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11.11.08

एक दर्द

एक बात जो मुझे आज भी सताती है ।
गरीबों के गरीबी को याद दिलाती है ।
दर्द भरी ऑंखें भूखे पेट दिल जलती है ।
एक बात जो मुझे आज भी सताती है ।
एक चेहरा जो मुझे आज भी आँखे दिखाती है ।
तन पे फटे कपड़े कचडे का बोझ बस यही बताती है ।
एक बात जो मुझे आज भी सताती है ।
निराशा में आशा की जोत जलाती है ।
क्यों इंसानों के पास गरीबी आती है ।
एक बात जो मुझे आज भी सताती है ।
पत्रकार मित्र धीरेन्द्र पाण्डेय की प्रस्तुति ..............

1 comment:

गुफरान सिद्दीकी said...

भाई धीरेन्द्र कविता के ज़रिये जिस सच को अपने शब्दों में पिरोया है वो ऐसा है जैसे कोई अपने अतीत से मिला हो दिल को छूने वाली कविता के लिए तहे दिल से शुक्रिया.

आपका हिन्दुस्तानी भाई ......गुफरान (ghufran.j@gmail.com)