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14.10.08

हम तो फिर भी इन्सान हैं...

मैंने देखा है नीड़ के निर्माण को,
छोटी-छोटी चींटियों को ,
सांप के चिथड़े उडाते हुए ,
छोटे-छोटे दाने अनाज के ,
अपने घर पहुचाते हुए ,
समूह में चलते हुए अविरल ,
मैंने देखा है ,
उनके जीवन की संघर्षपूर्ण डगर को,
किसी भी मुसीबत का डटकर सामना करते
हुए इकट्ठा होकर ,
हम तो फिर भी इन्सान हैं ।

2 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

insan me yahi to kami hai,wah pahle to ek saath rahne ke liye tarale marta hai or fir ek dusare kee hee tang khichane lagta hai. aapne bahut jandar or shandar likha hai bas is par koi loose words ki tippani koi post naa kare yahi dua hai.

Anonymous said...

भाई,
सच कहा की हम तो फ़िर भी इंसान हैं.
जात पात पर इंसान को काटते इंसान हैं,
धर्म की वेदी पर बलि इंसान को चढाते इंसान है,
देश को कोने में रखकर अपने स्वार्थ के लिए,
धर्म की ठेकेदारी,
मुल्ला, पांडे और पादरी करते इंसान हैं.

चलिए आपकी लेखनी को पढ़कर इंसान इंसान खेलते हैं
जय जय भड़ास