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28.9.08

मेरा दर्द

दिल्ली के महरौली में कल फिर एक ब्लास्ट हुआ। हालांकि समाचार तो कल दोपहर ही मिल गया था, लेकिन इस विषय में लिखने का समय नहीं मिला। इस घटना से मैं चिंतित कम और विक्षोभित ’यादा हूं। कल सरेआम एक बाइक पर सवार दो जनों ने भरे बाजार में टिफिन की थैली सड़क पर रख दी और चले गए। वही दिल्ली जो बमुश्किल दस दिन पूर्व कई धमाकों का दर्द झेल चुकी है, एक और दर्द लोगों की बुजदिली और बेवकूफी के कारण फिर सहना पड़ा। मैं मेरे घर में रहता हूं। मेरे घर यदि कोई भी बाहर का व्यक्ति आकर कोई गलत हरकत करता है, अथवा बम रख जाता है, तो उसकी जिम्मेदारी सरकार अथवा खाकी वदीü की नहीं है, ऐसा मेरा मानना है, साथ ही कई अन्य लोगों का भी। वह बाजार जहां रोज हजारों लोगों की चहल-पहल रहती है, उन व्यापारियों अथवा व्यवसायियों का घर ही है, जिससे उनकी रोजी रोटी चलती है। उस भरे बाजार में किसी का भी चुपके से कोई वस्तु रखकर चला जाना और लोगों को खबर न होना संदेह जाहिर करता है। और कम से कम मैं तो कह सकता हूं कि उस बाजार के लगभग आधे व्यापारी उन आतंकवादियों से मिले हुए हैं। अगर ऐसा नहीं है, तो यह घोर लापरवाही है। लोग अभी भी जागरूक नहीं होंगे, तो कब होंगे। हर जगह आकर पुलिस ही नहीं देखेगी कि कौन बाइक सवार कहां थैली रख रहा है अथवा कौन दाढ़ी वाला या कुर्ताधारी किस डस्टबिन में थैली डाल रहा है। हमारे सामने जो घटना हो जाती है, हम केवल उसी के प्रति सतर्क रहकर अन्य बातों को क्यों भूल जाते हैं। क्यों केवल यह ही याद रखते हैं कि बम धमाका केवल साइकिल से ही होगा। क्यों हमें यह ध्यान नहीं रहता कि आतंकवादी डस्टबिन में भी बम डाल सकते हैं। डस्टबिन में बम फटने के बाद हम केवल डस्टबिन में कौन व्यक्ति क्या डाल रहा है, यही ध्यान रखते हैं। क्यों यह भूल जाते हैं कि आतंकवादी सरेआम आकर रोड पर भी बम रख सकते हैं और हम उनका कुछ भी नहीं कर सकते। जब वे थैली रखकर जा रहे थे, तो क्यों किसी की नजर नहीं गई और क्यों किसी ने उन्हें रोकने अथवा पकड़ने का प्रयास नहीं किया। मुझे चिंता इस बात की नहीं कि आतंकवादियों के हौसले कितने बढ़ गए हैं। क्षोभ है कि मैं स्वयं अपने घर की रखवाली नहीं करूंगा या सतर्क नहीं रहूंगा तो कोई भी बाहरी आकर मेरे घर से रास्ता बना ले या उसे अपना अड्डा बना ले, तो इसमें उस बाहरी व्यक्ति का कोई कसूर नहीं है। मुझे अपने घर की रखवाली स्वयं करनी होगी और हम सबको अपने मौहल्ले, बाजार, रा’य और देश की रखवाली भी स्वयं ही करनी होगी। सरकार कुछ नहीं है। सरकार को शक्ति हम ही देते हैं। हममे से ही आधे लोग आतंकवादी निरोधक कानून के विरोध में हैं इसीलिए सरकार वह कानून नहीं ला पा रही, तो इसमें सरकार का कोई दोष नहीं है। अगर एकजुट होकर आतंकवादियों और देशद्रोहियों के विरोध में हम सब खड़े हो गए, तो अपने आप ही पोटा लागू हो जाएगे, सरकार को करने की जरूरत नहीं है। क्योंकि पोटा के कारण तो पुलिस को शक्ति मिलेगी आतंकियों को पकड़ने की। जबकि हमारी एकजुटता से आतंकवादियों के हौसले ही नहीं होंगे किसी भी वारदात करने के। तो यह अब हम लोगों पर ही है कि या तो एकजुट होकर देश को मजबूत करें या फिर स्वयं तो क्षीण हैं ही, एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर देश को भी क्षीण करने का प्रयत्न करें।

2 comments:

उमेश कुमार said...

आपकी चिन्ता बिलकुल सही है की सब बातो के लिए केवल सरकार पर निर्भरता हमे लापरवाह बनाती है और हम मौत के मुह मे चले जाते है।अपनी ओर से भी जागरुकता जरूरी है।

उमेश कुमार said...

आपकी चिन्ता बिलकुल सही है की सब बातो के लिए केवल सरकार पर निर्भरता हमे लापरवाह बनाती है और हम मौत के मुह मे चले जाते है।अपनी ओर से भी जागरुकता जरूरी है।