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5.12.08

चाहे गीता वाचिए या पढिये कुरान, तेरा मेरा प्यार ही इस पुस्तक का ज्ञान....

आतंकवाद, नस्लवाद, नक्सलवाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद और सम्प्रदायेवाद सभी अपराध की श्रेणी में आते हैं। इन सभी से कही न कही देश की अखण्डता को ठेस पहुचता है। कुछ आतंकियों ने मुंबई पर हमला कर भारत को घायल कर दिया. ये हमलावर बाहर के थे. बवाल मच गया. कुछ दिनों पहले ऐसा ही हमला बिहार, झारखण्ड और यूपी के लोगों पर हुआ. इस बार हमलावर देश के ही थे. दोनों ही हमलों में समानता नहीं थी, पर मकसद एक था देश को नुकसान। दोनों ही अपराध थे, एक आतंकवाद तो दूसरा क्षेत्रवाद. दोनों से देश तोड़ने की बू आती है. जब बिहार के लोगो को पीटा जा रहा था तब यही मराठी चुप थे। दबी जबान से समर्थन भी की जा रही थी, उन्हें अपने नेताओं पर गर्व था. पर इस बार महाराष्ट्र की बात थी तो सारे लोग गुस्सा जताने सड़क पर उतर आये, जिस नेता पर गर्व था उसी पर उंगली उठाई जाने लगी. कहा गया ये सियासी लोमडी हैं सत्ता के लिए कुछ भी कर सकते है। मोमबत्तियां जलाई गई, नुक्कड़-नाटक किये गए, फ़िल्मी कलाकारों ने ब्लॉग लिख कर तो कभी टीवी पर आदर्शवादी टिपण्णी कर अपने बाज़ार भाव बढाते रहे, मानव श्रंखला बनायीं गयी, भारत माता की जयजयकार हुई. तब कहाँ थे ये मुंबई के भाई-बहन जब ऐसा ही हमला गैर मराठिओं पर हुआ. जाने भी गई, कई लोग तो अपंग बना दिए गए. क्या तब देश घायल नहीं हुआ, क्या तब भारत के आँचल को नहीं खिंचा गया. जब अपनी जान पर बात आई तो रोड पर निकल आये, सुरक्षा की गुहार लगाई. तब क्यों नहीं बाहर आकर अपने ही भाई-बंधुओं को मरने से बचाया. ये मुंबई के लोगों की दोहरी मानसिकता को दर्शाता है। इस हमले से अमिताभ भी डर गए. तकिये के नीचे बन्दूक रख कर सोये और ब्लॉग में अपनी संवेदना जाहिर की. पर क्या बच्चन जी आपने कभी उस माँ के बारे में सोचा है जिसका एकलौता बेटा मुंबई अफसर बनने गया था पर लौटा लाश बन कर। उस राहुल राज के बारे में ब्लॉग में क्यों नहीं लिखा जब महाराष्ट्र की पुलिस गोलियों से उसके माथे पर अपराधी लिख दिया. ऐसी ओछी संवेदना, संवेदना नहीं स्वार्थ है. ऐसे सितारों के भीतर अगर संवेदना होती तो ये सिर्फ अपने परिवार की भलाई के लिये मंदिर में सात करोड़ का मुकुट नहीं चढाते, बल्कि गरीबों को दो जुन की रोटी मिले इसके लिये उपाए तलाशते. ऐसे हजारो लोग बेरोजगार हो चुके हैं जिसे मुंबई से निकल दिया गया. चैन से सोने वालो कभी आपने सोचा है कि इन गरीबों के चूल्हों पर पकाने के लिये अनाज तो दूर जलावन के लिये लकडी तक नहीं है. बिहार के नेताओं को कोसा जाता है कि उन्होंने विकास नहीं किया इसलिए लोग दूसरे राज्यों में काम करने जाते हैं, ठीक है कुछ हद तक ये बात मान ली जाए, पर मराठी नेता ने कैसा विकास किया जो अदना सा आतंकी पुरे तीन दिनों तक बन्दूक की नोक पर इन्हें नाचता रहा. खैर.... विकसित महाराष्ट्र के लिये ये छोटी बात है, भाई ऐसे विकास से हम पिछडे ही अच्छे हैं, जो अपने लोगो का दर्द समझते हैं। और हा ऐसे ऐसे मराठी नेता से बिहारी नेता अच्छे है जो कम से कम १९० लाशों की ढेर पर बैठ कर ये तो नहीं बोलते की ये तो छोटी बात है. एक और गौर करने लायक बात है, जब आतंकी लाशों का ढेर लगा रहा था, वही क्षत्रपति शिवाजी स्टेशन पर चाय बेचने वाला एक बिहारी युवक ने करीब ३०० लोगो की जान बचाई. शायद उसके मन में ये भावना नहीं थी कि वो जिसकी जान बचा रहा है मराठी है या बिहारी. अगर ठाकरे की सेना इस बिहारी युवक को मुंबई से भगा दिया होता तो शायद मरने वालो की संख्या १९० नहीं ४९० होता. मेरे भाई सिर्फ अपने घर की तरक्की देखोगे तो घर को लूटता हुआ भी तुम्हे ही देखना होगा. मेरी समझ से मुंबई के लोगो का सड़क पर प्रदर्शन करना महज डर की निशानी है, बेमानी है. खाली आतंकवाद के नाम पर बवाल मचाने वाले क्या कभी सोचा है कि क्षेत्रवाद और सम्प्रदायेवाद से भी देश को खतरा है. आज की ये छोटी मगर खतरनाक क्षेत्रवाद की घटना कब विकराल रूप धारण कर लेगी शायद ही कोई मुंबई की आवाम समझती होगी. हम तभी आपकी बहादुरी समझेंगे जब आप देश पर लगने वाले हर दाग, देश पर उठने वाली हर ऊँगली के खिलाफ मोमबत्ती जलाओगे, भाईचारे की दुआ करोगे, छोटी मानसिकता से उबर कर सबको गले लगाओगे और किसी भी ''वाद'' को पनपने नहीं दोगे. तभी बनेगा ''अपना मुंबई, आमची मुंबई''
ये लेख राजीव जी के ब्लॉग http://www.saffaar.blogspot.com/ से ली गई है ...

1 comment:

कुमार संभव said...

pahla hamla desh ke dusre hisse me rahne walon par tha, dusra desh par tha. kahne ko toa bahut kuch kaha gaya, lekin aapne ek behad aur jarrori prashan uthayea hai.