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4.12.08

हम ख़ुद तो सुधरे....

अभी पूरे देश में जनता नेताओ को गालिया दे रही है। आतंकियों की ही तरह नफरत वैसे नेताओ के प्रति भी है जो संकट की इस घड़ी में भी अपनी वोट बैंक और सियासत में नफा नुकसान को लेकर राजनीति करते रहे। लेकिन हम सभी को एक सवाल अपनी अंतरात्मा से भी करनी चाहिए की इन नेताओ को नेता बनाता कौन है, अपने जनप्रतिनिधियों को चुनने के लिए हम कौन सा मापदंड तय करते हैं? नेता को 'ने' मतलब- नेतृत्व और 'ता' मतलब - ताकत जनता जनार्दन से ही मिलती है ऐसे में अगर हम ग़लत लोगो को चुनते हैं तो उन लोगो से कुछ बेहतर करने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। चुनाव के दिन तथाकथित पढ़े लिखे लोग वोट करने नही जाते, उन्हें लम्बी कतारों में आमजनों के साथ खड़ा होना नही भाता। पर यही बुद्धिजीवी बाद में देश के हर मुद्दे पर बड़ी बड़ी बातें करते है। युवा देश की तस्वीर बदलने की ताकत रखता है, कहते भी हैं जिस ओर युवा चलता है उस ओर ज़माना चलता है, लेकिन युवाओं की फौज कभी पेट्रोल तो कभी दारू के चक्कर में धन्धेबाज़ नेताओ के आगे पीछे घुमती नज़र आती है। अलग-अलग दलों के चुनावी रैलियों में कई बार सामान समर्थक नारे लगते नज़र आते हैं, पैसे पर जनता की भीड़ जुटाई जाती है। अब जब जनता ही अपने अधिकारों के प्रति सजग नही होगी तो भला नेताओ से उम्मीद कैसे की जा सकती है । हम जिसे नेता चुनते हैं उसके चाल चरित्र को समझना अत्यन्त ही जरुरी है । हम वोट करे तो उन्हें करे जो जाति,धर्म, क्षेत्र , भाषा के मुद्दे पर हमे उलझाय ना रख कर हिंदुस्तान को सुदृढ़ और विकसित करने का विजन रखे। पर इसके लिए हमे ख़ुद को बदलना होगा....
एक उम्मीद के साथ..आप का साथी...

2 comments:

कुमार संभव said...

bhai akhilesh aap ne bilkul sahi kaha. jab bhi desh bhakti ki baat aati hai hum sab kuch karne ke liye tyarr rahte hai, magar vote dete wqat aapna jaat dharm hawi ho jaata hai , hume aage badhna hai to acche logon ko chunana padega nahi to mumbai jaasi trasadi humesh hoti rahe gi.

राजीव करूणानिधि said...

फिर मूरत से बाहर आकर चारो ओर बिखर जा
फिर मंदिर को कोई मीरा दीवानी दे मौला,
तेरे होते कोई किसी की जान का दुश्मन क्यों हो
जीने वाले को मरने की आसानी दे मौला.

मौला हमारे साथ हैं, ताकत हमारे पास है, देश के कर्णधार ये नेता नहीं किसान, डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, पत्रकार और कॉर्पोरेट जगत के बड़े योद्धा हैं. हम जैसे लोगों को ही तय करना है कि कौन हमारा अगुआ बनेगा, कौन विकास की राह बनाएगा. बस जरूरत है राजनैतिक दलदल में उतरकर इसमें खाद और मिट्टी डाल कर उपजाऊ ज़मीं बनाने की.