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23.9.08

व्योमेश की कविताये: prakash

कुहांसे और अंधियारे के बीच
दिखने लगी है आशा की एक नन्ही किरण
बादलो के घने लामबंद परतो के बीच
चमकाने को आतुर है सूरज
बार -बार दल देते है उसे पीछे
काले,डरावने ,सफ़ेद ,भूरे बदल
लेकिन वह आएगा, चमकेगा अवश्य
उस पर टिकी है साडी दुनिया की निगाहे
अंधकार से लड़कर प्रकाश
और अज्ञानता को हर कर ज्ञान का
विस्तृत करने के उदहारण
आओं हम सब मिल कर बने सूरज
फैलाये नव प्रकाश,नव आशा, नव विश्वास
क्योंकि मिल कर अंधकार से लड़ने से
सूरज को शक्ति मिलती है.

2 comments:

Anonymous said...

bhav achchhe hain,kai shabd ka english se hindi translation sahi nahi. plz thik kare to behatar hoga. sorry to say. i think u will not take it otherwise

govind goyal sriganganagar

Anonymous said...

व्योमकेश जी,
बहुत सुंदर है, तकनिकी की समस्या को छोरें और बस पेले रहें, एकाकार के इस आवाहन का तहे दिल से स्वागत, बस एक होने का और भेद भावः, दुर्भावना से ऊपर हिंद और राष्ट्रीयता का संकल्प.
जय जय भड़ास