष और प्रवक्ता नियुक्त किया था। सुब्रत मुखर्जी बड़ी चालाकी के साथ अपना भविष्य तय करेंगे। वस्तुत: इन सारे बागी काँग्रेसियों को डिलिमिटेशन की वजह से अपनी विधानसभा सीट खोने काँ खौफ सता रहा है। कोलकाँता में विधानसभा की कई सीटें जमींदोज हो गयी हैं। इसलिए इन्हें अपने भविष्य के लिए ममता काँ दामन थामना पड़ रहा है। काँग्रेस चूंfक महंगाई के लिए निरन्तर बदनाम हो रही है, और नंदीग्राम-सिंगुर मसले पर ममता की पार्टी की लोकप्रियता निरंतर बढ़ रही है, इसलिए सोमेनदा, सुब्रत दा, सुदीपदा जैसे और भी कई काँग्रेसी दादा ममता के शरणापन्न हों, तो आश्चर्य नहीं होगा।

1 comment:

Anonymous said...

दादा,
आपकी ख़बर से खबरदार होने का मजा ही आनंदित करता है,
जारी रहिये.
बधाई