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20.1.09

जमाना अच्छाई का नहीं है? तो किसका है?

विनय बिहारी सिंह

आप अक्सर सुनते हैं- अरे बहुत दयालु मत बनो, यह जमाना अच्छाई का नहीं है। सुन कर हैरानी होती है। अरे तो जमाना अच्छाई का नहीं है तो क्या हमेशा बुरा काम करें? क्या मतलब है इस जुमले का? मान लीजिए कि सभी यही सोचने लगें कि यह जमाना भलाई करने वालों के लिए नहीं है, तो हर आदमी बुरा काम करने लगेगा। फिर? तब क्या यह धरती कैसी होगी? अगर हम किसी पर भरोसा नहीं करें, सबको शक की निगाह से देखें, भला काम करने से परहेज करें तो कैसा माहौल बनेगा? हालांकि मौजूदा माहौल भी कम जटिल नहीं है। फिर भी इस पृथ्वी पर अच्छे लोग हैं और वे लगातार अच्छा काम कर रहे हैं। उन्हें हम, आप भले ही नहीं जानते या पहचानते, लेकिन वे अनजान रह कर अच्छा काम करने में आनंद पाते हैं। ऐसा कभी हुआ ही नहीं है कि यह पृथ्वी सिर्फ बुरे लोगों से ही भर गई हो। लंका में भी विभीषण जैसा व्यक्ति मौजूद था। विभीषण ने राम- रावण युद्ध में निर्णायक भूमिका अदा की। कैसे कह दें कि यह जमाना सिर्फ चोरों, डकैतों और लुटेरों का है। हां, ऐसे भ्रष्ट, बेईमान और अनैतिक लोग देश, समाज औऱ भावी पीढ़ी के भविष्य की चिंता न कर घनघोर अन्याय कर रहे हैं। यह सच है। लेकिन उनसे भी बड़े वे हैं जो लाचार लोगों के दुख, दर्द और परेशानी में मदद कर संतोष पाते हैं। सुख पाते हैं। और मजा यह कि वे अपना प्रचार नहीं चाहते। बेनाम रह कर सेवा करना चाहते हैं। इसी में उनको मजा आता है। हां, बहुत कम संख्या है ऐसे लोगों की। लेकिन है। ऐसे लोग चुनिंदा होते ही हैं। हम उनको नजरअंदाज नहीं कर सकते क्योंकि समाज उन्हीं की सेवा से बचा हुआ है। हमें ऐसे लोगों से भी सीख लेनी चाहिए। जब डकैत ने बीमार होने का नाटक कर बाबा खड़ग सिंह से कहा कि बाबा, बीमार आदमी को घोड़ा दे देंगे क्या? मैं चल नहीं पा रहा हूं। तो बाबा खड़ग सिंह ने उसे घोड़े पर बैठा दिया। डकैत ने अचानक घोड़े को एड़ लगाई और घोड़े को ले भागा। तब बाबा खड़ग सिंह ने डकैत को बुला कर कहा- देख बेटा, आज जो तुमने किया, भविष्य में कभी मत करना। वरना लोगों के भीतर बीमारों के प्रति हमदर्दी खत्म हो जाएगी। यह कथा- हमें सीख देती है। बाबा खड़ग सिंह ने फिर घोड़ा खरीदा और फिर वे सेवा में जुट गए। आप हर बार धोखा नहीं खा सकते। धोखा आपको सीख देती है। हां, सतर्क अवश्य रहिए। वरना आपके सीधेपन का फायदा उठाने वाले इस दुनिया में कम नहीं हैं। लेकिन दुखियारे, बेसहारा भी कम नहीं हैं भाई।

1 comment:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

बढ़िया विषय उठाया है आपने। जमाना चाहे जैसा हो जाय लेकिन अच्छाई और भलाई की कीमत हमेशा बुराई से लाख गुना अधिक रहेगी। जो जमाने को कोसते हैं वो अच्छाई को समझ नहीं रहे हैं।

व्यक्ति की प्रास्थिति उसके विचार से ही निर्धारित हो जाती है। दुष्ट व्यक्ति कभी सन्तुष्टि भरा जीवन नहीं जी सकता। इसी प्रकार सदाशयी व्यक्ति को कभी संकटकाल में पराजित नहीं होना पड़ता।