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12.10.08

और मैं चला 'लहरों का सरताज़' बनने

और मैं पहुँचा 'लहरों का सरताज़' बनने ११ अक्टूबर को मैं जब घर पहुँचा तो मैंने अपने मोबाइल में सुबह चार बजे का अलार्म फिट कर दिया क्यूंकि मुझे लहरों का सरताज बनने के लिए ऑडिशन देने जाना था. १२ अक्टूबर को सुबह सुबह मैं चाणक्य पुरी के नवल बाग़ में पहुँच गया. वहां पहले से ही करीबन ४०० लोग लाइन लगाये बैठे थे. मैंने एक भाई से पुछा की क्या यही लाइन है नेशनल जेओगार्फिक चैनल के शो 'लहरों के सरताज़' के ऑडिशन के लिए. उस व्यक्ति ने जवाब दिया जी बिल्कुल. मैंने अपनी गाडी साइड में पार्क की और और मैं भी उन्ही के साथ बैठ गया. जिन बन्दों के साथ मैं बैठा था वो सोनीपत से आए थे ऑडिशन देने. थोड़ी देर बाद हमारी बातचीत शुरू हो गई और हमने गप्पे लगना शुरू कर दिया. बातों बातों में कब सुबह हो गयी पता हेई नही चला. मैंने सुबह ६ बजे देखा तो मेरे पीछे लाइन इतनी लम्बी हो गयी थी की उसमे लोगों के सर के सिवा कुछ और नज़र ही नही आ रहा था. करीबन सात बजे प्रवेश शुरू हो गया और मैं भी सभी के साथ अन्दर पहुँच गया. वहां पर मुझे एक चेस्ट जैकेट दी गयी जिस पर नम्बर लिखा हुआ था. मेरा नम्बर था २४९. मैं वहां पर सबके साथ बैठ गया और आगे के प्रोग्राम् का वेट करने लगा. लगभग आधे घंटे बाद मेरे साथ के करीबन ५०० बन्दों को एक साथ खड़ा करके १६०० मीटर की दौड़ के लिए कहा गया. ये आर्डर हमें नेवी के कुछ अधिकरियों ने दिया. दौड़ शुरू हो गयी. शुरू में बहुत से बच्चे तेज़ी से भागे और सबसे आगे निकल गए पर थोड़ी देर में ही वो थककर या तो बैठ गए या फिर गिर गए. मैं अपने एक ले में दौड़ता रहा कोई जल्दबाजी नही की. जिसका परिणाम ये हुआ की मैं १३ वें नम्बर पर अपने लक्ष्य पर पहुँच गया. इस दौड़ में नियम के मुताबिक ६० लोगों को लेना था. मैंने ये दौड़ जीतकर मानो सारा जहाँ जीत लिया हो. जो जीता था ये रेस सब चिल्ला रहे थे. मैं भी सभी के साथ खुशियाँ मन रहा था. मैं इसलिए खुश था की जो लड़के मेरे साथ सोनीपत वाले लाइन में बहार थे वो भी रेस जीत चुके थे. और हम सब एक साथ मिलकर लंच खा रहे थे. लगभग एक घंटे बाद दूसरे राउंड की प्रक्रिया शुरू हुयी. जिसमे मैं बहार हो गया क्यूंकि उसमे बन्दर बनकर चलना था. वैसे मुझे अभी लगता है की मैं सही था और उन लोगों ने चीटिंग की नही तो मेरा दूसरा राउंड बन्दर वाला भी क्लेअर था. लेकिन ये भी हो सकता है की मैं बाहर हो गया और मन को दिलासा दिलाने के लिए ऐसा कह रहा हूँ. लेकिन जो भी रहा ये मेरी ज़िंदगी का सबसे अनोखा और रोमांचक पल था जिसमे मुझे ये पता चला की हजारों की भीड़ में कैसे कोई एक जीतता है. इस पर मैं इतना ही कहूंगा जय नेवी और जय जवान अमित द्विवेदी

1 comment:

Anonymous said...

अमित भैये,
बहुत उंची उड़ान पर हो, चलो शुभकामना.