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2.12.08

जनता का गुस्सा .........क्योँ भाई..........अब तक तोह सब ठीक था.....ये अचानक क्रोध क्योँ.........

भारत गुस्से मैं.....भारतीय गुस्से मैं....... मीडिया गुस्से मैं.....समाजसेवक गुस्से मैं......ये गुस्सा ना हो गया मज़ाक हो गया....
नेवी फ़ैल, रा फ़ैल, आई बी फ़ैल, गुप्तचर फ़ैल....पुलिस फ़ैल....पब्लिक फ़ैल......लेकिन गुस्सा तो करना पड़ेगा ना....आख़िर देशभक्ति की मिसाल जो रखनी है......
हम वाकई महान देश के महान नागरिक हैं ........हमें जिम्मेदारियां निभानी भले ही ना आए, देशप्रेम जताना खूब सीखा है हमने, आज कल कोई भी देशप्रेमी बन सकता है जरुरत है तोह बस गुस्सा दिखाने की, उसपर भी आपके पास अगर टीवी कैमरा हो तोह फ़िर कहने ही क्या...... बस नेत्ताओं को गालियाँ दी दीजिये, सिस्टम की माँ बहेन कीजिये, बस आपका देश प्रेम साबित.....आपकी भावनाएं उजागर.....

या फ़िर ब्लॉग है ना, अपनी बुधिजिविता को उजागर कीजिये, कुछ गालियाँ, कुछ संवेदनाएं, कुछ कविताओं के माध्यम से ........ दुमुहें और दोगले हम खुद हैं.....और कोई नही......

कितनी बार हम अपनी नपुंसकता नेताओं पर थोपते रहेंगे, कब तक हमारी सब नाकामियों की ज़िम्मेदारी जनप्रतिनिधियों पर थोपते रहेंगे......
हम काहिल लोग हैं, "सब चलता है"सोच ही हमें खुश और संतुष्ट करता है.........हाँ वैसे दुर्घटनाओं के बाद संवेदना प्रकट करना और फ़िर एक हफ्ते मैं सब भूल कर फ़िर से नेत्ताजी के घर सिफारिश की चिठी लेने मैं हमें कोई ऐतराज नही होता है...हमारे जन प्रतिनिधि का चुनाव हम ख़ुद की करते हैं, और उन्हें गद्दी से उतार कर सड़क पर खड़ा करने की समझ और ताक़त भी हमें संविधान ने दिया है.......

रेलवे स्टेशन पर अगर ज्यादा चेक्किंग होती है तोह हमें कोफ्त होती है......सिनेमा हॉल मैं अगर हमसे हमारा पर्स दिखाने को कहा जाता है तोह उसमे हमारा अपमान होता है.....यानी की मुझे आजाद जिंदगी और सुरक्षा दोनो चाहिए .....क्या ये सम्भव है..........जवाब हमारे नेताजी नही देंगे और ना ही हमारा तंत्र देगा......फैसला हमारा ही होगा क्योंकि जिंदगी हमारी ही है और देश भी........

3 comments:

हरभूषण said...

बढ़िया लिखा है रणधीर भाई लेकिन अपना कुत्तापन कौन स्वीकारता है,सारे के सारे तो भले आदमी हैं...

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

सही कहा भाई....

Anonymous said...

भाई,
सही कहा आपने, आम लोगों की कमजोर नब्ज को पकड़ मीडिया नेताओं के कार्य को अंजाम दे रही है मगर कर्तव्य के मामले में सभी एक ही कतार में खड़े दिखाई देते हैं.
कुछ ही दिनों पुरानी घटना है जब ये ही मीडिया के चुहरबाज इन्ही सेना वालों की पीछे पड़े हुए थे जब साध्वी कांड में सेना का अधिकारी के शामिल होने की बात आयी.
लोगों के मनोभाव को जिस कदर मीडिया बाजार में बेच रही है चिंतनीय है और राजनेता से ज्यादा खतरनाक.
जय जय भड़ास