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5.11.08

शेयर सिंह का गुब्बारा

नमस्कार दोस्तों,
मुंबई चले गए थे, कुछ दिन के लिए ..आप से मुलाकात नही हो पाई। अब आ गए है। बड़ा अजीबोग़रीब शहर है , हमारे जैसे गवार को तो पहले ट्रेनिंग दी जानी चाहिए मुंबई में रहने खाने की। लोग नरीमन पॉइंट पर वादा पो खाते है और बात करोडो की करते है। पसंद आया पर लगा की हमारा गाँव ही अच्छा है । मुंबई के बारे में कुछ बातें और आपको फ़िर कभी बताएँगे। फिल हाल हमारे लंगोटिया यार शेर सिंह दलाल की बताते है , प्यार से या फ़िर यूँ कहे की उनके धंधे की वजह से उनको हम शेयर सिंह कह लेते है।

हुआ यूँ की श्रीमती जी ने हमसे कहा सुबह सुबह की जाओ बाजार और नई मटर आ गई है ले के आओ । मटर गोभी की सब्जी बनानी है। सुन के ऐसे चले जैसे वफादार नौकर मालिक की ड्यूटी बजाता है। सब्जी वाले से मटर का मोलभाव कर ही रहे थे की पीछे से किसी ने हमारे कंधे पे हाथ रखा , । कुछ परिचित से लगे मगर पहचान में आने से पहले ही बोले , सोनी जी मैं --शेयर सिंह।

शेयर सिंह जी की सूरत देख कर हम दंग रह गए। दर असल हमने उनको तीनेक साल पहले देखा था। उस समय वोह झकाझक कपड़े पहनते थे, अकड़ के चलते थे लंबा कद और उसपर लम्बी गर्दन अकडी हुई । ऐसे लगता था जैसे की खच्चर को जिराफ की गर्दन लगायी हुई हो।

कोई लौंग की खुशबु वाली लम्बी सिगरेट पीते थे। और सदा पान मुह मैं रखते थे। उनका खानदानी धंधा अनाज की दलाली का था मगर अब वोह शेयर मार्केट मैं थे। इसलिए हम उनको शेयर सिंह कहते थे।

मगर आज शेयर सिंह को देखा था तो हैरान रह गए। मैले से कपड़े, दाढी बढ़ी हुई, और आँखों मैं गीड सा दिखा। चहरे पे रोनक तो थी ही नही।

हमने कहा --शेयर सिंह जी , यह क्या हाल बन रखा है? कुछ लेते क्यूँ नही ?

उन्होंने हमें ऐसे देखा जैसे भीड़ के द्बारा पकड़ा गया जेबकतरा पिटने के बाद आसमान की तरफ़ देखता है।

हमने कहा शेयर भाई आपने हमको ४-५ साल पहले एक ५ सितारा होटल मैं ४०० रुपये की कोफी पिलाई थी उतनी हैसियत तो नही है हमारी पर अगर बुरा न मानो तो सामने उस चाय की थडी पे चाय जरूर पिलाना चाहेंगे आपको ।

शेयर सिंह जी हमारे साथ चल दिए। इत्मीनान से बैठ के हमने ५ रुपये वाली स्पेशल चाय का आर्डर दिया। चायकी चुस्की के साथ ही हमने पूछा , और बताओ शेयर सिंह क्या हाल है?

गरम चाय की चुस्की लेके कुछ फुर्ती मैं आए शेयर सिंह ने कहा --यार बस हवा निकल गई समझो । बाप दादा का धंधा दलाली का था पर उससे ज्यादा धन कमाने के लिए सारा पैसा बाजार मैं लगा दिया। ऊपर से एक महात्मा जी के कहने पर "डब्बे " पर ताम्बा, गुवार , सोना , चांदी आदि चीजों मैं भी पैसा लगा दिया। सब लुट गया , -बाजार भी बैठ गया और हम भी बैठ गए।

हमको अफ़सोस तो हुआ मगर लगा की काश ये बात इनको तीन एक साल पहले समझ मैं आ जाती । मगर उस समय इनका ध्यान ऊपर की तरफ़ था। बात बात मैं जय बंदरम जय बंदरम करते थे। (जय चिदंबरम पढ़े। ) कहते थे देखना-- ये आया ४०००० ....

खैर चाय ख़तम करके शेयर सिंह जी ने कहा- यार फुटपाथ पे भी अच्छी चाय मिलती है।

हमने कहा यार फुटपाथ पे क्या नही होता- फुटपाथ पर इंसान पैदा होते है, फुटपाथ पर खेलते है, नहाते है, धोते है, फुटपाथ पर बड़े होते है, फुटपाथ पर शादी करते है , फुटपाथ पर हनीमून मनाते है, बूढे होते है , और मर जाते है। पर यार बुरा न मानो तो लगता है की आप से अच्छे यह लोग है। न बड़ी खुशी और न बड़े ग़म ।

खैर तबियत पानी कैसी है???

शेयर सिंह जी बोले --यार दस्त लगे हुए है। १०-१५ दिन से तो डॉक्टर साहब (डॉ मनमोहन सिंह पढ़े) दिन में एक दो बार ग्लूकोस चढाते रहे है मगर थमने का नाम ही नही ले रहे।
इतने मैं श्रीमती जी का मोबाइल आ गया बोले मटर लाओ...कहाँ अटक गए।

हमने शेयर सिंह जी से अलविदा कही , और शीघ्र "स्वास्थ्य" लाभ की कामना करके अपने घर चले आए।

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