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14.11.08

जिदगी क्या है...!!


जिन्दगी बड़ी कीमती चीज़ है....हम इसको बचाएं कैसे.....हर महफ़िल में आना-जाना चाहते हैं लेकिन जाएँ कैसे...!!
जिन्दगी एक ख्वाब की तरह उड़नछू होती जा रही है...वक्त सरपट भागता......जा रहा....!!इस दौड़ में हम कहाँ हैं....इस दौड़ का मतलब क्या है....समझ से परे है...... उलझने....जद्दोजहद.....खुशी....उदासी..... तिकड़म...हार-जीत और भी ना जाने क्या-क्या....यह खेल- सा कैसा है और इसका मतलब क्या है....समझ से बाहर है...सब कुछ समझ से ही बाहर है तो फ़िर जिंदगी क्या है...और इसके मायने हमारे लिए क्या....ये भी समझ से बाहर ही है....फ़िर हम क्या करें....एकरसता को ही जीतें रहें??.....इसका भी क्या अर्थ ?...अर्थ...अर्थ...अर्थ ....क्या करें...करें...क्या करें ??
व्याकुलता घट तो नहीं जाती...अगर ऐसा ही होता तो व्यस्तता से सारे जज्बात काबू ना हो गए होते...??.....हम वक्त को थाम कर रखना...या वक्त को अपने मन-मुताबिक...मन-माफिक काम में लेना चाहते हैं....और यह भी सच है कि वक्त कभी किसी के भी मुताबिक ना चला है...और ना ही चलेगा...अलबत्ता जब कभी सब कुछ हमारे मन मुताबिक चलता है....हमें सब कुछ अपने काबू में लगता है....और ज्यूँही इसका उलट हुआ नहीं....सब गनदम-गोल....जिन्दगी आख़िर क्या है....क्यूँ है... कब तलक है...कहाँ तक है..ये सब क्या है...क्यूँ है...क्या है...क्यूँ है....क्या है...क्यूँ है....!!??

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