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25.11.08

एक सन्यासी से मुलाकात

विनय बिहारी सिंह

पिछले दिनों कोलकाता में एक सन्यासी से मुलाकात हुई। उन्होंने बातचीत के दौरान बताया कि बातचीत मौन रह कर भी की जा सकती है। यह मेरे लिए एक अद्भुत बात थी। उन्होंने बताया- यह मैं नहीं रमण महर्षि और परमहंस योगानंद ने यह बात कही है। यह वैग्यानिक तथ्य है। मेरी उत्सुकता बढ़ी। उन्होंने कहा कि अगर आपके प्रति कोई दुश्मनी कर बैठा है तो उसके प्रति आप प्यार भेजिए। मन में उसका चेहरा रखते हुए कहते रहिए- मैं आपको प्यार करता हूं। आई लव यू। आपके दिल में उसके प्रति सचमुच प्रेम का भाव होना चाहिए। कुछ दिनों बाद वह आपसे दुश्मनी खत्म कर देगा। हो सकता है वह आपका मित्र बन जाए। मुझे यह विचार अच्छा लगा। सोचा क्यों न इसे सबको बताया जाए। क्या पता इससे समाज में सौहार्द बढ़े।

2 comments:

sanjay jain said...

आपके विचार अच्छे लगे / जब कभी भी क्रोध रूपी अग्नि भड़कती है उसको शांत करने का एक ही गुरु मंत्र है कि '' मौन रहना '' / एक किस्सा बताता हूँ - एक बार एक व्यक्ति की पत्नी को क्रोध आया और उसने अपने पति को क्रोध में बहुत कुछ कहा परन्तु पति मौन रहा पत्नी को इस बात से और ज्यादा गुस्सा आया उसने फ़िर उसे '' जानवर '' कहा परन्तु पति को फ़िर भी गुस्सा नहीं आया आख़िर थोड़े समय बाद पत्नी का गुस्सा ख़त्म होने पर उसने अपनी पति से पूछा की मैंने आपको जानवर तक कह दिया तो भी आपको गुस्सा नहीं आया कारण क्या है / पति बोला तुमने कुछ ग़लत नहीं कहा तुम ग़लत कह नहीं सकती क्योंकि जानवर का संधि विच्छेद होता है - जान + वर = अर्थात तू मेरी ''जान'' है और मैं तेरा ''वर'' हूँ अर्थात इस का मतलब तुने कुछ ग़लत नहीं कहा / बोलो '' मौन व्रत्र '' की जय...........
मौन शक्ति अथार्त विचारो की अज्ञात शक्ति ही वस्तुओं के प्रगटीकरण में कारण होती है /
मेरे अपने ब्लॉग पर श्री हनुमान सिंह गुर्जर की रचना जो मुनि तरुण सागर जी के स्वास्थ्य कामना हेतु लिखी है एवं संयम पर लिखा है पढने का कष्ट करें /

sanjay jain said...
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