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1.12.08

स्वामी विवेकानंद


विनय बिहारी सिंह
स्वामी विवेकानंद ने सहज ही ईश्वर पर विश्वास नहीं कर लिया। उन्होंने इसके लिए अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से बहुत से सवाल किए। सबसे महत्वपूर्ण सवाल था- क्या आपने ईश्वर को देखा है? रामकृष्ण परमहंस का जवाब था- हां, मैंने ईश्वर को देखा है। ठीक उसी तरह, जैसे तुमको इतने नजदीक से देख रहा हूं। स्वामी विवेकानंद को उस दिन भरोसा हो गया। लेकिन जब वे ध्यान करते थे तो कुछ भी दिखाई नहीं देता था। कुछ भी ईश्वरीय तत्व समझ में नहीं आता था। यह बात स्वामी विवेकानंद (जिनका उस समय नाम था- नरेंद्र) ने अपने गुरु से कही। तब उनके गुरु ने कहा- जानते हो ध्यान कैसा होना चाहिए? जैसे- तेल की धार। लगातार। ध्यान क्या है? ध्यान है लगातार ईश्वर पर मन को केंद्रित करना। और कुछ भी न सोचना। अगर बीच बीच में मन इधर- उधर भटकता है तो उसे खींच कर वापस ईश्वर पर केंद्रित करना। फिर विवेकानंद ने वैसा ही करना शुरू किया। गुरु ने प्रसन्न होकर उन पर दिव्य शक्तिपात किया। स्वामी विवेकानंद को मां काली के दर्शन हुए। वे जो चाहते थे, मिल गया। क्योंकि उन्हें सच्चे गुरु मिल गए थे।

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