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17.11.08

टिकटधारी बनाम बिना टिकट

लीजिये देव उठ गए। और साथ ही चुनाव की सरगर्मियां शुरू हो गई । बड़े बड़े नेता, अफसर , मातहत , छुटभैये, कामगार , मोहल्ला समितियों के सदस्य , कोलेज के होणार विद्यार्थी , शिक्षक इत्यादि गण अपने इस गणतंत्र के यज्ञ में अपने अपने काम पर लग गए है।
साथ ही बड़े बिज्नेस्मन और छोटे दूकानदार , यहाँ तक की चने बेचने वाले तक भी लोकतंत्र के इस महत्वपूर्ण खेल में रूचि लेने लगे है।
कहानी का रंग अभी चढेगा मित्रों । अभी प्रमो चल रहा है। टिकट लिए, दिए बाटे, छीने , बेचे और खरीदे जा रहे है। इस टिकट वितरण कार्यक्रम में हमारे यहाँ की एक पार्टीमें खूब जूतमपैजार हो चुकी है ।
कुछ संतुष्ट है क्युनके वो टिकट धारी है , कुछ संतुष्ट नही है क्युनके उनका टिकट काट दिया।। कुछ उछल रहे है की उनकी पार्टी ने उनके त्याग को पहचाना, उनको टिकट मिल गया। कुछ गला फाड़ फाड़ कर हो हल्ला मचा रहे है की उनका टिकट काट दिया गया।
किसी पति का टिकट काट कर पत्नी को दे दिया गया। किसी बाप का टिकट काट कर बेटे को दिया गया हमारे यहाँ तो एक बेटे का टिकट काट कर बाप को टिकटधारी बनाया गया है।
इस प्रकार इस दंगल में मुख्यतः दो ही प्रकार के पहलवान होते है एक टिकट धारी और एक बिना टिकट के। दोनों के अपने रंग होते है। कई बार टिकट के दावेदार को बिना टिकट गाड़ी में बैठा दिया जाता है तो वो बिना टिकट ही दंगल में कूद पड़ता है। अब उसका लक्ष्य जीतना नही बल्कि टिकटधारी को हराना ही होता है, क्युनके उसने उनका टिकट मार लिया ।
ऐसे ही एक टिकट कटे नेता अपने चेलो के साथ पार्टी के दफ्तर के सामने काले झंडे लिए कुछ गालीनुमा नारे लगा रहा था । उनकाटिकट नही दिया गया। उनका कहना था की चालीस बरस पार्टी की सेवा करी, अब थोड़ा और विश किया तो पार्टी ने संतुष्ट नही किया। पार्टी के लिए शादी भी नही की । प्रेम किया था मगर उसको भी पार्टी हित में त्यागना पड़ा। प्रेमिका ने उनको छोड़ कर PWD के एक ठेकेदार से शादी रचा ली । ठेकेदार एक नेताजी का साला था , उनकी महरबानी हुई तो प्रेमिका नगर निगम में पार्षद बन गई।
मगर हाय रे लोकतंत्र की राजनीती , उनका टिकट एक दूसरी पार्टी के बागी को दे दिया गया।
दोस्तों यह इस महान फ़िल्म का ट्रेलर है । अभी फ़िल्म आएगी। अब देखते रहिये। टिकटधारी और बिना टिकट के पहलवान दंगल में उतरने वाले है । कौन जीतेगा कौन हारेगा यह लाख रुपये का सवाल है हालांके इसका जवाब दो टके का है ।
टिकट के लिए मारामारी मची है। एक टिकट के सौ दावेदार है । सत्तासुन्दरी का स्वयंवर होना है । वरण एक का होगा बाकी सब सर फुटोवल करेंगे।
जिनको पार्टी टिकट नही देगी वों अपनी ही पार्टी के उमीदवार को हारने में लग जायेंगे । और जो टिकट धारी हार जायेंगे वे हारने के बाद कहेंगे- हमको तो अपनों ने मारा गैरों में कहाँ दम था, हमारी कश्ती वहाँ डूबी जहाँ पानी कम था।

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