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9.10.08

स्वामी लक्ष्मणानंद--व्यर्थ न होगा यह बलिदान--धीरेन्द्र प्रताप सिंह


स्वामी लक्ष्मणानंद--व्यर्थ न होगा यह बलिदान--धीरेन्द्र प्रताप सिंह
कंधमाल के बनवासी समाज में पिछले कई दशको से उनके साथ हो रहे दुर्व्यवहार और राजनैतिक --सामाजिक उपेक्षा को ले कर जो लावा भीतर भीतर सुलग रहा था वह अब बहार आ गया है /स्वामी लक्ष्मणानंद की नृशंस हत्या के बाद उस पूरे क्षेत्र में कोई ऐसी शक्ति नही है जो क्रोधित बनवासी समाज को रोक सके /स्वामी लक्ष्मणानंद यद्यपि हिंदू परम्परा के सन्यासी थे किंतु वे उनके बीच उनके जैसे हो कर रहे /उन्होंने अपना जीवन कंधमाल के बनबासी समाज के उठान के लिए समर्पित कर दिया परिणामस्वरूप उस समाज का अगाध विश्वास प्राप्त किया /वह भारत के अन्य महान संतो की तरह ही इक बड़े समाजसुधारक थे जिन्होंने ने बनबासी समाज को स्वावलंबी बनने की प्रेरणा दी तथा स्वाभिमान से जीना सिखाया /स्वामी लक्ष्मणानंद ने पूरे क्षेत्र में अत्यधिक सम्मान अर्जित किया था /बनबासी तो उन्हें भगवान् की तरह पूजते थे /कंधमाल के विकास के लिए उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल क्र अनेक उदार लोगो से सहयोग ले कर विकाश योजनाये शुरू की थी /छत्रावासो में सैकडो विद्याराथियो के रहने व् खाने की निःशुल्क व्यवस्था के लिए आवश्यक संसाधन जुटाने के लिए याचक की भाति हेर किसी से सहयोग मांगते थे /किंतु बनबासी समाज के लिए इतना कुछ करने के बाद भी स्वयं वे उसी फूस की झोपडी में आज भी रहते थे जो उन्होंने ४० वर्ष पहले बनाई थी /इतना ही नही वे बनबासी समाज के प्रवक्ता भी थे /महानगरो में बैठे लोगों के लिए यह आश्चर्य का विषय हो सकता है किंतु यह सत्य है आज भी उस क्षेत्र में अंग्रेजी या हिन्दी ही नही उड़िया बोलने वाले लोग भी कम ही है /वे अपनी स्थानीय भासा कुई बोलते है /इन लोगो का जब भी कभी सरकारी मामलो से सामना होता था तो स्वामी जी उनकी वाणी बनते थे /थाने कचहरी अथवा पटवारी के खाते खातुइनी में बनवासियों के साथ अन्याय न हो इसलिए स्वामी जी सदा उनके साथ रहते थे /वर्त्तमान काल में जहाँ लाभ और लोभ सदगुण जैसी प्रतिष्ठा पा चुके है राजनैतिक स्वार्थ जहाँ निति नियंताओं की प्राथमिकता है ऐसे में कोई लक्ष्मणानंद जब सब कुछ त्याग कर बनवासियों के साथ उनके उत्थान में अपना जीवन खपा देता है तो बदले में उसे मिलती है ८४ वर्ष की आयु में न्रिसंस मौत /होती है उसकी हत्या पर निक्रिस्ट राजनीति /लगाये जाते है उस पर लांछन /और जब वे बनबासी जिनके लिए स्वामी जी ने अपना जीवन लगाया क्रोध में उबल पड़ते है तो उन्हें सम्प्रदायिका कहा जाता है /कितने दिन तक चलेगा यह सब /परिवर्तन के जिस चक्र को स्वामी जी ने गति दी थी उसे आगे बढ़ाना ही या उसका संकल्प लेना ही उनके प्रति सच्ची स्राधांजलि होगी /स्वामी जी कहते ठ--रहे --धीरेन्द्र प्रताप सिंह जौनपुर मातृभूमि के लिए कार्य करने का संकल्प ग्रहण किया है तो मृत्यु से कभी मत दरो /उन्होंने बलिदान दे कर अपना वचन पूरा किया अब हमारी बारी है /हमें स्वामी जी की दिवंगत आत्मा को यह विशवास दिलाना होगा की उनका बलिदान व्यर्थ नही जाएगा /उनका संदेश ले कर इक नया भारत खड़ा होगा जो समूचे विश्व को आलूक से भर देगा --स्वामी जी अमर रहे ---धीरेन्द्र प्रताप सिंह दुर्ग्वंशी जौनपुर उत्तर प्रदेश
Posted by dhirendra pratap singh durgvanshi at 12:47 AM

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4 comments:

Satyajeetprakash said...

धीरेन्द्रजी, मैंने कल स्वामीजी की मौत के बाद का वीडियो देखा, आज लिखनेजा रहा था तभी आप केलेख पर नज़र पड़ी. स्वामी जी की मौत पर हज़ारों लोग ज़ोर-ज़ोर से रो रहे थे, जैसे उनका संसार लूट गया हो. जिस संत का कोई नहीं था. उसकी मौत पर हज़ारों लोग रो रहे हो, तो समझा जा सकता है की वो व्यक्ति कितना महान होगा. कंधमल्ल की
हिंसा लोगों के गुस्से का परिणाम है. मगर नेताओं ने उसे संसपरदायिकता करार दिया. महात्मा गाँधी के देश में महात्मा बनना कितना कितना बूरा है.

rajendra said...

dherndraji samjha me nahin aaya ki swamiji ke balidan se sabak lekar ab kya kiya jane wala hai? adivasiyon ki seva ki jayegi? kya samaj me unko vahi darja diya jayga, jo uchcha jatiyon ko mila hua hai? kya hinduvadi log isaiyon ko bharat se khadedne me lag jayenge. swamiji ka balidan sarthk hona chahiye, par samaj ko nuksan n bhogana pade.

Anonymous said...

priya rajendra ji ap kaha ke hai yah mujhe nahi pata .swami ji udisa ke kandhmaal jile ke un kshetro me kam kar rahethe jaha aaj bhi sadke nahi hai .utkal pradesh bhagvan jagnnath ka pradesh hai yaha rathyatra ke samay brahmano ka koi adhikar nahi hota .sara adhikar aadivasiyo ke pass hota hai .maharaj indradumna ke samay se yah parmpaara chali aa rahi hai .bhagavan jagnnath aadivasiyo ke hi bhagvaan hai is liye aap ne jo puchha hai ki aadivasiyo ko vahi darja diya jayega .utkal pradesh me aadivasiyo ko sabse uncha sthan prapt hai.aap ki jo kalpna hai vo kitabo se pad kar hai.kripya jameenee sacchayee janane ka prayas kare.iske liye apko swami ji ki tarah jangalo me janaq padega.tabhi aap sachaayee jaan sakege ki church kaise bhole bhale banvasiyo ko apni jado se kat raha hai. padne ke liye dhnyacvaad.

Anonymous said...

भाई,
देश में संत कबीर और तुका राम सरीखे हुए जिन्हें लोग याद करते हैं, साईँ बाबा को पूजते हैं, जाती पाती धर्म से ऊपर मानवता को लोग सदा से पूजते आयें हैं.
देखिये संतों में आगे कौन नाम लिखा जाता है.