Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

29.9.08

नारायण जैन को क्षमा करो नारायण

प्रकाश चण्डालिया
रविवार 28 सितंबर को कोलकाता में हिन्दी दैनिक सन्मार्ग के संपादक राम अवतार की श्रद्धांजलि सभा में विविध क्षेत्रों से आए प्रतिनिधियों ने श्रद्धांजलि अर्पित की। इनमेंं पत्रकारिता, उद्योग, राजनीति के साथ साथ शहर की सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि भारी संख्या में थे। सभा की अध्यक्षता समाज के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री रामनिरंजन झुनझुनवाला कर रहे थे। सभा कक्ष में हिन्दी जगत के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार डा. कृष्ण बिहारी मिश्र, वरिष्ठ साहित्यानुरागी श्री जुगल किशोर जैथलिया, डा. प्रेम शंकर त्रिपाठी सरीखे चन्द लोग भी थे। इनकी उपस्थिति दिवंगत सम्पादक की श्रद्धांजलि सभा को गरिमापूर्ण बना रही थी। राजनीति से जुड़े अधिकतर लोगों की श्रद्धांजलि गुप्ताजी के चित्र पर मालाएं अर्पित करने तक सीमित रहीं, जबकि शब्द-शक्ति के इन चन्द उपासकों से लोग गुप्ताजी के सम्बन्ध में कुछ सुनने को लालायित थे। अन्य लोगों के पास गुप्ताजी के बारे में कहने के लिए भावना कम, औपचारिकता अधिक दिखाई दे रही थी।
श्रद्धांजलि सभा का सबसे त्रासद अवसर तब आया, जब श्रद्धेय डा. कृष्ण बिहारी मिश्र अपना सारगर्भित वक्तव्य रख रहे थे। उनकी वाक-शैली और शब्दों के चयन का पूरा देश कायल है। डा. मिश्र ने गुप्ताजी के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त करने में बमुश्किल दो-तीन मिनट लगाए होंगे कि तभी आयोजकों में से नारायण जैन उठे और डा. मिश्र को अपना वक्तव्य समाप्त करने जैसा संकेत दे डाला। सभा कक्ष में बैठे सुधी श्रोताओं के लिए यह वज्रपात से कम न था। डा. मिश्र सरीखे विनम्र साहित्यकार ने सदाशयता का परिचय देते हुए अपना वक्तव्य वहीं समाप्त कर दिया। पर नारायण जैन की यह धृष्ठता लोगों को रास नहीं आई। भाषा-साहित्य के इस महान उपासक के जीवन में भी शायद यह पहला अवसर रहा होगा, जब माईक पर बोलते समय किसी ने उन्हें बीच में टोकने की गुस्ताखी की हो। डा. मिश्र की विद्वता से वास्ता रखने वाले बखूबी जानते हैं कि हिन्दी पत्रकारिता की जन्मभूमि के इस वयोवृद्ध कलमकार को सुनने लोग लालायित रहते हैं। सहज आकर्षित कर लेने वाली आवाज और विनम्र एवं ओजपूर्ण वाकशैली के इस धनी के साथ हुई घटना पर मुझ जैसे कई लोगों के मन में टीस पहुंची। पर धृष्ठता का मुकाबला करने की बजाए लोगों ने स्तब्ध भाव से इस घटना पर मौन रखा। पर नारायण जैन, जिनका एक राजनैतिक पार्टी से भी वास्ता है, ऐसा करना हिन्दी जगत के मनीषी के साथ अपमानपूर्ण एवं निन्दनीय घटना है, इसे शायद ही कोई भुला पाएगा। डा. मिश्र ने मृदु मुस्कान के साथ सिर्फ इतना कहा-भावनाओं को समय-सीमा में नहीं बांधा जाना चाहिए। नारायण जैन ने समूचे हिन्दी जगत को शर्मसार किया है।

2 comments:

Shambhu Choudhary said...

प्रकाश जी,
श्री नारायण जैन ने कृष्णबिहारी जी को बीच में रोककर जो गुस्तखी की है इसके लिये उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिये।

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

kchhama badan ko chahiye