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6.9.08

बिग बॉस - पायल, अहसान और औकात

दो दिन पहले coloures चैनल पर रियलिटी शो बिग बॉस देख रहा था,इसमें एक घटना हुई जिसमें अदाकारा पायल रोहतगी से अहसान कुरैशी की नोकझोक हो गयी,कारण था की अहसान भाई ने पायल को कहा की पायल अगर झाडू लगाना हो तो उस तरह के कपड़े पहनना चाहिए जिससे काम करने में दिक्कत न हो, पायल को बात बुरी लगी फलस्वरूप अहसान ने माफी मांग ली। यहाँ तक सबकुछ सामान्य था लेकिन पायल ने बात ख़तम होने के बात जो बात उठाई वो शायद कही अधिक बड़ी थी, पायल ने बाहर आकर कहा की - ये अहसान है कौन, ये है किस वर्ग का, दो कौडी का कामेडियन और उसकी औकात क्या है, आदि आदि, बाद में यह भी जोड़ा गया की इस कार्यक्रम में कुछ लोग उस वर्ग से भी आ गए है जो की घटिया सोच का है. साफ़ साफ़ इशारा समाज के निम्न मध्यम वर्ग की और था. अब जब बात औकात और स्तर की ही चल निकली है तो सुनो पायल रोहतगी की क्या औकात है चंद एक दो फिल्में जिनमें भी ऐसी भूमिकाएं जिन्हें की याद रखने के लिए दिमाग पर जोर डालना पड़ता है, मुंबई में मेरे एक पत्रकार मित्र जो की आज फ़िल्म रिपोर्टिंग देख रहे है उनसे जब इस बात की चर्चा की तो उन्होंने पायल रोहतगी के बारे में जो बताया वो में लिख नही सकता बाकी सारे भडासी भाई समझदार हैं. दरअसल मैं लाफ्टर चैलेन्ज शो के दौरान ही अहसान से मिला था एक इंटरव्यू के लिए तो मैंने पाया की ये कोई साधारण बात नही है की एक आदमी इतनी दुर्गम जिन्दगी को जीकर हंसने हसाने की बात कर सकता है . दरअसल जिस वर्ग को हमेशा लानत भेजी जाती है वो वर्ग ही इन घटिया सोच के घटिया लोगों को स्टार का दर्जा देता है, कोई भी जब दो कोडी का फ़िल्म स्टार किसी छोटे शहर में आता है तो ये ही गरीब और मध्यम वर्ग का आदमी होता है जो उसकी एक झलक देखने के लिए अपना काम धंधा छोड़ कर चला जाता है. जो आपको प्यार दे रहा है उस वर्ग के बारे में इतनी घटिया सोच ये तो अच्छी बात नही है. अहसान और उस जैसे लोग या की कहे उस वर्ग के लोग जब कोई मुकाम हासिल करते है तो उस सफलता के नींव में न जाने कितने समझौते होते है शायद कितने ही रातों की भूख शामिल हो या की कितने ही लोगों की दुत्कारें शामिल हो, और थोडी सी सफलता मिलते ही ये समस्या की जो वहां बैठे हैं वे अपने वर्ग में आपको शामिल करने के लिए तैयार नही है, इस घटना से एक बार फिर साबित हुआ है की जो तथाकथित उच्च वर्ग है वो जिनके दम पर उच्च बना हुआ है वही इस वर्ग को हिकारत भरी नजरों से देखता है, मेरा मानना है की यदि इस तरह की मानसिकता के लोगों को यह अहसास कराना जरूरी है की वे अपने सोच में बदलाव लायें और मानसिक घटियापन को सार्वजानिक होने से रोकें, नही तो ऐसे कई उदाहरण हैं की यही सोच लोगों को आसमान से रसातल में ले गयी है. अंत में अपनी बात के समर्थन में मैं कहना चाहूँगा की अहसान के लिए यहाँ तक आना भी कोई कमतर नही है यह यदि सफलता का पहला सोपान है तो इस सोपान पर ही उसका कितना संघर्ष जुडा है उसे सिर्फ़ समझने वाला ही समझ सकता है, और इस रास्ते से आने वाला हरेक व्यक्ति विचारों के शहर का एक नेक नागरिक होता है वो सबका सम्मान करता है.

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

परसाई जी, सिर्फ़ एहसान भाई ही नहीं पायल रोहतगी ने भी संघर्ष करा है इस मुकाम(?) तक आने के लिये बस संघर्ष का स्वरूप थोड़ा अलग है। उसी का परिणाम है कि उनकी विनम्रता समाप्त हो चली है...
जय जय भड़ास

Anonymous said...

भाई,
नम्रता और विनम्रता, संस्कार और तहजीब, सभ्यता और संस्कृति. कुल मिलाकर भारतीयता की जब बात आती है तो हमारे मध्यम वर्ग में ही ये पायी जाती है, आश्चर्य तो इस बात का होता है की इसी वर्ग के लोग आगे आने पर इसे हे दृष्टि से देखने लगते हैं, वस्तुतः: ये इनके उस वर्ग का प्रभाव होता है जहाँ इनके कोई मायने नही होते हैं.
पायल और एहसान इसका बेहतर उदाहरण है.
जय जय भड़ास