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1.9.08

कवि का संसार

ओगुरा ह्याकुनिन इश्शु सौ कवियों की कविताओं का संयोजन है, ये कविताएँ वाका है। वाका पाँच पंक्तियों वाली 31अक्षरो वाली कविताएँ है जो 5-7-5-7-7 क्रम से लिखी जाती है। ये राज दरबारी कविताएँ जो हाइकू के उदय से पहले जापान में प्रचलित थी। इसके संयोजक तेरहवीं सदी के फूजीवारा नौ सदाएई जो तेइका के नाम से भी जाने जाते हैं।



1

शरद का एकाकीपन
पर्वतीय गाँव में हो रहा है
और गहरा, जब
अतिथि चले जाते है, और पत्ते और घास
मुरझा जाते हैः दुखद विचार।



2
यदि मेरी इच्छा होती
श्वेत गुलदावदी तोड़ने की
तुषार से भ्रमित हो
कहीं पतझड़ के प्रारम्भ काल में
मैं अकस्मात वह फूल तोड़ न लूँ।


3
मीबू नो तदामिने
(850---)
सुबह के चन्द्रमा के जैसा
ठंडा, बेरहम था मेरा प्रेम
और जब से हम अलग हुए ,
मुझे किसी से इतनी घृणा नहीं
जितनी सूर्योदय की रोशनी से।


4

चाहे मैं उसे छुपाता है
मेरे चेहरे पर फिर प्रकट हो जाता है
मेरा अनुरक्त, गुप्त प्रेम।
और अब वह मुझसे पूछता है
" क्या तुम्हें कुछ परेशान कर रहा है?"

5

हमारी आस्तीने आँसुओं से भीग गईँ
जब हमने अपने प्रेम के वादे किए
कि वह तब तक बने रहेंगे
जब सू पर्वत के चीड़ों पर
समुद्री लहरे टकराने लगेंगी।


6
अकेले लेटे हुए
रात्रि के घण्तों में
जब तक प्रातःकाल नहीं होता
क्या तुम महसूस कर सकते हो
उस रात की रिक्तता?

7
पथ पर मिलकर
मैं स्पष्ट नहीं समझ पाई
क्या वह ही था,
क्यों कि अर्धरात्रि का चन्द्रमा
बादलों में अदृश्य हो गया।


अनुवाद अंजलि देवघर

1 comment:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

मुकुंद भाई,अपुन कविता-सविता के मामले में थोड़े कच्चे हैं ... ये क्या लिखा है??
जब सू पर्वत के चीड़ों पर
समुद्री लहरे टकराने लगेंगी।
यानि क्या इतनी सारी "सू" कि समुद्री लहरों जैसा माहौल बन जाए :)