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8.11.08

राजेश सिंह बसर की गजलें



(1)


चिट्ठियाँ लिखना किताब मत लिखना।
जो मैं लिखूं, उसका जवाब मत लिखना।
अपना सब कुछ उँगलियों पे गिन चुका हूं मैं।
बेवजह तुम, कोई हिसाब मत लिखना।
कभी टुकड़ा, कभी पूरा, कभी परछाईं सा।
मेरी आंखों में हैं महताब मत लिखना।
इश्तहार वाले मिटा देंगे कल ही।
घर की दीवारों पर इंकलाब मत लिखना।
(2)


जाग कर सो गए आज हम तुम
ख्वाब से हो गए आज हम तुम
अब नहीं कोई धब्बा है दिल पर
प्यार से धो गए आज हम तुम
चाहतें हो गई हैं सिंदूरी
क्या से क्या हो गए आज हम तुम
अपने आंसू भीअब कीमती हैं
बेवजह रो गए, आज हम तुम
(3)


न दोस्ती से मिले, न दुश्मनी से मिले,
अजीब जज्बा रहा, जब भी जिन्दगी से मिले।
बस आँख मूँद लिया और मिल लिया तुझसे,
मेरा ये ख्वाब नहीं तू भी बे-दिली से मिले।
बाद मिलने के तेरे ऐसा इस शहर में लगा,
यकीं नहीं है पर आज आदमी से मिले।
(4)


उम्र भर आशा की वेदी पर व्यथित बैठे रहे
छांव में प्रश्नों की हम अनुत्तरित बैठे रहे
पारखी आंखों ने हम को कब भला पत्थर कहा
आदमी हमको कहा, हम जड़ित बैठे रहे
वह विचारों की गली से ढूढ़ लाया कुछ नया
हम विचारों की चिता पर ज्वलित बैठे रहे
हाथ पत्थर के उठेंगे , देंगे हमें वरदान कुछ
कामना मन में लिए बरसों नमित बैठे रहे
(5)


उम्र भर की प्यास हो कामना बन कर रहो
मैं पुजारी बन सकूं, साधना बन कर रहो
मेरी स्मृतियों के पन्नों पर तुम्हारी छाप है
आज के परिवेश में नव चेतना बन कर रहो
इस दुखों की देह में मन की तसल्ली के लिए
चाहता हूँ तुम ह्रदय की वेदना बन कर रहो
(6)


न जाने कितने जंजाल छोड़ आया हूँ,
जिन्दगी कितनी बेहाल छोड़ आया हूँ।
फकत ये झूठ के सिवा कुछ भी नहीं ,
तेरे ही साथ तेरा ख्याल छोड़ आया हूँ।
उसकी कोशिश हंस के बदल दूँ दुनिया,
उसके हिस्से में मलाल छोड़ आया हूँ।
कैसे कह दूँ सहेज कर रखना,
हां तेरे पास कई साल छोड़ आया हूँ।
(7)


तेरी खुशियों की किताब में हूँ मैं।
फिर लगता है अजाब में हूँ मैं।
तू हकीकत है तुझे पा लूँगा।
बेवजह तेरे ख्वाब में हूँ मैं

2 comments:

वेद रत्न शुक्ल said...

'बसर'जी को सुनना अच्छा लगता है। वह एक मेधावी गजलगो हैं।

Bandmru said...

bahut khub..........maza aa gaya