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5.11.08







ek पुलक...और एक हँसी,कि जैसे हो ..... यही जिन्दगी !!
आँखों में जल लिए बैठा हूँ, मुझसे...रूठी॥है॥मेरी तिश्नगी !!
होठों पे हैं लफ्ज प्यार के ,दिल्लगी...दिल्लगी...दिल्लगी...!!
फूल बटोर कर ले आया हूँ मैं,आती नहीं मगर मुझे बंदगी !!
जो भी होता है वो होता रहेगा,कर भी क्या लेगी यह जिंदगी !!
आसमान जैसे है इक दीवाली, और तारो-ग्रहों की है फुलझडी !!
इतना सपाट तुम रहते हो क्यूँ,लगते हो मुझको इक अजनबी !!
ये लो तुम अपनी प्रीत संभालो, जाओ जी अजी तुम जाओ जी !!
तारीकी -सी फैली हुई है क्यूँ , जाकर थोड़ी -सी लाओ रौशनी !!
अंधेरे में कुछ जुगनू चमके,आज शब् भी इनसे अब..... खेलेगी !!
ख़ुद में उलझा हुआ है "गाफिल",रूह इसकी अपने LAB खोलेगी !!

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