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5.10.08

सोच का सवाल

पिछले दिनों हिन्दी के ब्लोगरों की अत्यधिक बाढ़ जैसे आयी हुई है, लोग धडाधड ब्लॉग बनाए जा रहे हैं, इनमें प्रतिशत उन लोगों का अधिक है जो की ब्लॉग को भविष्य के रूप में नही देखते हैं, कारण एक ही है। लोग मानते हैं की ब्लॉग विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का साधन है पर ब्लॉग को आगे किस आधार पर आगे बढाया जाए ये तय नही है। इसी दिशा हीनता का लाभ कुछ लोग उठा रहे हैं ये सभी महानगरो के ब्लोगर हैं।
भारत में सुविधाओं और संसाधनों की गति ऊपर से नीचे की और होने के बाद भी अत्यन्त धीमे है या की यों कहें सुविधाएं निचले तबके या क्षेत्रों तक मंथर गति से पहुँचती हैं, यही ब्लॉग का भी हुआ । महानगरों दिल्ली मुंबई आदि में कंप्यूटर पहले आए सबसे पहले ब्लॉग का लिखा जाना भी इन्ही शहरों से शुरू हुआ, सो जो पुराने ब्लोगेर हैं वो आज ब्लोगों के स्वयम्भू मठाधीश हो गए हैं। पिछले दिनों इन्हीं मठाधीशों का एक गुट ब्लॉग पर नजर आया (उनका नाम लिखकर उन्हें मुफ्त में प्रचार नही दूंगा) ये गिनती के चार या पांच लोग हैं , जो की मिलकर ब्लॉग के लिए आचार संहिता तय करने लगे हैं, इनकी साहित्यिक प्रतिभा के बारे में तो कुछ कहना ठीक नही होगा पर ये अपने आप को ब्लॉग का विशेषज्ञ बताने में कोई कसर नही छोड़ रहे हैं । इनमें से एक सज्जन जो की दिल्ली के हैं वे तो अब ये भी कहने लगे हैं की में ब्लॉग मामलों का विशेषज्ञ हूँ । ये दल बताता है की कौन अच्छा नहीं लिख रहा है कौन ग़लत है कौन सही है, ये लोग आपस में मिलकर चिठा जगत या अन्य ब्लोगालयों से उस ब्लॉग को हटवा देने की जुर्रत करते हैं दरअसल ये चाहते हैं की ब्लॉग लिखने के पहले इनसे राय ली जाए और पूछा जाए की अगर महोदय आपकी अनुमति हो तो ये कंटेंट दाल दूँ .....इन्हें सबसे अधिक समस्या भडास से है क्योंकि ये मानते हैं की भारत का जनमानस अभी इतना परिपक्व नही हुआ है की उसे सामुदायिक ब्लॉग की सुविधा से जोड़ा जाए और वे उनकी दृष्टि से आपत्तिजनक सामग्री को रिपोर्ट भी कर रहे हैं, पर भडासियों के आगे उनकी एक नही चल रही है लेकिन वे गुस्सा बाकियों पर निकाल रहे हैं, ब्लॉग में सब कुछ सही है बस ये कुछ ऋणात्मक मानसिकता के लोग ब्लॉग को धंधा बनाने की जुगत में हैं। धंधा बनाना बुरा नही है पर कंटेंट का विश्लेषण करने का अधिकार अभी तक आपको किसी ने नही दिया है, अतः उन सभी से में कहना चाहूँगा की अपनी विद्वत्ता का खजाना अपने पास ही रखें और भारत के छोटे शहरों के लोगों को उनकी सोच से काम करने दे , वे अपना कार्य करें बाकी सब लोग समझदार और जिम्मेदार हैं, आप बस अपना ख्याल रखें ।

1 comment:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

bhai mere yah to har field me hai, naye ko aage badne se rokane kee koshish ki hee jati hai. but do not afraid do your best